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मुनाफे का कारोबार गीर गाय, दूध 200 और घी बिक रहा है 2000 रुपये प्रति किलो

गुजरात की गीर गाय अब मुनाफे का सौदा बन गयी है इस गाय की कीमत 90 हजार से तीन लाख रुपये तक है। इसका दूध 200 रुपये प्रतिकिलो तक बिकता है और घी की कीमत 2000 रुपये प्रति किलो बतायी गयी है।

By Babita kashyapEdited By: Published: Sat, 10 Oct 2020 11:39 AM (IST)Updated: Sat, 10 Oct 2020 11:45 AM (IST)
मुनाफे का कारोबार गीर गाय, दूध 200 और घी बिक रहा है 2000 रुपये प्रति किलो
गीर गाय अब मुनाफे का कारोबार बन गयी है

अहमदाबाद, शत्रुघ्‍न शर्मा। गीर गाय पशुपालन अब भारी मुनाफे का कारोबार बन गया है। गीर गाय का दूध 70 रुपये से दो सौ रुपये प्रति लीटर तथा घी 2000 रुपये प्रति किलो तक बिक रहा है। सौराष्‍ट्र के गीर जंगल के नाम से गीर गाय का नाम पड़ा है, इनकी कीमत 90 हजार रुपये से साढ़े तीन लाख रुपये तक है। दूध का भाव गाय को खिलाये जाने वाले चारे व उसकी पौष्टिकता पर निर्भर करता है। गुजरात के गौ कृषि जतन संस्‍थान की गौशाला में गायों को जीवंती पाउडर व पलाश के फूल का पाउडर खिलाया जाता है जिससे दूध की गुणवत्‍ता बढ़ जाती है। कोरोना महामारी में आर्थिक संकट के चलते हाल गीर गाय 45 से 60 हजार रुपये में भी बेची जा रही है।

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  गुजरात की गीर गाय राजस्‍थान, मध्‍यप्रदेश, हरियाणा, उत्‍तर प्रदेश से लेकर ब्राजील तक मशहूर है, गाय की पहचान उसकी कदकाठी व शरीर के रंग से ही हो जाती है। स्‍वर्ण कपिला व देवमणी गाय इस नस्‍ल की सबसे श्रेष्ठ गाय मानी जाती है। स्‍वर्ण कपिला 20 लीटर दूध रोजना देती है तथा इसके दूध में फैट सबसे अधिक 7 प्रतिशत होता है। देवमणी गाय एक करोड़ गायों में से एक होती है, इसके गले की थैली की बनावट के आधार पर ही इसकी पहचान की जाती है। राजकोट के जसदण की आर्यमान गीर गौशाला में 400 गायें है, अलग-अलग नस्‍ल के 10 सांड भी हैं। इसके संचालक दिनेश सयाणी बताते हैं गीर गाय हर साल बछडा व 10 माह दूध देती है 2 माह उसे आराम चाहिए।

 गीर गाय की पहचान

लाल रंग, सफेद चकत्‍ते, पीछे की ओर कान से सटकर निकले सींग, लंबे व थैलीनुमा कान, माथे का फलक उभरा, गले की थैली लटकती हुई, गर्दन के पीछे हम्‍प उभरा व आगे के पैरों के बिल्‍कुल ऊपर हो। गाय की पीठ सीधी व बैक बोन चौड़ी हो ताकि दूध अधिक दे सके। चमड़ी पतली, खुर छोटे व चांदनुमा आकार के हों। बंशीधर गौशाला वडोदरा के अजय राणा बताते हैं कि गीर गाय 10 से 20 किलो दूध देती है, केवल क्रॉस ब्रीड की गाय ही 30 किलो तक दूध दे सकती है लेकिन उसकी पौष्टिकता कम होगी। दिव्‍य कामधेनू गौशाला दूध की बिक्री नहीं करते वह केवल घी तैयार कर ऑनलाइन 1950 रु प्रति किलो के भाव से बेचती है।  

 दूध से बढ़ती है गर्भधारण क्षमता

 श्रीगीर गौ कृषि जतन संस्‍थान राजकोट के गोंडल कस्‍बे में है, इनकी गौशाला का दूध 200 रुपये तथा घी 2000 रुपये किलो बिकता है। इसके संचालक रमेश रुपारेलिया बताते हैं कि वे गायों को मौसम के अनुसार ही चारा, पौषाहार व सब्जियां खिलाते हैं। चरक संहिता के अनुसार वे गायों को जीवंती पाउडर भी खिलाते हैं जिससे गाय का दूध आंखों की ज्‍योति बढ़ाने के साथ गर्भ धारण की क्षमता बढ़ाता है। आयुर्वेद के अनुसार गायों को पलाश के फूल का पाउडर खिलाने से उस गाय का दूध मानसिक शांति देने वाला व शरीर को ठंडक प्रदान करता है। साथ ही श्‍वेत प्रदर में भी लाभकारी होता है। सौराष्‍ट्र में एक कहावत भी है कि गौमाता, आयुर्वेद व कृषि का त्रिगुण आयु को आपकी दासी बना देता है। गाय को बीटी कॉटन की खली नहीं खिलानी चाहिए, ऐसी गाय के दूध से नपुंसकता आ सकती है।

 रोगमुक्ति में लाभकारी पंचगव्‍य घी

गौ कृषि जतन संस्‍थान पारंपरिक तरीके से वैदिक ए-2 घी का निर्माण करता है जो 2 हजार रु प्रतिकिलो के भाव से बिकता है। संचालक रमेश रुपारेलिया बताते हैं कि वैदिक घी दही से ही बनाया जाता है, मिट्टी के बर्तन में दही जमाकर, घड़े में ही उसे मथकर मक्‍खन निकालकर। गोबर के उॅपलों से हांडी या पीतल के बर्तन में ही मक्खन को तपाकर घी निकाला जाता है। इसे हांडी या कांच के बर्तन में ही जमा किया जाता है ताकि उसके गुण जस के तस बने रहें। गायों को रजका, गाजर, चुकंदर खिलाने से दूध का पीलापन कम होगा। गन्‍ना खिलाने से दूध पुरुषत्‍व व प्रजनन क्षमता बढ़ाता है। 

 चंदन व सागवान की लकड़ी की मथनी से मथा हुआ घी सबसे अधिक लाभकारी होता है। नीम की लकड़ी की मथनी से डायबिटीज, अर्जुन की छाल लकड़ी से ह्रदयरोग, पीपल की लकडी से बनी मथनी से तैयार घी शरीर में ऑक्‍सीजन के स्‍तर को बढा़ता है जबकि चंदन व साग की मथनी से तैयार घी मानसिक शांति,ऊर्जा प्रदान करता है। एल्‍यूमिनियम, तांबा व बिना कलई के पीतल के बर्तन में तैयार घी का गुणधर्म बिगड़ सकता है।

 मावा केक से बनता है साबुन

घी बनाने के बाद बचे मावा केक से आयुर्वेदिक साबुन भी तैयार किये जाते हैं। इसमें गौमूत्र, रीठा, शिकाकाई, तिल का तेल, चंदन पाउडर, हल्‍दी, लेमन ग्रास का तेल, मुलतानी मिट्टी को उचित मात्रा में मिलाकर साबुन भी तैयार किये जा सकते हैं। गुजरात की कई गौशाला गौमूत्र निशुल्‍क उपलब्‍ध कराती हैं।


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