भोला नहीं होता भालू
भालू यानी रीछ का नाम सुनते ही भगवान राम की सेना के मंत्री जामवंत याद आ जाते हैं। बच्चों की कविता-कहानियां हों या बड़ों की फिल्में; भारतीय साहित्य हो या विदेशी, यह स्तनधारी प्राणी हर जगह मौजूद नजर आता है। यही नहीं, वन्य जीव संरक्षण कानून के सख्ती से लागू होने से पहले सर्कस से लेकर सड़क तक इनके करतब दिखाया जाना आम बात थी।
एक जीव के दो नाम
शुरुआत करने से पहले यह बता दें कि भालू और रीछ दो अलग-अलग किस्म के प्राणी या करीबी रिश्तेदार नहीं, बल्कि एक ही जीव के दो नाम हैं। हिंदी में ऐसे नामों को पर्यायवाची या समानार्थी कहते हैं। एक बात और, बाल कविताओं में दर्शायी गई इनकी मासूम छवि और 'भालू के नाच' पर मत जाना, असल में यह एक खतरनाक शिकारी प्राणी है।
अलास्का में है हेडक्वार्टर
भारत में भालू नाममात्र की संख्या में ही मौजूद हैं, इनकी असल आबादी तो उत्तरी अमेरिका में अलास्का की खाड़ी के इलाकों में बसती है। अलास्का के कोडियन और एल्यूशन द्वीप भालुओं की आबादी के हेडक्वार्टर हैं। बेहद ठंडा होने के कारण यह इलाका भालुओं के लिए काफी अनुकूल है। इस इलाके में अगस्त में ही सर्दियां शुरू हो जाती हैं। उस वक्त यहां ज्यादातर जानवर खाने की तलाश में इधर-उधर भटकते हैं, पर भालू अपनी छोटी-सी मांद में ज्यादातर वक्त सोकर काटते हैं। अलास्का के इन इलाकों में भालुओं की कुल संख्या 30,000 के लगभग है। यहां अनेक टापू हैं, जहां भालू मस्ती भरी जिंदगी गुजारते हैं। अकेले एल्यूशन द्वीप पर इनकी संख्या 3,000 के करीब है।
700 किलोग्राम तक वजन!
दुनिया में मुख्य रूप से काले और भूरे दो तरह के भालू पाए जाते हैं। मजेदार बात यह है कि मोटे-तगड़े भूरे भालू काले भालुओं से काफी डरते हैं। काले भालू पेड़ पर चढ़ने में माहिर होते हैं, जबकि भूरे भालू अपने भारी-भरकम शरीर की वजह से ऐसा नहीं कर पाते। क्या तुम जानते हो कि अलास्का में पाए जाने वाले भूरे भालू 'जायंट ग्रिजली' का अधिकतम वजन कितना हो सकता है? यह है 700 किलोग्राम! यह नाम इन्हें इनके विशालकाय शरीर की वजह से ही मिला है।
नाक है कमाल
भालू की एक बड़ी खूबी है इनकी नाक। इनकी सूंघने की शक्ति बेमिसाल होती है। यह मीलों दूर से शिकार का पता लगा लेते हैं। एक और रोचक बात। भालू बिना थके घंटों तैर सकते हैं।
फेवरेट डिश है फिश
एक खतरनाक शिकारी के रूप में भालू अपने तेज पंजों से किसी भी जानवर को एक ही बार में ढेर करने का दम रखते हैं, लेकिन इनका सबसे पसंदीदा भोजन है मछली। यह सर्वाहारी जानवर हैं, जो मांस और घास दोनों खा लेते हैं। इनको सीपियां भी बेहद पसंद होती हैं। इनका नमकीन माँस यह बडे़ ही चाव से खाते हैं। अब तुम्हें इनकी डाइट के बारे में बताते हैं। एक भालू एक दिन में करीब 50 से 70 किलो मछली खा सकता है। अलास्का की बात करें तो यहाँ इनके खाने की कोई कमी नहीं होती है, क्योंकि यहां पर इनकी मनपसंद मैसन मछलियों की तादाद बहुत है। यह मछलियों के अंडे खाना भी पंसद करते हैं। अलास्का की खाड़ी के इलाकों में भालुओं के अलावा लोमड़ियां भी खूब रहती हैं। वजह यह है कि लोमड़ियों को इनके छोड़े हुए मांस-मछली के टुकड़े खाने को मिल जाते हैं!
शहद के लिए मंजूर है सूजन
यह तो तुम जानते ही हो कि भालू को शहद बहुत पसंद होता है। पता है यह इसको पाने के लिए मधुमक्खियों का छत्ता तोड़ डालते हैं। मोटी बालदार खाल की वजह से नाराज मधुमक्खियों के डंक का इनके शरीर पर कोई असर नहीं होता, पर अगर कोई मधुमक्खी भालू की नाक पर निशाना साध दे तो यह सूज जाती है!
खतरे में है ध्रुवीय भालू
अपने काले-भूरे रिश्तेदारों से विपरीत भालुओं की दुनिया का सबसे गोरा-चित्र सदस्य है पोलर बीयर या ध्रुवीय भालू। यह मुख्य रूप से आर्कटिक महासागर के बर्फीले क्षेत्रों में पाया जाता है। कनाडा के मनितोबा में हडसन खाड़ी के मुहाने पर स्थित चर्चिल को दुनिया की पोलर बीयर कैपिटल कहा जाता है। ध्रुवीय भालू दुनिया का सबसे बड़ा मांसभक्षी जानवर है। यह लगभग डेढ़ किलोमीटर की दूरी से ही अपना शिकार सूंघ लेता है। इसका मुख्य भोजन मछलियां, सील, ऊदबिलाव जैसे जीव हैं। खाल और चर्बी के लालच में शिकार की वजह से पोलर बीयर की घटती संख्या को देखते हुए अब कई देश इसके शिकार पर प्रतिबंध लगा चुके हैं। शिकार के अलावा इन्हें सबसे ज्यादा खतरा ग्लोबल वार्मिंग से भी है क्योंकि आर्कटिक क्षेत्र में बर्फ तेजी से पिघल रही है!
कहाँ से आया टैडी
बच्चों का सबसे प्यारा साथी 'टैडी बीयर' वर्ष 1902 में दुनिया में आया था। इसे यह नाम अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति थियोडोर रूजवैल्ट के कारण मिला था। टैडी बीयर के इस नामकरण के पीछे एक दिल को छू लेने वाली कहानी है। दरअसल थियोडोर रूजवैल्ट जनता में टैडी के नाम से लोकप्रिय थे। वह 1902 में मिसीसिपी में शिकार करने के लिए गए थे। उनके सामने भालू का एक छोटा बच्चा आया, लेकिन रूजवैल्ट ने उसका शिकार करने से मना कर दिया। यह घटना अमेरिका में सुर्खियों में रही। वाशिंगटन पोस्ट समाचारपत्र ने इस घटनाक्रम पर एक खबर प्रकाशित की और इसके साथ एक कार्टून 'ड्राइंग द लाइन' शीर्षक से छापा। इसे देखकर खिलौना निर्माता मॉरिस और रोज मिकटम ने भालू जैसा एक खिलौना बनाकर उसे नाम दिया टैडी बीयर। टैडी बीयर को अमेरिका और अन्य देशों में काफी लोकप्रियता मिली। इसी लोकप्रियता का परिणाम है कि अब हर साल नौ सितंबर को अमेरिका में टैडी बीयर डे मनाया जाता है!
[सीमा झा]
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