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    Jamtara Sabka Number Aayega Review: शानदार एक्टिंग और डायरेक्शन के लिए देख सकते हैं नेटफ्लिक्स की वेबसीरीज़ 'जामताड़ा'

    By Rajat SinghEdited By:
    Updated: Tue, 14 Jan 2020 12:23 PM (IST)

    Jamtara Sabka Number Aayega Review वेब सीरीज़ में एक अलग किस्म की लव स्टोरी है जो इसकी सबसे ख़ास बात है। इसके अलावा कुछ खामियां हैं आइए जानते हैं...

    Jamtara Sabka Number Aayega Review: शानदार एक्टिंग और डायरेक्शन के लिए देख सकते हैं नेटफ्लिक्स की वेबसीरीज़ 'जामताड़ा'

    नई दिल्ली, [रजत सिंह]। Jamtara Sabka Number Aayega Review: नेटफ्लिक्स इस साल की पहली ओरिजिनल हिंदी वेब सीरीज़ 'जामताड़ा सबका नंबर आएगा' लेकर आ चुका है। 10 एपिसोड की यह वेब सीरीज़ क़रीब 2.30 घंटे में ख़त्म हो जाती है। सीरीज़ में झारखंड के जिले जामताड़ा की कहानी दिखाई गई है। दिखाया गया है कि कैसे वहां के आपराधिक तत्व किसी के साथ भी आसानी से फ्रॉड करते हैं। इस वेब सीरीज़ में कुछ खामियां हैं, तो कुछ मजबूती भी। आइए जानते हैं...

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    रियलिस्टक बैकग्राउंड- जामताड़ा की सबसे ख़ास बात है कि यह अपने आपको रियलिस्टक बनाए रखने की कोशिश करती है। एक या दो सीन छोड़कर बाकी जगह यह इस बात का अहसास करती है कि कहानी झारखंड के किसी गांव में चल रही है। डायरेक्टर सौमेंद्र पाधी ने इस विषय पर काफी शानदार काम किया है। कहानी में उनकी रिसर्च साफ़ नज़र आती है। लोगों की बोली, सेट और माहौल बिलकुल देसी हैं। सौमेंद्र पाधी इससे पहले बुधिया सिंह बॉर्न टू रन जैसी फ़िल्म बना चुके हैं, जिसमें डिटेलिंग के लिए उनकी तारीफ़ भी हुई थी।

    कहानी- वेब सीरीज़ सच्ची कहानी से प्रेरित है। मतलब कि यह सच्ची घटना पर आधारित एक फिक्शनल वेब सीरीज़ है। कहानी पर काफी मेहनत से काम किया गया है। फिशिंग के तरीके का अध्ययन किया गया है। दो भाइयों के बीच के झगड़े की कहानी के जरिए इस क्राइम को डिकोड किया गया है। सामाजिक ताने-बाने को भी साधने की कोशिश की गई है। कहानी में लोकल विधायक भी हैं, जिनकी छत्रछाया में क्राइम फल-फूल रहा है। वहीं, लाचार पुलिस और सिस्टम को अतिनाटकीयता के बिना दिखाया गया है। 

    स्क्रीनप्ले- जामताड़ा का स्क्रीनप्ले कहानी से न्याय करता नज़र आता है। पूरी कहानी को महाभारत का एंगल देनी की कोशिश की गई है। दो अतिरिक्त किरदारों के ज़रिए स्क्रीनप्ले को महाभारत की प्रमुख घटनाओं और पात्रों से जोड़ने की कोशिश की गयी है, जो काफी अटपटा लगता है। इनके बिना भी स्क्रीन प्ले को बुना जा सकता था। वहीं, पुलिस को लाचार दिखाने के लिए बृजेश भान और बिस्वा पाठक का किरदार परफेक्ट है। स्क्रीनप्ले में लोकल मीडिया के सहारे छोटी जगहों पर हिंदी पत्रकारिता के हालात पर भी चोट की गई है। 

    एक्टिंग- वेब सीरीज़ का सबसे जबरदस्त पार्ट एक्टिंग है। अमित स्याल नेता बृजेश भान के रोल में जमते हैं। वहीं, दिब्येंदु भट्टाचार्य लाचार पुलिस वाले बिस्वा पाठक के रूप में परफेक्ट लगते हैं। स्पर्श श्रीवास्तव (सनी मंडल), अंशुमन पुष्कर (रॉकी मंडल), मोनिका पवार (गुडिया) अपने अभिनय से ध्यान खींचने में कामयाब रहे हैं। हालांकि, एसपी जामताड़ा का किरदार निभाने वाली अक्षा परदसानी और भी शानदार काम कर सकती थीं, लेकिन वह ऐसा नहीं कर पाती है। कुछ दृश्यों में वो अपने किरदार से न्याय नहीं कर सकी हैं।

    सबसे अच्छी और सबसे कमज़ोर बात- वेब सीरीज़ में एक अलग किस्म की लव स्टोरी है, जो इसकी सबसे ख़ास बात है। वहीं, वेब सीरीज़ का अंत जबरदस्ती की पोएटिक जस्टिस लगती है। आप इसमें क्राइम की गहराई की उम्मीद रखते हैं, लेकिन इस मामले में यह निराश करती है। इसे और शानदार बनाया जा सकता था।