Bahut Hua Samman एक्टर संजय मिश्रा ने कहा- ओटीटी पर लोग मेरी वो फ़िल्म देख रहे हैं, जो थिएटर में नहीं देखते
Bahut Hua Samman एक्टर संजय मिश्रा ने कहा है कि मुझे ओटीटी का कांसेप्ट अच्छा लगा। मेरी वे फिल्में भी देखी जा रही हैं जो थिएटर में शायद लोगों ने नहीं ...और पढ़ें

नई दिल्ली, जेएनएन। बीते दिनों संजय मिश्रा अभिनीत कॉमेडी फिल्म 'बहुत हुआ सम्मान' डिज्नी प्लस हॉटस्टार पर रिलीज हुई। इन दिनों संजय उत्तराखंड में फिल्म 'कुतुब मीनार' की शूटिंग कर रहे हैं। न्यू नॉर्मल के बीच शूटिंग के अनुभवों और इन फिल्मों को लेकर उनसे बातचीत के अंश...
न्यू नॉर्मल में शूटिंग का अनुभव कैसा है?
मैं जिस फिल्म की शूटिंग उत्तराखंड में कर रहा हूं उसका नाम 'कुतुब मीनार' है। इस न्यू नॉर्मल में निर्माता और निर्देशक सब यही कोशिश कर रहे हैं कि कम से कम यूनिट में काम हो। पहले सेट पर भीड़ बढ़ जाती थी, अब इसे अवॉइड किया जा रहा है। शूटिंग के दौरान भी शारीरिक दूरी बनाए रखने की कोशिश है, लेकिन हर शॉट में मुमकिन नहीं हो पाता। लॉकडाउन के बाद हमने बनारस में फिल्म 'वो तीन दिन' की शूटिंग भी खत्म की है। लॉकडाउन की वजह से इसकी शूटिंग रुकी हुई थी।
इतने लंबे कॅरियर में अपने लिए अलग तरह के किरदार चुनने के लिए कौन सी बातें प्रेरित करती हैं?
हमारी इंडस्ट्री में कलाकारों को स्टीरियोटाइप कर दिया जाता है। वह जैसा किरदार करते आए हैं, उसी तरह के किरदार बार-बार ऑफर होते रहते हैं। फिल्म का कांसेप्ट हमेशा से मुझे फिल्में करने के लिए प्रेरित करता है। इसलिए मैं वैरायटी किरदार कर पा रहा हूं। 'बहुत हुआ सम्मान' के निर्देशक आशीष शुक्ला बहुत ही स्टाइलिश निर्देशक हैं। मैंने अपने पूरे कॅरियर में इस तरह की पहली फिल्म की है।
आप सम्मान देने और सम्मान पाने वाले कांसेप्ट में कितना यकीन रखते हैं? बहुत हुआ सम्मान वाली भावना आपमें कब जागती है?
आप कहीं किसी का इंतजार किए जा रहे हैं और वह व्यक्ति नहीं आ रहा है तो लगता है बस बहुत हुआ सम्मान, जब घर में घरेलू सहायक नहीं आते तो लगता है कि बहुत हुआ सम्मान, आज बर्तन खुद ही धो लेते हैं। हर एक की जिंदगी में ऐसा वक्त आता है, जब ऐसी भावना मन में जागती है। जब आप अपनी तरफ से सम्मान दिए जा रहे हैं और सामने वाले की तरफ से उस तरह का सम्मान नहीं मिल रहा है तो यह भावना आनी ही है।
डिजिटल पर स्टार पावर की जरूरत नहीं होती है, क्या यह बात महसूस करते हैं?
स्टार पावर एक अलग चीज होती है। आपको फिल्म में एक ऐसा इंसान चाहिए, जिसके नाम पर लोग सिनेमाघर तक आएं तो वह बन जाता है स्टार। अब डिजिटल की वजह से उद्देश्य यह हुआ है कि कंटेंट क्या होना चाहिए? अब लोग पूछते हैं कि कहानी क्या है? अब किसी दूसरी दुनिया की कहानी की नहीं, बल्कि लोगों के बीच की कहानी होती है। पहले अगर कहते कि हीरो की मां गर्भवती हो जाती है तो निर्माता भगा देते, लेकिन अब 'बधाई हो' जैसी फिल्म बनी और पसंद की गई। मुझे ओटीटी का कांसेप्ट अच्छा लगा। मेरी वे फिल्में भी देखी जा रही हैं, जो थिएटर में शायद लोगों ने नहीं देखीं। घरवालों के साथ मिलकर फिल्में और नाटक देखना एक सांस्कृतिक अनुभव होता है। यह संस्कृति खत्म नहीं होनी चाहिए। (प्रियंका सिंह से बातचीत के आधार पर)

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