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Sandeep Aur Pinky Faraar Movie Review: मंजिल तक पहुंचने पर डगमगाई फिल्म संदीप और पिंकी फरार

प्रेग्नेंसी के दौरान साफ-सफाई के बीच रहने का महत्व परिणीति एक डायलॉग के जरिए बताती हैं कि देश में 30 प्रतिशत बच्चे इंफेक्शन की वजह से मां के पेट में मर जाते हैं। फिल्म कई मुद्दों पर बात करती है लेकिन अंजाम तक कोई मुद्दा नहीं पहुंचा है।

By Rupesh KumarEdited By: Published: Sat, 20 Mar 2021 03:08 PM (IST)Updated: Sun, 21 Mar 2021 07:47 AM (IST)
Sandeep Aur Pinky Faraar Movie Review: मंजिल तक पहुंचने पर डगमगाई फिल्म संदीप और पिंकी फरार
2017 से बननी शुरू हुई फिल्म संदीप और पिंकी फरार आखिरकार सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है।

प्रियंका सिंह, मुंबईl साल 2017 से बननी शुरू हुई फिल्म संदीप और पिंकी फरार आखिरकार सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। अर्जुन कपूर और परिणीति चोपड़ा की एकसाथ यह तीसरी फिल्म है। कहानी शुरू होती है एक शूटआउट के साथ। वह शूटआउट बैंकर संदीप वालिया उर्फ सैंडी (परिणीति चोपड़ा) के लिए प्लान किया गया था। लेकिन सतिंदर दहिया उर्फ पिंकी (अर्जुन कपूर) की सूझ-बूझ की वजह से वह बच जाती है। पिंकी हरियाणा पुलिस से सस्पेंडेड है, उसे अपनी नौकरी वापस चाहिए। अपने सीनियर त्यागी (जयदीप अहलावत) के कहने पर वह सैंडी को धोखे से उसकी बताई हुई जगह पर लेकर जाने वाला होता है कि उसके आगे चल रही गाड़ी पर हमला हो जाता है।

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पिंकी समझ जाता है कि यह हमला सैंडी पर होने वाला था। पिंकी सैंडी को लेकर भारत-नेपाल बॉर्डर के पास बसे पिथौरागढ़ पहुंच जाता है, जहां से दोनों नेपाल जाने की योजना बनाते है। खोसला का घोसला, ओए लकी!लकी ओए! जैसी फिल्मों का निर्देशन कर चुके दिबाकर ने इस फिल्म का निर्देशन किया है। उनसे अच्छी कहानी और निर्देशन की उम्मीदें भी होती है। उनकी कहानी का प्लॉट अच्छा था, जिसमें बैंकर सैंडी अपने बैंक को बचाने के लिए एक स्कीम के जरिए एक बड़ा घोटाला करती है, उस घोटाले का पर्दाफाश न हो जाए, इसलिए उसका बॉस उसे रास्ते से हटाना चाहता है।

 

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फिल्म के पहले हिस्से का 20-25 मिनट आपको कहानी से बांधकर रखता है कि अब क्या होने वाला है। लेकिन उसके बाद कहानी खुलने लग जाती है और फिर बिखर जाती है। बैंक के स्कैम को दिबाकर एक्सप्लोर नहीं करते हैं, न ही क्लाइमेक्स में उस स्कैम की गंभीरता को दिखाते हैं। बस, परिणीति के जेल के डायलॉग्स में ही उसे खत्म कर दिया जाता है। फिल्म के कई किरदार ऐसे हैं, जो कहानी में दिलचस्प लगते हैं, लेकिन फिर वह फिल्म से गायब हो जाते हैं। अर्जुन के किरदार की भी कोई पिछली कहानी नहीं है, मसलन- पिंकी को हरियाणा पुलिस से क्यों सस्पेंड किया गया है, क्यों वह एक अनजान लड़की की मदद कर रहा है।

 

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फिल्म में परिणीति का काम सराहनीय है। शुरू से लेकर अंत तक वह अपने अभिनय से अंचभित करती हैं। सतही कहानी को उन्होंने अपने अभिनय से संभालने की कोशिश की। अर्जुन कपूर अपने किरदार में जंचते हैं, लेकिन उनका बढ़ा वजन किरदार के मुताबिक अखरता है। क्लाइमेक्स में उनका लुक चौंकाएगा। जयदीप अहलावत का किरदार बहुत कमजोर नजर आता है। बुजुर्ग युगल बने नीना गुप्ता और रघुबीर यादव बैंक के स्कैम से पीड़ित छोटे से रोल में प्रभाव छोड़ते हैं।

रघुबीर का डायलॉग फैमिली में हो, जॉब क्यों करना, मिस्टर काम करते हैं ना पित्तसत्तात्मक विचारधारा की ओर इशारा करती है। वहीं प्रेग्नेंसी के दौरान साफ-सफाई के बीच रहने का महत्व परिणीति एक डायलॉग के जरिए बताती हैं कि देश में 30 प्रतिशत बच्चे इंफेक्शन की वजह से मां के पेट में मर जाते हैं। फिल्म कई मुद्दों पर बात करती है, लेकिन अंजाम तक कोई मुद्दा नहीं पहुंचा है। भारत-नेपाल बॉर्डर के पास बसे पिथौरागढ़ की लोकेशन नई लगती है। अनु मलिक की आवाज में गाया फरार… गाना असर नहीं छोड़ता।

मुख्य कलाकार – अर्जुन कपूर, परिणीति चोपड़ा, नीना गुप्ता, रघुबीर यादव, जयदीप अहलावत

निर्देशक :  दिबाकर बनर्जी

अवधि :  दो घंटा छह मिनट

स्टार :  2.5


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