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    Raktanchal Review: डायलॉग और विलेन निकला कमजोर, वर्ना छा जाता 'रक्ताचंल' का खौफ़

    By Rajat SinghEdited By:
    Updated: Thu, 28 May 2020 12:33 PM (IST)

    Raktanchal Review रक्ताचंल उत्तर प्रदेश के क्राइम की कहानी है और साथ में सच्ची घटना से प्रेरित भी है। ऋतम श्रीवास्तव ने वेब सीरीज़ को इसी फॉर्मूल पर गढ़ने की कोशिश की है।

    Raktanchal Review: डायलॉग और विलेन निकला कमजोर, वर्ना छा जाता 'रक्ताचंल' का खौफ़

     नई दिल्ली, जेएनएन। Raktanchal Review: ऑनलाइन स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म्स पर दो बातें इस वक्त काफी कॉमन हो गई हैं। पहली- ये कि तीन से चार घंटे के कंटेंट को कई पार्ट में तोड़कर उसकी वेब सीरीज़ बना दी जाए। दूसरी- अगर हिट करना है, तो क्राइम, हिंसा, गाली और देशी फॉर्मूला अपनाओं। दूसरे मामले में कई सीरीज़ काफी पसंद की गई हैं। जैसे कि अमेज़न प्राइम वीडियो की 'मिर्जापुर', ज़ी-5 की 'रंगबाज़' और नेटफ्लिक्स की 'सेक्रेड गेम्स'। 

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    अब इन्हीं दोनों फॉमूर्ले को अपनाते हुए एमएक्स प्लेयर अपनी नई वेब सीरीज़ 'रक्ताचंल' लेकर आया है। उत्तर प्रदेश के क्राइम की कहानी है और साथ में सच्ची घटना से प्रेरित भी है। ऋतम श्रीवास्तव ने वेब सीरीज़ को इसी फॉर्मूल पर गढ़ने की कोशिश की है। आइए जानते हैं वह इसमें कितने सफल रहे हैं...

    कहानी

    एक समय था, जब उत्तर प्रदेश के गोरखपुर को पूर्वांचल के क्राइम का गढ़ कहा जाता था। मामला तब ठेकेदारी का था। शराब की ठेकेदारी, कोयले की ठेकेदरी और रेलवे की ठेकादारी। कट्टे के दम पर कई बाहुबली अपना वर्चस्व हासिल करना चाहता थे। ऐसी ही एक कहानी है 'रक्ताचंल'। गाज़ीपुर का एक बाहुबली वसीम ख़ान, जिसके पास पूर्वांचल में राजनीतिक समर्थन हासिल है। इसके दम पर वह ठेकदारी समेते कई धंधों पर अपना वर्चस्व जमाए हुए है। उसके गुड़ें गाज़ीपुर एक लोकल नेता को मार देते हैं, जो ठेकदार के ख़िलाफ़ मजदूरों की लड़ाई लड़ रहा होता है। इस लोकल नेता का बेटा विजय सिंह भी बदले की आग में क्राइम की दलदल में उतर जाता है। वह वसीम ख़ान को हर मोर्चे पर टक्कर देता है। तमंचे और बंदूक की इस जंग में लाशों की ढ़ेर लगनी शुरू हो जाती है। अंत में किसका वर्चस्व हासिल होता है, यह जानने के लिए आपको वेब सीरीज़ देखनी होगी। 

    क्या है ख़ास

    सबसे ख़ास है इसकी कहानी। एक सामान्य-सा लड़का कैसे बेवजह क्रिमनल बन जाता है, इसकी कहानी दिखाई गई है। जैसे ज़ी-5 की सीरीज़ 'रंगबाज' और 'रंगबाज फिर से' में दिखाई गई है। कहानी के अलावा निर्देशक ऋतम इस मामले में कामयाब रहे हैं कि वेब सीरीज़ को देखकर आपको पूर्वांचल का अहसास होता है। आपको घाट,बालू के ठेके और कई बार भाषा भी बिल्कुल वैसी ही लगती है। ऐसा लगता है कि कहानी बनारस, गाजीपुर और जौनपुर के आस-पास चल रही है। 

    एक्टर क्रांति प्रकाश झा ने विजय सिंह का किरदार निभाया है। उनकी चाल-ढ़ाल और लुक काफी कुछ उस समय के बाहुबली से मिलती हैं। उनकी एक्टिंग भी ठीक लगती है, लेकिन कहीं भी अरे वाह वाला मोमेंट नहीं आता है।  छोटे-छोटे किरदारों में नज़र आए विक्रम कोचर, प्रमोद पाठक और चित्तरंजन त्रिपाठी की एक्टिंग इसे दखने लायक बनाया है। ख़ास कर शंकी पांडे के किरदार में आप विक्रम को बार बार देखना चाहते हैं। 

    कहां रह गई कमी

    ऐसा नहीं है कि आप भी वही फॉर्मूला हिट करा लें, जो दूसरे करा सकते हैं। क्राइम की कहानी में सिर्फ आप स्टोरी नहीं सुना सकते हैं, इसके लिए इंटेंश पैदा करना भी जरूरी है। यहीं, यह वेब सीरीज़ कमजोर पड़ जाती है। लेखकों की रिसर्च ठीक-ठाक है, लेकिन वह क्राइम की गहराईयों में उतर नहीं पाते हैं। मामला बस वसीम वर्सेस विजय का बनकर रह जाता है। 

    इस वेब सीरीज़ की दूसरी सबसे बड़ी कमजोरी है निकितन धीर की एक्टिंग। ऐसी क्रिमिनल बायोग्राफी में कोई भी हीरो नहीं होता है। लेकिन आपको लीड किरदार से साहनभूति पैदा करनी होती है। जैसा 'गैंग्स ऑफ़ वासेपुर' में फैज़ल ख़ान के साथ होता है। हालांकि, फैज़ल इस मामले में लकी था कि उसके पास रामाधीर सिंह है। इसके लिए विलेन का मजबूत होना जरूरी है। निकितन धीर एक बार भी वसीम ख़ान के किरदार में जान नहीं डाल पाते हैं। ना उनके चहरे पर भाव आता है और ना ही पूर्वांचल का लहजा वो पकड़ पाते हैं। निकितन चेन्नई एक्सप्रेस के 'थंगाबली' ज्यादा लगते हैं। 

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    ऐसी क्रिमनल सीरीज़ के डायलॉग्स भी काफी जबरदस्त होने चाहिए। जैसा आपको 'मिर्ज़ापुर' में देखने को मिलता है। 'रक्ताचंल' के लेखक यहां कमजोर पड़ जाते हैं। उनकी गाली में डायलॉग बनने का दम बिलकुल भी नज़र नहीं आता है। एक दो कोशिश की गई है, लेकिन वह काफी औसत है। 

    अंत में

    अगर आपने नारकोस, मिर्ज़ापुर और रंगबाज़ जैसी वेब सीरीज़ देखी है, तो यह आपको काफी कमजोर लगने वाली है। हालांकि, अगर पूर्वांचल के क्राइम को देखना चाहते हैं, तो रक्ताचंल उनके लिए सही है। पूर्वांचल को जानने वालों के लिए इसकी कहानी भी जानी-पहचानी है। कुल मिलाकर, फिक्स मसाले और सब्जियों के साथ वेज बिरियानी बनाने की कोशिश की गई है, लेकिन अंत में मामला तहरी बनकर रह जाता है।