हजारों साल पुरानी हैं दादी-नानी की कहानियां
हमें दादी-नानी राक्षस और राजकुमारी वगैरह की जो कहानियां सुनाती रही हैं, लगभग उसी तरह की कथाएं दुनिया भर में दादी-नानी अपने बच्चों को सुनाती रही हैं। इ ...और पढ़ें

जागरण डेस्क, नई दिल्ली: हमें दादी-नानी राक्षस और राजकुमारी वगैरह की जो कहानियां सुनाती रही हैं, लगभग उसी तरह की कथाएं दुनिया भर में दादी-नानी अपने बच्चों को सुनाती रही हैं। इनमें से कुछ कहानियां तो छह हजार साल पुरानी तक हैं।
ब्रिटेन के दुरहम विश्वविद्यालय के मानव विज्ञानी डॉ. जेमी तेहरानी और पुर्तगाल के लिस्बन विश्वविद्यालय में लोकगायक सारा ग्रासा डा सिल्वा ने एक अध्ययन में पाया है कि लोक कथाएं एक से दूसरे देश में यात्राएं करती रही हैं। उन्होंने इस अध्ययन के लिए उस तकनीक का सहारा लिया जिसका जीव विज्ञानी उपयोग करते हैं।
'रायल सोसाइटी ओपन साइंस' में प्रकाशित अपने लेख में डॉ. तेहरानी ने बताया है कि इस अध्ययन के दौरान जाति इतिहास विश्लेषण का सहारा लिया गया। यह विभिन्न मानव समूहों के बीच विकासवादी संबंधों की परतें खोलता है। लोक कथाओं की जड़ें खोजने के लिए भारतीय-यूरोपीय भाषाओं के वंश-वृक्ष का उपयोग किया गया। इनमें दक्षिण, मध्य और पूर्व एशिया तथा यूरोप के विभिन्न देशों में सदियों पहले उपयोग की जाने वाली भाषाओं से ली गई जानकारी खंगाली गई। इन पुरातन भाषाओं में इन कथाओं की जड़ें मिलती हैं।
कैसे पता किया
कई लोक कथाओं पर इस दौरान अध्ययन किया गया। जैसे, एक लोक कथा एक बच्ची और भेडिय़े के बारे में है जिसमें बच्ची को भेडिय़ा उठा ले जाता है। काफी दिनों बाद बच्ची भेडिय़े को चकमा देकर निकल भागती है। डॉ. तेहरानी ने विभिन्न देशों और भाषाओं में इसके 58 पाठों का अध्ययन किया। बहुत थोड़े से हेरफेर के साथ सभी जगह लगभग एक ही किस्म की कथा मिली। उनका कहना है कि यह कुछ-कुछ उसी तरह है जैसा जीव विज्ञानी मानते हैं कि दुनिया भर में मानव जाति का विकास लगभग एक तरीके से हुआ है और इस तरह यह भी लगता है कि सबके पूर्वज एक ही हैं।
ये कहानियां बचीं कैसे
पिछले तीन-चार हजार साल में कई भाषाएं विलुप्त हो गई हैं। अधिकतर भाषाओं की कोई लिखित सामग्री भी नहीं मिलती। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि लोक कथाओं की जड़ें खोजने की कोशिश कितनी सही हो सकती है। डॉ. तेहरानी का कहना है कि पुरातन भाषाएं अधिकतर बोली जाती रहीं और जब आदमी ने लिखना-पढऩा शुरू किया, तब ही उसे लिखित रूप दिया जा सका। यह जीव विज्ञानियों के एक विंदु पर आकर मिल जाने वाले विकास के सिद्धांत की तरह है। यह बताता है कि पुरातन भाषाएं बोलने वालों के बीच भले ही एक-दूसरे से संपर्क नहीं था लेकिन सोच इसी तरह एक से दूसरी जगह पहुंच रही थी।

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