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    Interview: डॉक्टर फॉस्टर-2 से काफ़ी अलग है 'आउट ऑफ़ लव सीज़न-2', ट्विस्ट देख चौंक जाएंगे दर्शक- पूरब कोहली

    By Manoj VashisthEdited By:
    Updated: Mon, 26 Apr 2021 04:39 PM (IST)

    पूरब अब डिज़्नी प्लस हॉटस्टार की रोमांटिक-थ्रिलर वेब सीरीज़ आउट ऑफ़ लव के दूसरे सीज़न में नज़र आएंगे जो 30 अप्रैल को रिलीज़ हो रही है। जागरण डॉटकॉम के साथ पूरब ने इस सीरीज़ और अपने करियर के अहम पड़ावों के बारे में विस्तार से बातचीत की।

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    Purab Kohli back as Aakarsh in Out Of Love Season 2. Photo- Instagram

    मनोज वशिष्ठ, नई दिल्ली। लंदन में रह रहे फ़िल्म अभिनेता पूरब कोहली ने मनोरंजन जगत में काफ़ी लम्बा सफ़र तय किया है। महज़ 17 साल की उम्र में काम शुरू करने वाले पूरब डिजिटल कंटेंट की दुनिया के सबसे 'उम्रदराज़' कलाकार माने जा सकते हैं, क्योंकि पश्चिम में जन्मे ओटीटी प्लेटफॉर्म पर पूरब ने तब काम करना शुरू कर दिया था, जब भारतीय मनोरंजन इंडस्ट्री में ओटीटी की दस्तक भी नहीं हुई थी। 2020 में ज़ी5 पर आयी लंदन कॉन्फिडेंशियल फ़िल्म और 2019 में नेटफ्लिक्स की सीरीज़ टाइपराइटर में मुख्य किरदारों में दिख चुके हैं।

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    पूरब अब डिज़्नी प्लस हॉटस्टार की रोमांटिक-थ्रिलर वेब सीरीज़ आउट ऑफ़ लव के दूसरे सीज़न में नज़र आएंगे, जो 30 अप्रैल को रिलीज़ हो रही है। जागरण डॉटकॉम के साथ पूरब ने इस सीरीज़ और अपने करियर के अहम पड़ावों के बारे में विस्तार से बातचीत की।

    'आउट ऑफ़ लव- सीज़न 2' ब्रिटिश धारावाहिक डॉक्टर फॉस्टर के दूसरे सीज़न का अडेप्टेशन है या अलग कहानी पर बना है?

    डॉक्टर फॉस्टर के दूसरे सीज़न का ही रीमेक है। मेन स्टोरी लाइन तो वही है, मगर भारतीय दर्शकों के अनुसार दूसरे सीज़न में भी बदलाव किये गये हैं। इसकी स्टोरी लाइन में भी कुछ ट्विस्ट जोड़े गये हैं। बदलाव के साथ काम काफ़ी बढ़ जाता है। जैसे, पहले सीज़न में सोनी राजदान जी (आकर्ष की मां) वाले किरदार को ओरिजिनल में ओल्ड एज होम में डाल दिया गया था। हमारे देश में ओल्ड एज होम हैं, लेकिन यहां लोग माता-पिता को ओल्ड होम एज में नहीं भेजते। इसलिए आउट ऑफ़ लव सीज़न 1 में हम उस किरदार को घर ले आते हैं।

    यह कहने में तो आसान है लगता कि उस कैरेक्टर को घर के एक कमरे में डाल लिया, लेकिन महज़ उस किरदार की मौजूदगी से दृश्यों में कई बदलाव करने पड़ते हैं। हर सीन को वो इफेक्ट करता है। एक्टर्स को भी सोचना पड़ता है कि अगर हम चिल्ला रहे हैं और उस कमरे में मां बैठी है तो फिर उस हिसाब से दृश्यों में, राइटिंग में बहुत सारे बदलाव हो जाते हैं। इसी तरह सेकेंड सीज़न में भी कुछ बदलाव किये गये हैं। स्टोरी लाइन को भी ट्विस्ट किया गया है तो जिन दर्शकों ने डॉक्टर फॉस्टर का दूसरा सीज़न देख रखा है, वो भी आउट ऑफ़ लव का दूसरा सीज़न देखकर चौंकेंगे।

     

     

     

     

     

     

     

     

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    आपको मासूम चेहरे वाला कलाकार माना जाता है। ऐसे में आकर्ष की निष्ठुरता और निर्दयता को पर्दे पर पेश करना कितना मुश्किल रहा?

    धृष्टता और क्रूरता आकर्ष के किरदार के दो एटीट्यूड हैं। मैं रियल लाइफ़ में ऐसा नहीं हूं। आकर्ष जैसा एटीट्यूड मैं दिखाना भी चाहूं तो बतौर पूरब कोहली नहीं दिखा पाऊंगा। (मुस्कुराते हुए) एक्टर होने की अच्छी बात यह है कि कुछ भी बन जाओ आप। लोग कहते हैं कि काम के लिए कर रहे हैं। किरदार में यह एटीट्यूड कहां से आता है? यह राइटिंग में होता है या फिर कैरेक्टर की बैकस्टोरी जब आप बुन रहे होते हैं, तब आता है।

    पिछले सीज़न में उसके साथ क्या हुआ था, वो सारी इमोशंस के अनुसार किरदार के ईगो को बनाया गया। पहले सीज़न के अंत में आकर्ष का ईगो पूरी तरह चकनाचूर हो जाता है। उसके किरदार की जो एक ठसक थी, वो चूर-चूर हो चुकी है। उसका आडम्बर ख़त्म हो चुका है। उसकी ज़िंदगी चरमरा चुकी है। अब उसे ख़ुद को रिबिल्ड करना पड़ता है। जिस इंसान (डॉ. मीरा कपूर) ने उसको तोड़ दिया था, उसको तोड़ना चाहता है। दूसरा सीज़न इसी पर आधारित है। मेरे लिए यह मुश्किल नहीं था, चैलेंजिंग था। जो आप हैं नहीं, उसके लिए दर्शकों को कंविंस करना कि आप ऐसे हो सकते हैं।

     

     

     

     

     

     

     

     

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    ओटीटी प्लेटफॉर्म पर काम करने वाले शुरुआती कलाकारों में आप शामिल हैं। इस शुरुआत के बारे में बताइए।

    2014 में मुझे सेंस 8 का ऑफ़र आया था। शो के डायरेक्टर्स द वाचोव्स्कीस (The Wachowskis- Lana and Lilly Wachowski ) 'द मैट्रिक्स' (1999) फ़िल्म बना चुके थे, जो मेरी फेवरिट फ़िल्म है। मुझे उनके साथ काम करने का मौक़ा मिला और मैंने वो लपक लिया। मैंने उस वक़्त सोचा भी नहीं था कि क्या बन रहा है, कैसे बन रहा है? उसके दो सीज़न और एक ग्रैंड फ़िनाले था। पहले सीज़न में मेरा काम बहुत कम था। बस 8-10 दिन का काम था। मैंने बिना पढ़े-बिना जाने हां बोल दिया, क्योंकि उनके साथ काम करना था। फ़िनाले में मेरा कैरेक्टर काफ़ी बड़ा बन गया था।

    सेंस 8 करके मैं उसे भूल गया था, क्योंकि शो इंडिया में आया नहीं था और मुझे पता नहीं था कि कैसे देखूं। फिर 6 महीने बाद जब मैं किसी काम से लंदन आया था। एक रेस्टरां में बैठा हुआ था। दो-तीन लोग साइड में खुसुर-पुसुर करने लग गये। मैंने एक पिक्चर की थी, माई ब्रदर निखिल, जो फ्रांस में बहुत लोकप्रिय हुई थी। ये लोग फ्रेंच थे और फ्रेंच में ही कुछ बात कर रहे थे। मुझे लगा कि उन्होंने माई ब्रदर निखिल देखी होगी, उसी की बात कर रहे होंगे। फिर एक वेटर आया और उसने पूछा- एक्सक्यूज़ मी सर, आर यू राजन रसल फ्रॉम सेंस 8? (माफ़ कीजिए सर, क्या आप सेंस 8 के राज रसल हैं? ) फिर मुझे याद आया, 'अच्छा... हां... हां यार... मैंने एक शो किया था।' फिर मेरी अभी जो वाइफ़ हैं, तब गर्लफ्रेंड थीं, उनके नाम पर नेटफ्लिक्स एकाउंट खोलकर मैंने शो देखा था।

    आपने अलग-अलग माध्यमों में काफ़ी अलग काम किया है। वीजे बने, फिर एक्टिंग की। सबसे अधिक पसंद किस माध्यम को करते हैं?

    सभी अलग-अलग फॉर्मेट हैं। मुझे वीजेइंग में बहुत मज़ा आया था। आठ साल तक वीजे रहा था। बहुत सारे ट्रैवल शोज़ किये थे। 1998 से लेकर 2006 तक, मैंने जो काम किया था, वो बहुत मज़ेदार था। यह कहने में मुझे गर्व होता है कि 30 का होने से पहले मैंने पूरा देश घूम लिया था। वी ऑन द रन, फ्रीडम एक्सप्रेस, गॉन इंडिया जैसे शोज़ किये। उस वक़्त बैगपैककिंग नाम की चीज़ किसी को पता भी नहीं थी और हम लोग बैगपैक करके पूरे देश में घूम रहे थे। बसों और ट्रेनों से घूम रहे थे। मैं लोगों से कहता हूं कि मेरी एजुकेशन ट्रवैलिंग है, क्योंकि मैंने बहुत कम उम्र में भारत-भ्रमण कर लिया था। मैं भारत को देखते हुए समझदार हुआ हूं। 1999 में मैंने अमरकंटक से लेकर भरुच तक नर्मदा को फॉलो किया था। वो एक अलग दौर था। अब बस एक्टिंग करना चाहता हूं।

    मैंने अलग-अलग मीडियम पर एक्टिंग की है। जैसे, शरुआत मैंने टीवी पर हिप-हिप हुर्रे से की थी। उसके बाद मैंने फ़िल्में में काम किया। 'बस यूं ही' पहली फ़िल्म थी, सुपारी भी साथ में रिलीज़ हुई थी। रॉक ऑन, एयरलिफ्ट और जल जैसी फ़िल्में कीं। 23-24 साल में बहुत काम किया है। अब मैं सिर्फ़ एक्टिंग करना चाहता हूं। मैंने जब काम करना शुरू किया था, 17 साल का था। मैं यही काम जानता हूं। मुझे सेट पर भेज दीजिए, मैं ख़ुश रहूंगा। एक्टिंग हो या प्रोडक्शन हो। स्पॉटबॉय का काम भी कर लूंगा। सेट पर पहुंचकर लगता है, घर आ गया हूं।

    मैंने सेट पर रहकर बहुत कुछ सीखा है। मैंने साउंड का काम भी किया है। माई ब्रदर निखिल में मैं सिर्फ़ इसलिए क्लैप दे रहा था, क्योंकि मुझे घर नहीं जाना था। शूटिंग में ब्रेक था तो वो मुझे गोवा से वापस भेज रहे थे। मैंने कहा, यहीं कुछ काम दे दो तो क्लैपर का काम दे दिया था। मैंने बतौर प्रोड्यूसर और डायरेक्टर भी काम किया है, मगर अंतत: मैं एक्टर हूं। माध्यम कोई भी हो। एक्टिंग करूंगा। थिएटर भी करना चाहूंगा। हालांकि, ज़्यादा नहीं किया है।

    प्रोजेक्ट चुनते वक़्त आपके लिए क्या अहम है कहानी, किरदार या निर्देशक? 

    पहली च्वाइस कहानी होती है। अभी लंदन में एक प्रोजेक्ट आया था, किरदार बहुत अच्छा था, मगर कहानी पसंद नहीं आयी। कहानी से शुरुआत होती है। फिर किरदार को देखते हैं, मेकर्स को देखते हैं। प्रोड्यूसर कौन है। डायरेक्टर कौन है। प्लेटफॉर्म देखते हैं। कहां रिलीज़ होगा? उससे ऑडिएंस का साइज़ पता चलता है कि कितने लोग देखेंगे। फिर मैं लोकेशन भी देखता हूं कि शूट कहां पर हो रही है। क्योंकि यह सुबह 9 से शाम 5 बजे तक की जॉब तो है नहीं कि काम ख़त्म करके घर चले गये। सोने के लिए अपना बिस्तर मिल गया। कई बार कई महीनों के लिए बाहर रहना पड़ता है। आप अपना घर छोड़कर जाते हैं तो ऐसी जगह होनी चाहिए, जहां आपको ख़ुशी मिले।