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Hasmukh Review: नेटफ्लिक्स की नई वेब सीरीज़ 'हसमुख' में क्या है ख़ास, जानें

Hasmukh Review इस सीरीज़ में कुछ नया करने का प्रयास करने की कोशिश की गई है। आइए जानते हैं इसमें मेकर्स ने किस हद तक सफलता हासिल की है...

By Rajat SinghEdited By: Published: Sun, 19 Apr 2020 07:33 PM (IST)Updated: Wed, 22 Apr 2020 09:28 AM (IST)
Hasmukh Review: नेटफ्लिक्स की नई वेब सीरीज़ 'हसमुख' में क्या है ख़ास, जानें
Hasmukh Review: नेटफ्लिक्स की नई वेब सीरीज़ 'हसमुख' में क्या है ख़ास, जानें

नई दिल्ली (रजत सिंह)। Hasmukh Review: नेटफ्लिक्स ने कोरोना वायरस लॉकडाउन (Coronavirus Lockdown) के बीच अपनी वेब सीरीज़ हसमुख रिलीज़ कर दी है। 17 अप्रैल यानी शुक्रवार को रिलीज़ हुई इस वेब सीरीज़ को नेटफ्लिक्स पर अच्छा रिस्पॉन्स मिल रहा है। इसके जरिए लंबे समय के बाद वीर दास ने वापसी भी की है। हालांकि, वह नेटफ्लिक्स के स्टैंडअप कॉमेडी शो में नज़र आते रहे हैं। उनके साथ इस सीरीज़ में एक्टर रणवीर शौरी भी शामिल हैं। 10 एपिसोड की वेब सीरीज़ को  निखिल गोंसाल्विस ने निर्देशित किया है।  आइए जानते हैं, इसमे क्या है ख़ास...

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कहानी

वेब सीरीज़ की कहानी की शुरुआत उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले से होती है। यहां हसमुख नाम का कॉमेडियन है, जो अपने गुरु गुलाटी के गुलाम जैसा है। ना तो घर में इज्ज़त है और ना ही स्टेज़ पर। इसके बाद एक दिन उत्तेजना में आकर वह अपने गुरु गुलाटी की हत्या कर देता है। फिर वह पहली बार स्टेज़ पर आता है और लोगों को हंसाना शुरू करता है। इस कड़ी में उसकी मुलाकात गुलाटी के मैनेजर जिम्मी द मेकर से होती है। वह उसके लिए शोज़ की व्यवस्था करता है। लेकिन हसमुख की एक समस्या है कि बिना हत्या किए वह कॉमेडी नहीं कर सकता है। इसका जुगाड़ जिम्मी करता है। एक दिन उसका वीडियो वायरल होता है और वह मुंबई के एक टीवी शो में पहुंच जाता है। वहां, उसके पीछे पुलिस पड़ जाती है। एक तरफ शो हैं, दूसरी तरफ हत्याएं। क्या हसमुख सब संभाल पता है? यह जानने के लिए आपको सीरीज़ देखनी होगी।

क्या लगा अच्छा

सबसे ख़ास बात है कि इस सीरीज़ में एक अगल किस्म का प्रयोग किया गया है। स्टैंडअप और ड्रामा को एक साथ लाने का प्रयास किया गया है। इसके अलावा सीरीज़ में सबसे ख़ास है एक्टिंग। जिम्मी द मेकर के किरदार में रणवीर शौरी कई बार गज़ब का काम करते हैं। वीर दास के साथ उनकी जोड़ी जमती भी है। इसके अलावा छोटे-छोटे किरदारो में नज़र आए शांतनु घटक, रजा मुराद, अमृता बागची और इनामुल हक काफी सही लगते हैं। मनोज पावा, रवि किशन और सुहेल नैय्यर के किरदार को और बेहतर किया जा सकता था। निर्देशक ने सीरीज़ को बचाने की कोशिश की है। आपको हर एक एपिसोड के बाद एक उम्मीद जगती है कि कुछ होगा। वहीं, किरदार, लोकशन का भी ख्याल रखा गया है।

कहां रह गई कमी

हर एपिसोड के बाद उम्मीद होती है कि आगे कुछ होगा, लेकिन ऐसा होता नहीं है। अंत तक आप इस सीरीज़ में रोमांच का इंतज़ार करते रहते हैं। वेब सीरीज़ की कहानी काफी कमजोर है। इसे लंबा घसीटा गया है। जैसे कि रियलिटी शोज़ को फिनाले तक ले जाया जाता है। वीर दास जो लेखकों की टीम में शामिल हैं, वह ना तो अपने जोक्स से, ना ही अपनी परफॉर्मेंस से हंसा पाते हैं। स्टैंडअप और डार्क थ्रिलर को मिलाने का असफल प्रयास किया गया है। आप जोक्स पर हंसना चाहते हैं, लेकिन वह काफी पुराने हैं। हालांकि, कई बार नए दौर के हिसाब से पॉलिटिक्ल व्यंग करने की कोशिश की गई है, लेकिन वह सही नहीं बैठती है। सीरीज़ अलगे एपिसोड के लिए उत्साहित करती है, लेकिन अगले सीज़न के लिए नहीं।

अंत में

पूरी सीरीज़ में काफी अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया गया है। कभी-कभी यह जस्टिफाई नहीं कर पाती है। वही, इस सीरीज़ को देखकर लगता है कि काफी प्रयास के बाद भी यह उस लेवल तक नहीं पहुंच पाती है, जितना की इसे जाना चाहिए था। सीरीज़ को सिर्फ इसकी एक्टिंग बचाने का काम करती है। 


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