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    Rautu Ka Raaz Review: 'कॉल लिस्ट निकालो', खूबसूरत वादियों में क्राइम पेट्रोल जैसी लगती है नवाजुद्दीन की फिल्म

    Updated: Fri, 28 Jun 2024 05:30 PM (IST)

    ओटीटी स्पेस में कई मर्डर मिस्ट्री इस वक्त मौजूद हैं। इन्हीं में अब नया नाम रौतू का राज का जुड़ा है जो पहाड़ों पर मौजूद एक स्कूल की वार्डन के कत्ल की कहानी है। फिल्म में नवाजुद्दीन सिद्दीकी पुलिस इंस्पेक्टर के रोल में हैं जो इस केस की तफ्तीश करता है। साथ ही अपने अतीत की एक घटना से भी जूझ रहा है।

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    रौतू का राज जी5 पर आ गई है। फोटो- इंस्टाग्राम

    प्रियंका सिंह, मुंबई। पहाड़ों की खूबसूरती, वहां पर शाम होते ही पसरने वाला सन्नाटा लेखकों को अपनी मर्डर मिस्ट्री वाली कहानियां के लिए परफेक्ट जगह लगती है। तभी तो पिछले दिनों आरण्यक, मिथ्या, कैंडी, द लास्ट आवर समेत वेब सीरीज की कहानियों में पहाड़ों को केंद्र में रखा गया है। 

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    जी5 पर रिलीज हुई फिल्म 'रौतू का राज' उससे अलग नहीं। कहानी उसी ढर्रे पर मसूरी में नेत्रहीन बच्चों के स्कूल की वार्डन की हत्या से शुरू होती है। शुरुआती दौर में लगता है कि मौत हार्ट अटैक की वजह से हुई है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चलता है कि मौत का कारण संदिग्ध है।

    क्या है फिल्म की कहानी?

    पुलिस अफसर दीपक नेगी (नवाजुद्दीन सिद्दीकी) और उसका असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर नरेश डिमरी (राजेश कुमार) मामले की जांच करते हैं। 15 वर्षों में रौतू के बेली में कोई मर्डर नहीं हुआ है। ऐसे में वहां के पुलिस को भी ज्यादा मेहनत और खोजबीन करने की आदत नहीं है।

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    वहीं, दीपक अपने अधूरे प्यार की वजह से अपनी ही दुनिया में रहता है। उसे इस केस में कुछ ऐसा मिलता है, जिसमें उसकी अपनी दिलचस्पी होती है। स्कूल के ट्रस्टी से लेकर, वहां के टीचर्स, काम करने वाले लोग शक के दायरे में आते हैं, लेकिन अंत में हत्या का असली कातिल जानकर थोड़ी हैरानी होती है।

    कैसा है स्क्रीनप्ले और अभिनय?

    लेखक और निर्देशक आनंद के साथ शारीक पटेल ने मिलकर कहानी लिखी है। उन्होंने फिल्म की अवधि को कम रखने की चतुराई दिखाई है। कुछ दृश्य फिल्म में जरूर हैं, जो हिसाब-किताब लगाने पर मजबूर करते हैं कि कातिल कहीं ये तो नहीं। फिल्म का क्लाइमेक्स चौंकाने वाला है, लेकिन कानून के दायरों से बाहर है, तो शायद सही ना लगे।

    खैर, फिल्में कई बार रचनात्मकता के नाम पर इन चीजों से आजाद होती हैं। थ्रिलर फिल्म है, तो बैकग्राउंड स्कोर की कमी साफ झलकती है। कई अनसुलझे सवाल भी हैं, जैसे दीपक और उसकी गर्लफ्रेंड का ट्रैक अधूरा सा है, डिमरी के पांच बच्चे न भी होते तो कहानी में क्या फर्क पड़ जाता?

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    दीपक के किरदार को अच्छा इंसान दिखाना क्यों जरूरी था? नेत्रहीन बच्चे बड़ी कुशलता से सीढ़िया चढ़ लेते हैं, क्रिकेट खेल लेते हैं, वह ऐसा कैसे कर पा रहे हैं, उन्हें कैसे ट्रेनिंग दी जा रही है, जबकि स्कूल में सुविधाएं भी कम हैं।

    जब-जब दीपक का किरदार कहता है कि संदिग्ध की कॉल लिस्ट निकालो तो लगता है कि क्राइम पेट्रोल शो देख रहे हैं, जिसमें आधे केस ऐसे ही सुलझाए जाते थे। सिनेमैटोग्राफी सयक भट्टाचार्य ने पहाड़ों की खूबसूरती को कैमरे में कैद करने का जितना मौका मिला, उन्होंने उसे छोड़ा नहीं।

    अभिनेता नवाजुद्दीन सिद्दीकी पहले ही कह चुके हैं कि वह अपनी कहानियां चुनने के लिए आजाद हैं। कमजोर कहानी में भी स्क्रीन पर उनकी मौजूदगी सारी कमियां मिटा देती है। राजेश कुमार साबित करते हैं कि वह कॉमेडी से इतर भी हर तरह के किरदार को करने की क्षमता रखते हैं।

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    ट्रस्टी की भूमिका में अतुल तिवारी ने ठीकठाक काम किया है। स्कूल के नेत्रहीन बच्चों रजत और दीया की भूमिका में क्रमश: प्रथम राठौड़ और दृष्टि गाबा बेहद मासूम लगे हैं। कहानी में गहराई भी इन्हीं के पात्र लाते हैं।