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    Aashram Review: बॉबी देओल के 'आश्रम' में मिल गई एंट्री, लेकिन कहानी अभी बाकी मेरे दोस्त!

    By Rajat SinghEdited By:
    Updated: Sun, 30 Aug 2020 08:20 AM (IST)

    Aashram Review बॉबी देओल की वेब सीरीज़ आश्रम के पास काफी कुछ कहने को है लेकिन अगले सीज़न में। पढ़िए पूरा रिव्यू...

    Aashram Review: बॉबी देओल के 'आश्रम' में मिल गई एंट्री, लेकिन कहानी अभी बाकी मेरे दोस्त!

    नई दिल्ली, रजत सिंह। Aashram Review: बॉबी देओल ने भी वेब सीरीज़ की दुनिया में कदम रख ही दिया है। प्रकाश झा के निर्देशन में बनी एमएक्स प्लेयर की वेब सीरीज़ 'आश्रम' में वह बाबा निराला काशीपुर वाले के किरदार में नज़र आए। रिलीज़ से पहले ही लोगों को आकर्षित कर रही यह सीरीज़ आठ एपिसोड की है। हालांकि, इसके बावजूद कहानी पूरी नहीं हो सकी है। पहले पार्ट में सिर्फ भूमिका बनाकर छोड़ दिया गया है। आइए जानते हैं ये भूमिका क्या पूरी किताब पढ़ने के लिए ललचाती है या नहीं। 

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    कहानी

    कहानी बाबा निराला काशीपुर वाले की है। बाबा का एक बड़ा आश्रम है। इस आश्रम में दान-धर्म का काम होता है। बाबा सामाजिकरूप से पिछड़े लोगों की मदद करता है। उसके पास स्कूल, कॉलेज, हॉस्पिटल और वृद्धा आश्रम जैसी ना जाने कितनी संपतियां हैं। बाबा के इस मायाजाल में लोग आसानी फंस जाते हैं। लोगों को आश्रम में रहने की छूट है। यहां काम और सैलरी भी दी जाती है। बाबा की अपनी राजनीतिक पकड़ है। सत्ताधारी पार्टी और विपक्षी पार्टी दोनों ही अपने लाभ के लिए मत्था टेकते हैं। बाबा के आश्रम का प्रबंधन देखते हैं भूपेंद्र सिंह यानी भोपा। भोपा ही बाबा दूसरा पहलू है। भोपा सबकुछ मैनेज करता है। कैसे किसे निपटाना है। इस बीच एक हाइप्रोफाइल प्रोजेक्ट में काम के दौरान एक कंकाल मिलता है। इस कंकाल की जांच करने के लिए इंस्पेक्ट उजागर सिंह ड्यूटी लगाई जाती है। इसके बाद उजागर धीरे-धीरे उन कड़ियों तक पहुंचता है, जो हत्यों को सीधे बाबा से जोड़ती हैं। क्या बाबा पुलिस के चंगुल में आता है, यह जानने के लिए आपको वेब सीरीज़ देखनी होगी। 

    क्या लगा ख़ास

    - वेब सीरीज़ की सबसे ख़ास बात है कि प्रकाश झा की राजनीतिक और जातिगत समझ। वह इससे पहले भी आरक्षण और अपहरण जैसी फ़िल्मों में इसका उदाहरण दे चुके हैं। उन्हें बताया है कि कैसे सामाजिक रूप से पिछड़े और प्रताणित लोगों को बाबा अपने जाल में आसानी से फंसाते हैं। इसके अलावा कैसे आरक्षण की टीस लोगों में देखने को मिलती है। उजागर सिंह का एक डायलॉग है- 272 नंबर पाकर वह मेरा सीनियर बन गया। वहीं, उस घटना भी फ़िल्म गया है कि कैसे जाति विशेष के लोग दूसरी जाति विशेष के लोगों को घोड़ी नहीं चढ़ने देते हैं। और इस मतभेद का फायदा बाबा और राजनेता उठाते हैं। अनुभव सिन्हा की 'आर्टिकल 15' के बाद एक ऐसा क्राफ्ट है, जिसमें इस मुद्दे पर खुलकर बोला गया है। 

    -वेब सीरीज़ कहानी भी आपको जानी पहचानी लगेगी। इसकी कहानी को काफी हदतक रियलिस्टक रखा गया है। सेवादारों का शोषण, आश्रम में नशे का चलन, बाबा का महिलाओं पर अत्याचार, लोगों की जमीन हड़पन लेना और बहुत कुछ। यह कुछ ऐसा है, जिस आपने हाल में टीवी पर सुना और अखबारों में पढ़ा है। हालांकि, संस्पेंस को बरकार रखा है। 

    - बॉबी देओल की बात करें, तो उन्होंने कोई बहुत उम्दा प्रदर्शन नहीं किया है। हालांकि, वह ढोंगी बाबा का पूरा अहसास कराते हैं। उजागर सिंह का किरदार निभाने वाले दर्शन कुमार फ्रेश फिल कराते हैं। वहीं, रक्ताचंल जैसी वेब सीरीज़ में अपने एक्टिंग से लोगों का दिल जीतने वाले विक्रम कोचर (साधु) एक बार मामला बनाते नज़र आते हैं। रंग दे बंसती जैसी फ़िल्मों में नज़र आ चुके चंदन रॉय भी भोपा के किरदार को बखूबी निभाया है। एक्ट्रेस की बात करें, तो आदिति सुधीर और त्रिद्धा चौधरी आकर्षित करती हैं। 

    कहां रह गई कमी

    -इतना सब कुछ पढ़कर ये मत समझिए की 'आश्रम' में सब चंगा है। कहानी को जबरन खीचने की कोशिश की गई है। वहीं, दूसरी बात यह है कि इस कहानी को टीवी पर इससे पहले इतनी बार सुनाया गया है कि आप कहीं-कहीं स्किप करके आगे बढ़ जाते हैं। क्या बाबा पकड़ा जाएगा, यहीं फैक्टर वेब सीरीज़ को बचाकर रखता है। 

    - वेब सीरीज़ में कई किरदार हैं। सब किरदारों को अपना स्कोप है। हालांकि, सीरीज़ इतने किरदारों के बावजूद कहीं उभरकर सामने नहीं आ पाती है। कहने का मतलब है कभी भी रफ्तार नहीं पकड़ती है। बहुत कुछ होने के बाद भी औसत बनकर रह जाती है। 

    अंत में

    बॉबी देओल के 'आश्रम' में मिल गई एंट्री, लेकिन कहानी अभी बाकी मेरे दोस्त। दरअसल, पहला पार्ट ख़त्म होने पर आपको लगेगा कि यह तो सिर्फ इसकी भूमिका है। हालांकि, दूसरे पार्ट लोग इंतज़ार कर सकते हैं। लेकिन यह इंतज़ार मिर्जापुर 2 की तरह नहीं होने वाला है।