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    रुद्राक्ष का आध्यात्मिक और औषधीय महत्व

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    Updated: Wed, 21 Nov 2012 02:27 PM (IST)

    हिंदू धर्म में सदियों से पूजा-पाठ, यज्ञ, हवन जैसे शुभ कार्यो में रुद्राक्ष का प्रयोग किया जाता है। रुद्राक्ष के बिना कोई भी धार्मिक अनुष्ठान पूर्ण नहीं होता।

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    हिंदू धर्म में सदियों से पूजा-पाठ, यज्ञ, हवन जैसे शुभ कार्यो में रुद्राक्ष का प्रयोग किया जाता है। रुद्राक्ष के बिना कोई भी धार्मिक अनुष्ठान पूर्ण नहीं होता। अब तो वैज्ञानिक अनुसंधानों के माध्यम से पूरी दुनिया में रुद्राक्ष की गुणवत्ता साबित हो चुकी है। इसके अद्भुत औषधीय गुण प्रयोगशाला में जांच के बाद सही साबित हुए है। इसे धारण करने से शरीर स्वस्थ और मन शांत रहता है।

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    उत्पत्ति की कथा

    वस्तुत: रुद्राक्ष शब्द का संधि विच्छेद है- रुद्र+अक्षि। अर्थात भगवान शिव का नेत्र। इसकी उत्पत्ति और नामकरण के पीछे यह कथा प्रचलित है कि त्रिपुरासुर का वध करते समय रुद्रावतार धारण किए भगवान शंकर की आंखों से बहने वाला जल रुद्राक्ष के रूप में पृथ्वी पर साकार हुआ। इसकी उत्पत्ति के संबंध में यह भी कहा जाता है कि जब हिमालय की पुत्री सती ने स्वयं को हवन कुंड में समाहित कर दिया था तो भगवान शिव ने रौद्र रूप धारण कर लिया था और सती का शव कंधे पर उठा कर ब्रह्मांड का विनाश करने के लिए तांडव नृत्य करने लगे। शिव जी को रोकने के लिए भगवान विष्णु ने अपना सुदर्शन चक्र चलाया, जिससे सती के शरीर के कई टुकड़े हो गए। टुकड़े जहां-जहां हिस्सों में गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ की स्थापना हुई। अंत में भगवान शिव के शरीर पर सिर्फ सती के शरीर का भस्म रह गया। जिसे देखकर वह रो पड़े। इस तरह भगवान शिव के आंसुओं से रुद्राक्ष की उत्पत्ति हुई।

    स्वास्थ्यवर्धक औषधि

    रुद्राक्ष एक वनस्पति है। इसके पेड़ पर बेर जैसे फल लगते है। ये पेड़ हिमालय की तराई में पाए जाते है। रुद्राक्ष के प्रभाव से आसपास का संपूर्ण वातावरण शुद्ध हो जाता है। इसे रातभर भिगोकर रखने के बाद और प्रात:काल नियमित रूप से खाली पेट इसका पानी पीना हृदय रोगियों के लिए बहुतलाभदायक साबित होता है।

    मान्यता के अनुसार, 1 से लेकर 35 मुंह तक के रुद्राक्ष उपलब्ध है। विविध कार्यसिद्धि के लिए विभिन्न रुद्राक्ष उपयोग में लाए जाते है। लेकिन गौरी-शंकर नामक संयुक्त रुद्राक्ष, पैंतीस मुखी एवं एकमुखी रुद्राक्ष बहुत कम प्राप्त होते है। पुराना रुद्राक्ष अधिक प्रभावशाली होता है।

    रुद्राक्ष के विभिन्न प्रकार

    रुद्राक्ष की अलग-अलग किस्मों के लाभ भी अलग होते है। यहां प्रस्तुत है रुद्राक्ष के प्रमुख प्रकार और उनके फायदे:

    एकमुखी रुद्राक्ष: यह आंख, नाक, कान और गले की बीमारियों को दूर करने में सहायक होता है।

    द्विमुखी रुद्राक्ष: यह मस्तिष्क की शांति, धैर्य और सामाजिक प्रतिष्ठा की वृद्धि में सहायक होता है। साथ ही इसे धारण करने से पाचन तंत्र संबंधी समस्याएं भी काफी हद तक दूर हो जाती है।

    पंचमुखी रुद्राक्ष: यह पंच ब्रह्म तत्व का प्रतीक है। यह युवाओं के जीवन को सही दिशा देता है। इससे धन और मान-सम्मान में वृद्धि होती है और यह उच्च रक्तचाप को भी नियंत्रित करता है।

    सप्तमुखी रुद्राक्ष: यह भगवान कार्तिकेय का प्रतीक माना जाता है तथा इसे धारण करने से आंखों की दृष्टि में वृद्धि होती है।

    आमतौर पर चतुर्मुखी रुद्राक्ष शिक्षा के क्षेत्र में सफलता के लिए, पंचमुखी रुद्राक्ष नित्य जप के लिए, षड्मुखी रुद्राक्ष पुत्र प्राप्ति के लिए, चतुर्दश एवं पंचदशमुखी रुद्राक्ष लक्ष्मी प्राप्ति के लिए तथा इक्कीस मुखी रुद्राक्ष ज्ञान प्राप्ति के लिए धारण करने की प्रथा है।

    कैसे धारण करे रुद्राक्ष

    रुद्राक्ष स्वभाव से ही प्रभावी होता है, लेकिन यदि उसे विशेष पद्धति से सिद्ध किया जाए तो उसका प्रभाव कई गुना अधिक हो जाता है। अगर जप के लिए रुद्राक्ष की माला सिद्ध करनी हो तो सबसे पहले उसे पंचगव्य में डुबोएं, फिर साफ पानी से धो लें। हर मनके पर 'ईशान: सर्वभूतानां' मंत्र का 10 बार जप करे।

    यदि रुद्राक्ष के सिर्फ एक मनके को सिद्ध करना हो तो पहले उसे पंचगव्य से स्नान कराएं और उस पर गंगाजल का छिड़काव करें। उसके बाद षोडशोपचार से पूजा करके उसे चांदी के डिब्बे में रखें। हाथों में कुश लेकर उसका स्पर्श रुद्राक्ष से करके इच्छित इष्टमंत्र का जप करे।

    विविध रुद्राक्ष विभिन्न कार्यो के लिए काम में लाए जाते है। इसलिए उनके मंत्र एवं सूक्त भी अलग-अलग है। श्रीसूक्त, विष्णुसूक्त, पवमान रुद्र, मन्युसूक्त, चतुर्दश प्रणवात्मक महामृत्युंजय, शांतिसूक्त, रुद्रसूक्त तथा सौरसूक्त आदि का उपयोग कार्यानुसार रुद्राक्ष सिद्धि के लिए किया जाता है। रुद्राक्ष सिद्ध करना सहज है, लेकिन उसकी सिद्धि बनाए रखना मुश्किल है। असत्य वचन और बुरे व्यवहार आदि कारणों से रुद्राक्ष की सिद्धि कम हो जाती है। अत: इसे धारण करने वाले व्यक्ति को सदाचार का पालन करना चाहिए।

    गले में 108 या 32 रुद्राक्षों की माला पहनने की प्रथा है। हाथों में भी 27, 54 या 108 रुद्राक्षों की माला पहननी चाहिए। भगवान शिव का पूजन करते समय रुद्राक्ष अवश्य धारण करे। शरीर से रुद्राक्ष का स्पर्श होना स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी होता है।

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