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Rocketry Movie Review: अंतरिक्ष में मुकाम दिलाने वाले Nambi Narayanan की कहानी में माधवन का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन

Rocketry Movie Review नम्बि की भूमिका में माधवन ने किरदार को बहुत बारीकी से समझा है। युवावस्‍था से लेकर प्रौढ़ावस्था तक नम्बि के उमंग उत्‍साह देशप्रेम के जज्‍बे और जीवन की कठिनाइयों को चित्रित करने में वह सहज नजर आते हैं।

By Priti KushwahaEdited By: Published: Fri, 01 Jul 2022 03:54 PM (IST)Updated: Fri, 01 Jul 2022 03:54 PM (IST)
Rocketry Movie Review: अंतरिक्ष में मुकाम दिलाने वाले Nambi Narayanan की कहानी में माधवन का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन
Photo Credit : R Madhavan Instagram Photo Screenshot

स्मिता श्रीवास्‍तव। वर्ष 2019 में रिलीज फिल्‍म मिशन मंगल में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के वैज्ञानिकों द्वारा भारत के पहले मार्स ऑर्बिटरी मिशन (मंगलयान) के सफल परीक्षण की कहानी प्रदर्शित की गई थी। नवंबर, 2013 में मंगलयान को लांच किया गया था। एक साल से कम समय में इस सैटेलाइट ने मंगल की आर्बिट में प्रवेश कर इतिहास रच दिया था।

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भारत ने अपने पहले ही प्रयास में हॉलीवुड फिल्‍म के बजट से भी कम खर्चे में यह अभूतपूर्व सफलता हासिल की थी। इस सफलता में विकास इंजन का बहुत बड़ा योगदान है, जिसे इसरो के पूर्व वैज्ञानिक नम्बि नारायण और उनकी टीम ने बनाया है। धरती पर रहकर अंतरिक्ष की दुनिया में भारत को शीर्ष पर देखने का सपना देखने वाले नम्बि वर्ष 1994 में जासूसी का आरोप लगने के बाद सुर्खियों में आए थे। हालांकि बाद में सारे आरोप झूठे साबित हुए। सरकार ने उन्‍हें पद्म भूषण से भी सम्‍मानित किया। नम्बि की इसी यात्रा पर अभिनेता आर माधवन ने फिल्‍म 'राकेट्री : द नम्बि इफेक्‍ट' का निर्माण किया है। इस फिल्‍म का लेखन, निर्देशन करने के साथ वह इसके सहनिर्माता भी हैं।

फिल्‍म नवंबर, 1994 में तिरुअनंतपुरम स्थित नम्बि के घर से आरंभ होती है। पूरा घर शादी में जाने की तैयारी में है। जब अखबार में छपी खबर जंगल में आग की तरह फैलती है। मंदिर गए नम्बि (आर माधवन) को केरल पुलिस मंदिर के बाहर गिरफ्तार कर ले जाती है। उनके और उनके परिवार के साथ बर्बरतापूर्वक बर्ताव होता है, जबकि वे समझ ही नहीं पाते हैं, अचानक से यह उनके साथ क्‍या हो रहा है। 19 साल बाद मंगलयान की सफलता का जिक्र होता है। नम्बि बॉलीवुड के किंग खान यानी शाह रुख खान को अपना इंटरव्यू देने जाते हैं। वहां से उनके जीवन की परतें खुलना शुरू होती है। कार्यक्रम की शुरुआत नम्बि के गुरु और भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के पितामह विक्रम साराभाई (रजित कपूर) से होती है।

इसरो में वह विक्रम साराभाई और कलाम (गुलशन ग्रोवर) जैसे वैज्ञानिकों साथ काम कर रहे होते हैं। फिर नम्बि अमेरिका की प्रिंसटन यूनिवसिर्टी में जाकर रिकार्ड समय में अपनी थिसिस पूरी करके और अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के लुभावने प्रस्‍ताव को छोड़कर स्‍वदेश लौटते हैं। अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत को आगे बढ़ाने को लेकर वह भारतीय वैज्ञानिकों की एक टीम के साथ वाइकिंग इंजन को संयुक्त रूप से विकसित करने के लिए फ्रांस के वर्नोन जाते हैं। नम्बि इसे विक्रम साराभाई के नाम पर विकास इंजन नाम देते हैं) उस तकनीक को सीखने के बाद भारत आकर उस पर काम करने, जासूसी का आरोप के बाद की प्रताड़ना सहने जैसे पहलुओं पर कहानी गहराई से जाती है।

माधवन की तारीफ करनी होगी कि उन्‍होंने ऐसी कहानी चुना जिससे काफी लोग नावाकिफ होंगे। खास बात यह है कि सिनेमाई लिबर्टी के नाम पर उन्‍होंने जबरन नाच गाना नहीं ठूसा है। इस फिल्‍म को बनाने के पीछे माधवन की मंशा अच्‍छी है, लेकिन पर्दे पर साकार करने में कहीं-कहीं वह चूक गए हैं। मध्यांतर से पहले विज्ञान संबंधी काफी बातचीत है। यह बातचीत अंग्रेजी में है। हिंदी में उसका सबटाइटल भी नहीं दिया गया है। उसे आम इंसान के लिए समझना थोड़ा कठिन होगा। इसमें मध्यांतर के बाद नम्बि पर लगे जासूसी आरोप के बाद उनके साथ पुलिस, समाज के बर्बरतापूर्वक व्‍यवहार को देखकर आप सिहर जाते हैं। अगर आपने नम्बि नारायण की आत्‍मकथा 'रेडी टू फायर: हाउ इंडिया एंड आई सरवाइव्ड द इसरो स्पाई केस' पढ़ी है तो कहानी के साथ बहुत सहजता से जुड़ते जाते हैं। फिल्‍म के आखिर में उन्‍हें पद्म भूषण से नवाजे जाने की क्‍लिप भी है।

नम्बि की भूमिका में माधवन ने किरदार को बहुत बारीकी से समझा है। युवावस्‍था से लेकर प्रौढ़ावस्था तक नम्बि के उमंग, उत्‍साह, देशप्रेम के जज्‍बे और जीवन की कठिनाइयों को चित्रित करने में वह सहज नजर आते हैं। बतौर निर्देशक यह उनकी पहली फिल्‍म है। राकेट साइंस तकनीक को बेचने के आरोप के बाद उनके ओर उनके परिवार के साथ बर्बर व्‍यवहार को उन्‍होंने बहुत संजीदगी से दर्शाया है। कई दृश्‍य आपको भावुक कर जाते हैं। हालांकि बायोपिक फिल्‍मों में नायक की भूमिका को दिखाने के लिए अन्य किरदारों को दरकिनार कर दिया जाता है।

राकेट्री में भी यही समस्‍या नजर आती है। नम्बि के साथ उन्नी (सैम मोहन), परम (राजीव रवींद्रनाथन) और सरताज सिंह (भावशील साहनी) बतौर टीम उनके साथ होते हैं लेकिन उनके हिस्‍से में कुछ खास नहीं आया है। विक्रम साराभाई और इसरो के चेयरमैन सतीश धवन के योगदान को भी फिल्‍म ज्‍यादा दर्शाती नहीं है। फिल्म में राजनीतिक गतिरोध को दर्शाने का भी प्रयास नहीं हुआ है। न ही किसी नौकरशाही का। जबकि अपनी किताब में पूर्व आइएएस टी एन शेषन का नम्बि ने खुद जिक्र किया है। पत्‍नी की भूमिका में सिमरन प्रभावित करती हैं। मेहमान भूमिका में शाह रुख को देखना अच्‍छा लगता है। देश को अंतरिक्ष के क्षेत्र में मुकाम दिलाने वाले नम्बि की यह फिल्‍म कुछ खामियों के बावजूद देखी जाने वाली फिल्‍म है।

फिल्‍म रिव्‍यू: राकेट्री : द नम्बि इफेक्‍ट

प्रमुख कलाकार : आर माधवन, सिमरन, रजित कपूर, सैम मोहन, राजीव रवींद्रनाथन, भावशील साहनी

लेखक और निर्देशक : आर माधवन

अवधि : 157 मिनट

स्‍टार : तीन


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