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    7 शहर हैं दिल्ली में

    एक लंबे इतिहास को आंचल में समेटे हुए है राजधानी दिल्ली। कई राजाओं ने दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया

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    एक लंबे इतिहास को आंचल में समेटे हुए है राजधानी दिल्ली। कई राजाओं ने दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया। अलग-अलग युग के शासकों की प्राथमिकता के आधार पर मौजूदा दिल्ली शहर के भीतर ही उनके प्रशासनिक गतिविधियों के केंद्र और राजधानी के नाम बदलते गए। यही वजह है कि दिल्ली को कहा जाता है 'शहरों का शहर'। इनमें सात ऐसे हैं, जिनका गौरवशाली अतीत रहा है। उन्हें मुगलों और अन्य वंश के शासकों ने अपनी राजधानी भी बनाया। हालांकि अब उनके नाम और स्वरूप पूरी तरह से बदल चुके हैं, जैसे फिरोजाबाद अब फिरोजशाह कोटला के नाम से जाता है, जबकि सिरी कहलाता है सिरी फोर्ट। आइए डालते हैं नजर उन सात शहरों पर

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    इंद्रप्रस्थ

    यह पांडवों की राजधानी थी, जिसे मयासुर ने बनाया था। कहा जाता है कि पांडवों का महल इतना भव्य था कि दुर्योधन भी आश्चर्यचकित रह गया था। महल में घूमने के दौरान तो वह पानी और शीशे में भी फर्क महसूस नहीं कर सका और एक जलाशय में गिर गया। यह देखकर वहां मौजूद द्रौपदी हंस पड़ी, जिसे दुर्योधन सहन नहीं कर सका। उसी वक्त उसने उस अपमान का बदला लेने की ठान ली। इस तरह महाभारत के युद्ध की पटकथा तैयार हो गई।

    लाल कोट

    ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार सर्वप्रथम 1020 में तोमर वंश के राजपूत राजा अनंगपाल ने महरौली के नजदीक अपनी राजधानी स्थापित की। बाद में तोमर व उसके उत्तराधिकारियों और चौहान वंश के राजाओं ने इस शहर का विस्तार लाल कोट तक किया। इसके अवशेष इन दिनों साकेत में देखे जा सकते हैं। महरौली में केंद्रित रहकर कई अन्य शासकों ने भी शासन किया। उनकी फेहरिस्त में मुहम्मद गौरी, कुतुबुद्दीन ऐबक और इल्तुतमिश शामिल हैं।

    सिरी

    कालांतर में अलाउद्दीन खिलजी ने सिरी को अपनी राजधानी एवं प्रशासनिक गतिविधियों का केन्द्र बनाया। यह लाल कोट (वर्तमान सिरी फोर्ट) से दो मील की दूरी पर स्थित है। वहींउसने मशहूर महल हजार सितून का निर्माण कराया। अलाउद्दीन ने न केवल मंगोलों को हराया, बल्कि राजपूत भी उसके सामने नहीं ठहर सके। उसने दक्षिण भारत के भी विभिन्न राज्यों पर हमला बोला। हौज खास के पास स्थित आलीशान टैंक भी उसी के द्वारा निर्मित है।

    तुगलकाबाद

    खिलजी के बाद गयासुद्दीन तुगलक ने दृढ दीवारों से घिरे तुगलकाबाद को राजधानी बनाया। उसने ऐसा मंगोलों के आक्रमण के चलते किया। वह राजधानी महज 15 बरसों तक ही कायम रह सकी, क्योंकि चट्टानी सतह पर बने होने और असहनीय गर्मी के चलते गयासुद्दीन को वह जगह छोड़नी पड़ी। कहा यह भी जाता है कि संत निजामुद्दीन औलिया ने उससे कहा था कि वहां राजधानी बनाए रखने की सूरत में उसे दिल्ली पर व्यापक फतह शायद ही हासिल हो। गयासुद्दीन तुगलक की हत्या के बाद मोहम्मद बिन तुगलक का राज आया। उसके द्वारा बार-बार राजधानी बदलने की कहानी तो सब भली भांति जानते हैं ही, मगर जब वह अंतिम रूप से दिल्ली में बसा तो उसने एक नया शहर 'जहांपनाह' बनाया जो कुतुब मीनार और सिरी के बीच का इलाका था। इब्नबतूता ने यहां स्थित स्थापत्य धरोहरों की खुलकर तारीफ करते हुए कहा था कि बेगमपुरी मस्जिद और शाही महल (अब विजय मंडल के नाम से मशहूर) जैसे स्मारक संसार के सभी तत्कालीन इस्लामी मुल्कों में सबसे बड़े हैं।

    फिरोजाबाद

    बिन तुगलक के बाद उसका उत्तराधिकारी फिरोज तुगलक अपनी सैन्य शक्ति बढ़ाने को लेकर बहुत जुनूनी नहीं था, मगर स्थापत्य एवं शिल्प कला के प्रति उसमें गहरी रुचि थी। उसने फिरोजाबाद को दिल्ली सल्तनत की नई राजधानी बनाया। उसके द्वारा स्थापित फिरोजाबाद अब फिरोज शाह कोटला के नाम से मशहूर है। उसने कई आलीशान मस्जिदें बनाई और दो अशोक स्तंभ भी अन्यत्र से लाकर दिल्ली में स्थापित किए।

    दीनपनाह

    1526 ईसवी में पानीपत पर जीत हासिल करने के बाद बाबर आगरा की ओर बढ़ा, जो लोदी राजाओं की राजधानी थी, लेकिन वह ज्यादा दिन जीवित नहीं रह सका। उसके बेटे हुमायूं ने दीनपनाह नामक शहर बसाया और उसे अपनी राजधानी बनाया। यह शहर मौजूदा पुराना किला वाली जगह पर थी। बाद में शेरशाह सूरी ने हुमायूं को हराकर इस जगह से शासन किया। उसने इस शहर का विस्तार भी किया। इसके समीप स्थित हुमायूं का मकबरा पहला मुगल स्मारक कहा जाता है। हुमायूं के बेटे अकबर ने ज्यादा दिनों तक यहां राजधानी नहीं रखी। अपने शासन के कुछ साल यहां बिताने के बाद उसने अपनी राजधानी वापस आगरा ही स्थानांतरित की।

    शाहजहांनाबाद

    अकबर के पुत्र शाहजहां ने सत्ता संभालते ही एक बड़ा फैसला लिया। उसने चांदनी चौक के पास स्थित शाहजहांनाबाद को राजधानी बनाया। दरअसल आगरा के व्यापारी वहां की सड़कों को चौड़ा करने के लिए राजी नहीं थे। लिहाजा 1638 में शाहजहां ने चांदनी चौक के पास शाहजहांनाबाद को राजधानी बनाने का कदम उठाया। उसने किला-ए-मुबारक यानी लाल किला का निर्माण कराया, जहां से मुगलों ने समूचे उपमहाद्वीप पर राज किया। यह राजधानी बसाने में उसे करीब दस साल लगे। दुनिया भर से लोगों के काफिले शाहजहांनाबाद में आकर रुकते थे। इस तरह यह ज्ञान और संस्कृति का केंद्र बना। उत्तर भारतीय सुगम संगीत, उर्दू व ईरानी कविता, मुगलई पकवान, पोशाक और तहजीब का यहां से विस्तार हुआ। यहीं मयूर सिंहासन पर बैठते हुए शाहजहां ने यह तय किया कि अगर दुनिया में कहीं स्वर्ग है तो उसे यहीं बनना है!

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