टीवी शो फाल्तू में सख्त पिता की भूमिका निभा रहे हैं अभिनेता महेश ठाकुर
स्क्रीन पर सीधे-सादे स्वभाव वाली छवि के लिए प्रसिद्ध अभिनेता महेश ठाकुर स्टार प्लस के धारावाहिक फाल्तू में सख्त पिता जनार्दन मित्तल की भूमिका निभा रहे हैं। बीते तीन दशक से टीवी और फिल्समों में सक्रिय महेश का कहना है कि जीवन में कुछ भी फालतू नहीं होता है

दीपेश पांडेय
चरित्र को मिली मूंछें
इस शो के आकर्षण और अपने चरित्र के बारे में महेश बताते हैं, इस शो में एक सख्त पिता, बिजनेस टाइकून और परिवार के मुखिया जनार्दन मित्तल की भूमिका मुझे अब तक के सारे कामों से अलग लगी। वह चाहता है कि उसका बेटा भी उसी के नक्शेकदम पर चले। शूटिंग के समय मैं इस भूमिका को क्लीन शेव के साथ फिल्माना चाहता था, लेकिन लोगों ने कहा कि आपकी छवि एक नर्म स्वभाव की है। इस भूमिका में थोड़ा वजन चाहिए। जनार्दन बहुत सख्त इंसान है, जो ज्यादा हंसता नहीं है। निर्माता-निर्देशक ने मेरी भूमिका को मूंछों के साथ दिखाने का निर्णय लिया। (हंसते हुए) चूंकि, मूंछें चिपकने के बाद वैसे भी आप ज्यादा मुस्करा नहीं सकते हैं।
प्यार से समझाता हूं
वास्तविक जीवन में बच्चों के साथ अपने व्यवहार पर महेश कहते हैं, मैं बहुत मजे से रहने वाला पिता हूं और दोस्ताना माहौल में रहता हूं। मैं चाहता हूं कि मेरे बच्चे अनुशासन का पालन करें, लेकिन मैं बहुत ज्यादा अनुशासन में रखने वाला पिता नहीं हूं। मैं बच्चों को डांटता नहीं हूं और उनके लिए कभी कोई सख्त कदम नहीं उठाता हूं। गलतियां होने पर मैं उन्हें प्यार से समझाता हूं और बताता हूं कि जिंदगी को कैसे जिया जाता है। हालांकि यह भी है कि मैं उसूलों वाला आदमी हूं और अपने उसूलों से कभी पीछे नहीं हटता हूं।
कुछ भी फालतू नहीं
जीवन में घटित या शामिल किसी फालतू लगने वाली चीजों के बारे में महेश कहते हैं, इंसान के जीवन में कुछ भी फालतू नहीं होता है। हर चीज की एक वजह होती है, जो भगवान हमसे कराना चाहता है। आगे जाकर आपको उसका नतीजा देखने को मिलता है। वो वजह भले ही हमें नहीं पता होती है और उस समय हमारे दिमाग में आता है कि फालतू में ही फलां काम कर लिया, लेकिन जिंदगी में कोई भी चीज फालतू नहीं होती है।
प्रगतिवादी शो में बढ़ती दिलचस्पी
डिजिटल प्लेटफार्म के दौर में भी अक्सर टीवी धारावाहिकों पर पुराने फार्मूले पर चलने का आरोप लगाया जाता है। इस पर महेश कहते हैं, टेलीविजन की ज्यादातर चीजें टीआरपी के आधार पर चलती हैं। हम कलाकार कोई बदलाव नहीं ला सकते हैं। हम तो ज्यादातर टीआरपी के लिए काम करते हैं। फिल्म हो या धारावाहिक जो चलता है, निर्माता वैसी ही चीजें आगे भी बनाते हैं। सिर्फ दर्शक ही बदलाव ला सकते हैं। अब मैं देख रहा हूं कि पुरानी सोच वाले धारावाहिकों की इतनी ज्यादा टीआरपी नहीं आ रही है। अब लोग शिक्षित हो चुके हैं, अब वह प्रगतिवादी शो देखना पसंद कर रहे हैं।
निर्णय अपने हाथों में
टीवी धारावाहिकों के वर्षों तक चलने वाले लंबे प्रारूप को लेकर कुछ कलाकारों की शिकायत भी होती है। इस पर महेश कहते हैं, कई कलाकार सोचते हैं कि कोई अच्छा काम पकड़ो, जहां पर कम से कम दो-तीन साल काम चलता रहे। मैं भी ऐसे ही सोचता हूं। आमतौर पर टीवी में कलाकार एक साल का कान्ट्रैक्ट साइन करता है। इसके बाद उसका कान्ट्रैक्ट रिन्यू किया जाता है। अगर कलाकार को किसी शो में ज्यादा समय तक बंधे रहने की शिकायत होती है तो कान्ट्रैक्ट खत्म होने के बाद वह अपनी मर्जी से प्रोजेक्ट छोड़ सकता है। निर्णय लेना तो आपके हाथों में होता है, आप सिर्फ शिकायत नहीं कर सकते हैं। मैं अपने समय और प्रोजेक्ट्स का प्रबंधन स्वयं करता हूं। मैं निर्माताओं से अपनी मीटिंग खुद तय करता हूं और डेट्स भी खुद ही देता हूं। इसीलिए मैं टेलीविजन के साथ बाकी चीजें भी कर पाता हूं।
सेल्फी और चकदा एक्सप्रेस कतार में
इतने अनुभव के बाद काम की प्राथमिकताओं और आगामी प्रोजेक्ट्स पर महेश कहते हैं, हम किसी काम का चुनाव नहीं करते, बल्कि लोग हमें अपने काम के लिए चुनते हैं। यह कहना गलत होगा कि मैं फलां तरह का काम चुन रहा हूं। अच्छा काम बहुत कम मिलता है। इसलिए आपको सतर्क होना जरूरी है कि जब आपके पास अच्छा काम आए तो आप उसे जाने ना दें। आगे सेल्फी और चकदा एक्सप्रेस (पूर्व महिला क्रिकेटर झूलन गोस्वामी की बायोपिक) जैसी फिल्मों के तौर मेरे दो प्रोजेक्ट कतार में हैं। दोनों ही फिल्मों में मैंने अच्छा और अलग काम किया है। सेल्फी में मेरी महत्वपूर्ण भूमिका है। इसमें मैं शुरू से लेकर अंत तक अक्षय कुमार के साथ रहता हूं।
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