श्राद्ध का मतलब श्रद्धा
श्राद्ध वाले दिन हमें कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए, जैसे की ब्राह़मण को खाना क्यों खिलाते है, क्योंकि पंडित जी वर्ग ज्ञान का ज्ञाता है। ज्ञान देने वाला उपकारी होता है, उपकारी का ध्यान रखना हमारा कर्लव्य होता है।

संवाद सूत्र, नरवाना। पतराम नगर में स्थित जैन स्थानक में प्रवचन देते हुए अचल मुनि महाराज ने कहा कि श्राद्ध का मतलब श्रद्धा है। अपने बुजुर्ग जो इस दुनिया से चले गए हैं, उनके प्रति मन में सद्भावना का होना श्राद्ध कहलाता है। जीते-जी बड़ों की सेवा नहीं की हो, ऐसा लगता हो तो श्राद्ध सफल नहीं होगा। श्राद्ध वाले दिन हमें कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए, जैसे की ब्राह़मण को खाना क्यों खिलाते है, क्योंकि पंडित जी वर्ग ज्ञान का ज्ञाता है। ज्ञान देने वाला उपकारी होता है, उपकारी का ध्यान रखना हमारा कर्लव्य होता है। श्राद्ध वाले दिन प्रतिज्ञा करे कि अपने बड़ों का कुछ सेवा का कार्य करे, जैसे गौशाला में गाय का ध्यान रखना, अनाथालय का ध्यान रखना, गरीब, असहाय, विधवा, रोगी का ध्यान रखेंगे तो श्राद्ध बनाना सफल हो जाएगा। दूसरी बात बताई अपने बड़ों के उपकारों को याद रखें। उनकी बदौलत हम योग्य बनते है। उपकार जताते रहोगे तो आपके पितृ सही रहेगे। आगे प्रतिज्ञा करे, आज हमारे घर पर श्राद्ध है, अपने बड़ों की इज्जत कर उनके मान-सम्मान पर आच नही आने दूंगा तो समझना सच्चा श्राद्ध कर दिया है। अगर जीते जी हमने सेवा नहीं की और उनको सताते रहे, तड़पाते रहे, परेशान करते रहे, कटु वचन बोलते रहे, दुतकारते रहे, वो जाते समय आपसे खुश होकर नही गए। आप स्वयं ही सोचिए कि क्या आपका श्राद्ध लग जाएगा और खुश होकर जाएंगे, श्राद्ध नहीं भी मनाएंगे तो उनका आपके ऊपर आशीर्वाद बना रहेगा। ज्यादातर श्राद्ध डर के कारण करते है कि कहीं हमारे पितृ नाराज ना हो जाएं, इसलिए हमें अपने पितृ के श्राद्ध श्रद्धा से करने चाहिए।
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