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    शक्तिपीठ कामरूप कामाख्या

    By Edited By:
    Updated: Fri, 23 Nov 2012 04:22 PM (IST)

    भारत के उत्तर-पूर्व में स्थित असम की राजधानी है गुवाहाटी। गुवा का अर्थ होता है- सुपारी तथा हाट या हाटी का बाजार। इस प्रकार गुवाहाटी का अर्थ हुआ-सुपारी ...और पढ़ें

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    भारत के उत्तर-पूर्व में स्थित असम की राजधानी है गुवाहाटी। गुवा का अर्थ होता है- सुपारी तथा हाट या हाटी का बाजार। इस प्रकार गुवाहाटी का अर्थ हुआ-सुपारी का बाजार। गुवाहाटी वास्तव में सुपारी के क्रय-विक्रय का केंद्र है, परंतु गुवाहाटी जिस एक दूसरे कारण से भारत में ही नहीं पूरे विश्व में विशेष रूप से विख्यात है वह है यहां स्थित कामरूप कामाख्या देवी का मंदिर।

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    पौराणिक ग्रंथों में उल्लेख

    गुवाहाटी को कामरूप भी कहा जाता है। पौराणिक ग्रंथों में यह उल्लेख मिलता है कि कामदेव की पत्नी रति ने महादेव जी की आराधना करके उन्हे प्रसन्न किया और अपने पति को पुनर्जीवित कर उन्हे नवीन रूप प्रदान करने की विनती की। महादेव ने रति की विनती स्वीकार कर कामदेव को जीवित करके उसे रूप प्रदान किया। चूंकि कामदेव ने इसी स्थल पर अपना रूप प्राप्त किया इसलिए इसे कामरूप भी कहते है। देवी भागवत महापुराण में कामरूप कामाख्या शक्तिपीठ की महिमा का विस्तृत उल्लेख मिलता है। इसमें कहा गया है कि भगवती कामाक्षी देवी का यह स्थल परम तीर्थ स्वरूप है, उत्कृष्ट तपस्थली है, श्रेष्ठ धर्म का आधार है। परम गति प्रदान करने वाले इस शक्तिपीठ की महिमा अपरंपार है।

    एक नाम और भी

    देवी भागवत महापुराण में यह भी उल्लेख मिलता है कि कामदेव ने यहीं भगवान महादेव की तपस्या भंग की थी और महादेव जी ने अपने नेत्रों की अग्नि से कामदेव को भस्म कर दिया था। इस कारण असम की राजधानी गुवाहाटी का एक नाम भस्मास्थल भी है। उसके 12वें अध्याय में यह लिखा है कि जब भगवती सती महादेव शंकर के अनादर के कारण दक्ष यज्ञ में कूद पड़ीं और अपने प्राण त्याग दिए तो शिवजी यज्ञ का विध्वंस करवाकर सती के मृत शरीर को अपने कंधों पर लादकर अशेष ब्रह्माण्ड में घूमने लगे। इसी बीच पृथ्वी पर दैत्य तारकासुर का आतंक बढ़ने लगा। देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की परंतु उन्होंने कहा कि तारकासुर का वध केवल भगवान शिव ही कर सकते है किंतु इस समय सती के शरीर से मोहग्रस्त होकर वे भूमंडल में विचरण कर रहे है। इसलिए उन्हे किसी प्रकार से इस मोह से अलग करना होगा। उसके बाद भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिये। ये अलग-अलग टुकड़े इक्यावन भिन्न-भिन्न स्थलों पर गिरे। कामरूप में सती की योनि गिरी थी। इस कारण असम को कामरूप क्षेत्र कहते है। इस पृथ्वी पर इक्यावन जाग्रत एवं सिद्ध शक्तिपीठ है, उनमें कामरूप कामाख्या क्षेत्र श्रेष्ठ एवं प्रमुख है। जिस स्थल पर भगवती सती के शरीर का हिस्सा गिरा था, उस जगह पर वर्तमान में एक भव्य मंदिर है। असम के राजा नर नारायण ने सन् 1565 में इस मंदिर का निर्माण किया था। इस भव्य मंदिर का नक्शा मधुमक्खी के छत्ते के आकार का बनवाया गया है। इस मंदिर की देवी कामाख्या को काली मां का रूप माना जाता है।

    पूजन विधि

    ऐसा विश्वास है कि तंत्र-मंत्र, जादू-टोना की सिद्धि यहां बहुत आसानी से हो जाती है। यहां साक्षात भगवती स्थित हैं। इस महा शक्तिपीठ के जल में स्नान करके ब्रह्म हत्यारा भी भवबंधन से छुटकारा पा जाता है। देवी पुराण में कहा गया है कि साक्षात भगवान जनार्दन ही यहां जल, द्रव, रूप में विद्यमान हैं। देवी पुराण में ऐसा भी उल्लेख है कि महापीठ कामाख्या के जल में स्नान करके भगवती कामेश्वरी की पूजा-अर्चना एवं स्तुति करनी चाहिए।

    पुराणों में ऐसा भी निर्देश मिलता है कि मानस कुंडादि में स्नान करके तंत्रोक्त विधि से परमेश्वरी भगवती मां कामाख्या की पूजा, जप, हवन आदि करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति मिलती है। इस मंदिर में एक विशेष बात जो देखने को मिलती है- वह है, बलि प्रथा। भगवती को बलि चढ़ाने की प्रथा आज भी यहां प्रचलित है, किंतु अब यह धीरे-धीरे घट रही है। साधक अथवा श्रद्धालु अपनी मनौती पूर्ण होने के बाद पशुबलि के स्थान पर कुछ कबूतरों को यहां मुक्त करके छोड़ देते है।

    कामाख्या मंदिर में प्रात: एवं सायं आरती का दर्शन अलौकिक आध्यात्मिक आनंद से भर देता है। ऐसा लगता है-मानो भगवती पराम्बा कामाख्या सभी एकत्रित श्रद्धालु साधकों को अपनी अमृत-ममता दृष्टि से आप्लावित कर रही है। कामाख्या मंदिर के अलावा, भुवनेश्वरी, उमानंद मंदिर, जनार्दन मंदिर, नवग्रह मंदिर, वशिष्ठ आश्रम आदि अन्य प्रमुख दर्शनीय धार्मिक स्थल हैं।

    तीर्थ की महिमा

    देवी भागवत के सातवें स्कंध के अड़तीसवें अध्याय में यहां स्थित कामाक्षी देवी का माहात्म्य इस तरह बताया गया है कि यह समस्त भूमंडल में देवी का महाक्षेत्र माना जाता है।

    इनके दर्शन, भजन, पाठ-पूजा करने से सभी विघ्नों की शांति होती है। आश्विन तथा चैत्र मास के नवरात्रि में यहां बहुत बड़ा मेला लगता है।

    पहाड़ी पर स्थित कामाख्या मंदिर से उतरने पर गुवाहाटी नगर के सामने ब्रह्मपुत्र नदी के बीच में उमानंद नामक छोटे चट्टानी टापू में शिव मंदिर मिलता है, जिसमें भगवान शिव का दर्शन करने के लिए नौका द्वारा जाना होता है। उमानंद की मूर्ति को लोग भैरव यानी कामाख्या के रक्षक मानते है। मां भगवती की स्तुति में कहा गया है भगवती पारम्बा, परम चेतना और शक्ति के रूप में सभी प्राणियों में स्थित है। उन्हे हम श्रद्धा और विश्वास के साथ प्रणाम करते है।

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