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    3डी फिल्में

    By Edited By:
    Updated: Thu, 12 Jul 2012 04:48 PM (IST)

    सुविधा और पसंद के चलते हम सभी नई तकनीकों को सहर्ष अपनाते हैं। याद कीजिए, आपने पिछली बार हाथ से लिखा पत्र कब भेजा था? मोबाइल फोन की तकनीक ने हमें पत्र लिखने की विधा से छुटकारा दिला दिया।

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    सुविधा और पसंद के चलते हम सभी नई तकनीकों को सहर्ष अपनाते हैं। याद कीजिए, आपने पिछली बार हाथ से लिखा पत्र कब भेजा था? मोबाइल फोन की तकनीक ने हमें पत्र लिखने की विधा से छुटकारा दिला दिया। इसी तरह मनोरंजन के क्षेत्र में भी एकनया नाम तेजी से उभर रहा है। वह है फिल्मों का 3डी संस्करण। अब नई और चर्चित पुरानी फिल्मों को 3डी में बनाया जा रहा है। हाल में टाइटेनिक फिल्म को 3डी में रिलीज किया गया। आइए, 3डी फिल्मों की जानकारी आपसे साझा करते हैं।

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    क्या है 3डी

    थ्री डायमेंशन यानी तीन आयाम लंबाई, चौड़ाई और ऊंचाई या गहराई। 3डी को इस तरह से समझा जा सकता है कि जैसे एक कागज का पन्ना है जिसकी लंबाई और चौड़ाई तो है लेकिन मोटाई नगण्य है। जब हम इस पन्ने से एक बॉक्स बना देते हैं तो उसमें एक अतिरिक्त आयाम जुड़ जाता है। यानी लंबाई, चौड़ाई के अलावा ऊंचाई या गहराई भी जुड़ जाती है। हम लोग 3डी की अनुभूति करने में सक्षम हैं। हमारे मस्तिष्क और आंखों के काम करने के तरीके पर ही 3डी आधारित होता है। चूंकि हमारी दोनों आंखों की पुतलियों के बीच करीब 6.5 सेमी की दूरी होती है। इसलिए प्रत्येक आंख को कोई भी दृश्य एक अलग कोण से दिखाई देता है। जो अपने आप में विशिष्ट होता है। अब हमारे मस्तिष्क का काम शुरू होता है। वह दोनों दृश्यों को मिलाकर एक बना देता है। दाई आंख और बाई आंख में अंकित छवियों में हल्की भिन्नता को मस्तिष्क उस दृश्य की गहराई के रूप में देखता है। इस तरह से हम 3डी दृश्यों को देखने और समझने में सक्षम होते हैं।

    2डी और 3डी फिल्में

    2डी फिल्में किसी सामान्य तस्वीर की तरह होती हैं। इसे देखकर हम जो अनुभव करते हैं वही 2डी फिल्मों को देखने से होता है। वहीं 3डी में हमें दृश्य की गहराई का अनुभव होता है। इन फिल्मों को शूट करने के लिए दो कैमरों का प्रयोग किया जाता है। दो दृश्यों को एक साथ मिलाकर चित्र को पर्दे पर दिखाया जाता है। इन फिल्मों को बनाने के लिए खास तरीके के मोशन कैमरों का इस्तेमाल होता है। 3डी फिल्मों को देखने के लिए खास तरीके के चश्मे का प्रयोग किया जाता है। अब ऐसी तकनीक उपलब्ध है जिसमें हम किसी 3डी फिल्म को बगैर चश्मे के भी देख सकते हैं।

    कब हुई शुरुआत

    -1890 में ब्रिटिश फिल्मों के प्रवर्तक विलियम ग्रीन्स ने इसकी शुरुआत की थी

    -1922 में लॉस एंजिलिस में 'द पॉवर ऑफ लव' फिल्म को प्रदर्शित किया गया

    -समय के साथ इन फिल्मों में नए प्रयोग किए गए। 1980 में बनी फिल्म 'वी आर बॉर्न ऑफ स्टार' ने 3डी फिल्मों को नया आयाम दिया

    -इसके स्वर्ण युग का प्रारंभ 1952 में बनी फिल्म 'ब्वाना डेविल' से माना जाता है। यह पहली रंगीन त्रि-आयामी फिल्म थी

    देश में 3डी का आगाज

    -1984 में 'माई डियर कुट्टीचथन' नाम से बनी मलयालम फिल्म से 3डी फिल्मों का आगाज हुआ

    -1998 में 'छोटा चेतन' फिल्म को नई तकनीक के प्रयोग और डिजिटल साउंड के साथ प्रस्तुत किया गया। इसने बॉक्स ऑफिस पर 60 करोड़ की कमाई के साथ अपार सफलता हासिल की।

    प्रस्तुति: ऋचा

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