Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    So Long Valley Review: सो लॉन्ग और बोरिंग कहानी, सस्पेंस से भरी इस मूवी का नहीं है कोई सिर-पैर

    Updated: Fri, 25 Jul 2025 06:15 PM (IST)

    सस्पेंस थ्रिलर फिल्मों का क्रेज ऑडियंस के बीच साफ तौर पर देखने को मिलता है। ऐसे में हाल ही में एक फिल्म थिएटर में रिलीज हुई है जिसका टाइटल है सो लॉन्ग वैली। सस्पेंस और क्राइम थ्रिलर की कहानी दिखाने के चक्कर में मेकर्स दर्शकों को क्या पेश करना चाहते हैं यहीं गड़बड़ी कर दी। नीचे पढ़ें फिल्म की पूरी कहानी

    Hero Image
    कैसी है सस्पेंस थ्रिलर फिल्म सो लॉन्ग वैली, पढ़ें रिव्यू/ फोटो- Jagran Graphics

    स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। सस्पेंस और मर्डर मिस्ट्री वाली फिल्मों के लिए शिमला, मनाली जैसे लोकेशन फिल्मकारों के पसंदीदा रहे हैं। ऐसी जगहों पर उन्हें कहानी को रहस्यमयी बनाने के लिए अच्छे मौके मिलते हैं। सो लांग वैली की कहानी भी शिमला और मनाली के बीच रखी गई है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    क्या है 'सो लॉन्ग वैली' की कहानी?

    मनाली पुलिस स्टेशन में मौशमी (अलीशा परवीन) अपनी बहन रिया (आकांक्षा पुरी) की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखवाने आती है। वह शिमला से मनाली के लिए टैक्सी ड्राइवर कुलदीप (विक्रम कोचर) की टैक्सी में बैठती है। मनाली पुलिस स्टेशन की इंस्पेक्टर सुमन (त्रिधा चौधरी) केस की जांच करती है। शिमला पुलिस से इंस्पेक्टर देव (मान सिंह) भी इसमें शामिल होता है। फोन की लोकेशन से पता चलता है कि रिया सो लांग वैली के आसपास कहीं है। आगे की कहानी के लिए फिल्म देखनी होगी।

    यह भी पढ़ें- Mahavatar Narsimha Review: पौराणिक कथाओं का शानदार चित्रण, विष्णु भगवान के 10 में से चौथे अवतार की कहानी

     

    Photo Credit- Youtube

    निर्देशक ही है फिल्म का अभिनेता

    मान सिंह ने फिल्म में अभिनेता, निर्देशक-निर्माता और लेखक चारों की जिम्मेदारी उठाई है। कहानी का प्लाट रोमांचक है, जिसमें एक लड़की सो लांग वैली में गायब है। उसे ढूंढने का तरीका दिलचस्प हो सकता था। सस्पेंस दिखाने का पूरा मौका था। लेकिन पुलिस की अजीबो-गरीब जांच का तरीका, उस बीच होने वाले घटनाक्रम, संवाद और क्लाइमैक्स इसे कमजोर कहानी और ऊबाउ बना देते हैं।

    पुलिस को शुरुआती दौर में रिया की फोन लोकेशन से पता चल जाता है कि वो सो लांग वैली में है। लेकिन मनाली और शिमला पुलिस, वहां टीम भेजने की बजाय बस बेकार की पूछताछ में लगे रहते हैं। एक सीन में टीवी पर दिल्ली के निर्भया केस को मुंबई का बताकर दिखाया जाता है, लेकिन फिर भी लड़की को ढूंढने में पुलिस कोई तत्परता नहीं दिखाती। सुमन बस परेशान होकर पुलिस स्टेशन में बैठी रहती है, तो वहीं इंस्पेक्टर देव ख्याली पुलाव और पुलिस की टीमें बनाते रहता है। दोनों का ही अतीत भी है, जिसका कहानी से कोई लेना-देना नहीं।

    Photo Credit- Youtube

    इन सवालों के फिल्म में नहीं मिलेंगे कोई जवाब 

    सुमन अपने ब्वायफ्रेंड से कटी-कटी सी क्यों रहती है, नहीं पता। फिल्म में अचानक से देव को हीरोइक दिखाने के लिए बैकग्राउंड म्यूजिक बज जाता है, जो हास्यास्पद लगता है। पुरुषसत्तात्मक समाज में महिलाओं की जिस स्थिति पर मान सिंह बात करना चाहते थे, वह एक संवाद में ही सिमट कर रह जाता है। फिल्म के अंत में यौन उत्पीड़न का मामला भी है, जिसमें पुलिस की सहायता लेने की बजाय रिया का अपने ही अपहरण का प्लान बनाना बेवकूफी भरा लगता है। हालांकि, सिनेमैटोग्राफर श्रीकांत पटनायक ने अपने कैमरे से फिल्म को थोड़ा बहुत रोमांचक बनाने का सफल प्रयास किया है।

    Photo Credit- Youtube

    सिर्फ एक एक्टर की वजह से देख पाएंगे फिल्म

    आश्रम में अपने अभिनय से ध्यान आकर्षित करने वाली त्रिधा की भूमिका फिल्म में थकी-थकी सी लगती हैं, लेकिन अपने संवादों पर उनकी पकड़ मजबूत है। मान सिंह का पात्र को यूं तो सख्त दिखना था, लेकिन बेकार की डायलॉगबाजी और स्वैग के चक्कर में वह न प्रभावशाली लगते हैं, न ही सख्त। आकांक्षा पुरी को अगर अभिनय के क्षेत्र में ही रहना है, तो उन्हें बहुत मेहनत करने की जरुरत है। उनके चेहरे पर डर या खुशी का भाव ही नहीं दिखता। अच्छा कलाकार कैसे कमजोर कहानी में भी बेहतरीन काम कर सकता है, यह विक्रम कोचर सिखाते है। सनकी व्यक्ति की भूमिका में उन्होंने कमाल का काम किया है।

    यह भी पढ़ें- Sarzameen Review: बाप-बेटे की लड़ाई के बीच मां निकली हीरो, इब्राहिम ने नहीं किया निराश, दमदार कहानी फिर कहां रह गई कमी?