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    Rashmi Rocket Review: महिला एथलीटों के स्वाभिमान की लड़ाई 'रश्मि रॉकेट', जानें- कैसी है तापसी पन्नू की फ़िल्म

    By Manoj VashisthEdited By:
    Updated: Sat, 16 Oct 2021 07:02 AM (IST)

    Rashmi Rocket Review कहानी भुज की रश्मि वीरा की है। दौड़ना उसका गॉड-गिफ्ट है। उस पर एक आर्मी कैप्टन गगन ठाकुर की नज़र पड़ती है तो उसके टैलेंट से प्रभावित होकर एथलेटिक्स प्रतिस्पर्द्धाओं में शामिल होने का न्योता देता है। गगन ख़ुद एक पदक विजेता एथलीट रहा है।

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    Taapsee Pannu in Rashmi Rocket. Photo- Instagram

    मनोज वशिष्ठ, नई दिल्ली। खेल फ़िल्ममेकर्स का पसंदीदा विषय रहा है। हार, जीत, गिरना, उठना, रोमांच, रोमांस, गर्व, देशभक्ति... ऐसा कोई मसाला नहीं, जो खेल आधारित फ़िल्म में ना दिखाया जा सके। हालांकि, क्रिकेट, फुटबाल, हॉकी, बॉक्सिंग के मुकाबले एथलेटिक्स को पर्दे पर कम प्रतिनिधित्व मिला है। अगर याद करें तो भाग मिलखा भाग, पान सिंह तोमर और बुधिया सिंह- बॉर्न टू रन ही ज़हन में कौंधती हैं।

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    अब तापसी पन्नू की रश्मि रॉकेट आयी है, जो Zee5 पर देखी जा सकती है। मगर, आकर्ष खुराना निर्देशित रश्मि रॉकेट सिर्फ़ एक एथलीट के ट्रैक पर संघर्ष या हार-जीत की कहानी नहीं है, बल्कि यह फ़िल्म इस खेल में पैबस्त एक ऐसी बुराई की बात करती है, जो महिला एथलीटों के स्वाभिमान पर चोट करती है।

    कहानी भुज की रश्मि वीरा की है। दौड़ना उसका गॉड-गिफ्ट है। उस पर एक आर्मी कैप्टन गगन ठाकुर की नज़र पड़ती है तो उसके टैलेंट से प्रभावित होकर एथलेटिक्स प्रतिस्पर्द्धाओं में शामिल होने का न्योता देता है। गगन ख़ुद एक पदक विजेता एथलीट रहा है और अब आर्मी में एथलीटों को ट्रेन करता है। रश्मि अतीत की एक घटना की वजह से दौड़ना छोड़ चुकी है, मगर मां भानुबेन के समझाने और दबाव देने पर राज़ी हो जाती है। गगन उसे ट्रेन करता है और रश्मि एक के बाद एक राज्य स्तरीय प्रतियोगिताएं जीती रहती है, जिससे वो एथलेटिक्स एसोसिएशन के सिलेक्टर्स की नज़र में आ जाती है। 

     

     

     

     

     

     

     

     

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    रश्मि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं की तैयारी के लिए पुणे की एथलीट अकादमी में भर्ती हो जाती है। जहां उसका सामना दूसरी एथलीटों से होता है। रश्मि में टैलेंट है, मगर टेक्निक नहीं। कोच मुखर्जी इसमें रश्मि की मदद करता है। मगर, रश्मि की प्रतिभा चैम्पियन एथलीट निहारिका को रास नहीं आती, जो एथलीट एसोसिएशन के पदाधिकारी दिलीप चोपड़ा की बेटी है। हालांकि, निहारिका अपने पिता के पद से ज़्यादा अपने टैलेंट पर भरोसा करती है।

    एशिया गेम्स में रश्मि, पदकों और शोहरत की रेस में निहारिका से आगे निकल जाती है। रश्मि का टैलेंट उसके लिए मुसीबत बन जाता है और जेंडर टेस्टिंग के लिए बुलाया जाता है। जांच में पता चलता है कि रश्मि के रक्त में टेस्टेस्टेरॉन हार्मोन की मात्रा पुरुष एथलीटों से भी अधिक है। इस बिना पर एथलीट एसोसिएशन उस पर बैन लगा देती है। इतना ही नहीं, स्पोर्ट्स हॉस्टल में उसे पुलिस के हाथों ज़लील भी होना पड़ता है।

    मीडिया में भी यह केस ख़ूब उछलता है। रश्मि के संघर्ष में हर क़दम पर उसे गगन का साथ मिलता है। दोनों एक-दूसरे से प्यार करने लगते हैं और शादी कर लेते हैं। गगन, मां भानुबेन और वकील ईशित मेहता के ज़ोर देने पर रश्मि एथलेटिक्स एसोसिएशन के ख़िलाफ़ बॉम्बे हाई कोर्ट चली जाती है और बैन को चुनौती देती है। 

    तमिल फ़िल्ममेकर नंदा पेरियासामी की कहानी पर रश्मि रॉकेट का स्क्रीनप्ले अनिरुद्ध गुहा और कनिका ढिल्लों ने लिखा है, जबकि संवाद कनिका, आकर्ष, अनिरुद्ध और लिशा बजाज ने लिखे हैं। फ़िल्म के स्क्रीनप्ले की शुरुआत 5 अक्टूबर 2014 को उस घटना से होती है, जब पुलिस एथलेटिक्स अकादमी के परिसर में स्थित गर्ल्स हॉस्टल में एक लड़के के घुसकर मारपीट करने की शिकायत पर तापसी पन्नू को पकड़कर ले जाती है। इसके बाद फ़िल्म फ्लैशबैक में 2000 के भुज में पहुंच जाती है, जब रश्मि किशोरावस्था में होती है।

    रश्मि रॉकेट अपने टाइटल का पालन करते हुए रॉकेट की तरह टेक ऑफ तो लेती है, मगर ऊपर चढ़ते रहने के बजाय जल्द ही पलटी मार लेती है। फ़िल्म के स्क्रीनप्ले में रश्मि के पैर तो हवा से बातें करते हैं, मगर फ़िल्म की रफ़्तार शिथिल पड़ जाती है। इसलिए, शुरू के लगभग 30-40 मिनट बोझिल लगती है। इस अवधि में कुछ दृश्यों की बचत की जा सकती थी। रश्मि के भुज वाले हिस्से के कुछ दृश्य गैरज़रूरी लगते हैं।

     

     

     

     

     

     

     

     

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    रश्मि के 'ख़ुद की सुनने वाली लड़की' के किरदार को स्थापित करने में कुछ ज़्यादा ही समय लगा दिया गया है। रश्मि जब पुणे एथलेटिक्स अकादमी में पहुंचती है, वहां से फ़िल्म में रफ़्तार पकड़ती है और फिर अंत तक पकड़कर रखती है। एथलेटिक प्रतियोगिताओं दृश्य भी रोमांचकारी हैं। यहां निर्देशन और सिनेमैटोग्राफी का कमाल दिखता है। अदालत के दृश्य रश्मि रॉकेट का हाइलाइट हैं। इन दृश्यों के ज़रिए जेंडर टेस्टिंग से जुड़ी कई ऐसी बातों का पता दर्शक को चलता है, जो ज़्यादा लोग नहीं जानते। इस वजह से यह दृश्य पकड़कर रखते हैं। इन दृश्यों में ह्यूमर की परत भी है।

    अदाकारी की बात करें तो तापसी ने रश्मि वीरा के किरदार के साथ न्याय किया है। हालांकि, कुछ भावुक दृश्यों में वो ख़ुद दोहराती हुई नज़र आती हैं। तापसी जिस लहज़े में संवाद बोलती हैं, वो उनके किरदार की पृष्ठभूमि को सपोर्ट नहीं करता सुनाई नहीं देता। हालांकि, फ़िल्म की विषयवस्तु के हिसाब से रश्मि के किरदार के लिए जिस तरह का शारीरिक गठाव चाहिए था, उसके लिए तापसी की मेहनत की दाद देनी होगी।

    संजय लीला भंसाली की फ़िल्म गोलियों की रास लीला राम लीला में दबंग गुजराती महिला का किरदार निभा चुकीं सुप्रिया पाठक रश्मि की मां भानुबेन के रोल में जंची हैं। पति के गुज़रने के बाद व्यापार संभाल रहीं भानुबेन की ठसक में धनकोर बा के रौब की झलक नज़र आती है। हालांकि, भानुबेन ज़्यादा घरेलू और ममतामयी मां हैं, जो रश्मि की प्रेरणा और ताक़त है। गगन ठाकुर के रोल में प्रियांशु पेन्युली ने अपनी ज़िम्मेदारी ठीक से निभायी है। रश्मि का संबल और आर्मी ऑफ़िसर के किरदार में प्रियांशु की बॉडी लैंग्वेज में निरंतरता प्रभावित करती है।

     

     

     

     

     

     

     

     

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    वकील ईशित मेहता के किरदार में अभिषेक बनर्जी ठीक आधी फ़िल्म बीतने के बाद आते हैं, मगर उनके आने से फ़िल्म में मनोरंजन का अतिरिक्त तड़का लगता है। अदालत में जिरह के दृश्यों में अभिषेक ने संतुलित और असरदार काम किया है और उनका बराबर साथ दिया जज बनी सुप्रिया पिलगांवकर ने।

    दीपक चोपड़ा के नेगेटिव किरदार में वरुण बडोला प्रभावशाली रहे हैं। कोच मुखर्जी के किरदार में मंत्रा और निहारिका के किरदार में मिलोनी झोंसा ठीक लगे हैं। रश्मि रॉकेट के साथ एक दिक्कत यह भी है कि लेखक-निर्देशक का सारा ध्यान मुख्य किरदारों तक ही सीमित रहा है, जिससे सहयोगी किरदारों को उभरने का मौक़ा नहीं मिला। हालांकि, इसमें सम्भावनाएं काफ़ी नज़र आती हैं।

    फ़िल्म का गरबा सॉन्ग सुनने लायक है, मगर ज़िद देर तक साथ में रहता है। रश्मि रॉकेट जेंडर टेस्टिंग के व्यक्तिगत, सामाजिक और भावनात्मक दुष्परिणामों को दर्शक तक पहुंचाने में कामयाब रहती है, मगर इस क्रम में मैलोड्रामाटिक हो जाती है, जो शायद व्यावसायिक मजबूरियों के चलते किया होगा। रश्मि रॉकेट की कहानी के डिस्क्लेमर में साफ़ कह दिया गया है कि फ़िल्म सत्य घटनाओं से प्रेरित है, लेकिन किसी घटना का रुपांतरण नहीं है। रश्मि रॉकेट की कहानी की कुछ घटनाएं तमिल ट्रैक और फील्ड एथलीट शांति सौंदाराजन के जीवन की घटनाओं से मेल खाती हैं। रश्मि रॉकेट एक मुद्दा-प्रधान फ़िल्म है, जिसे इसके विषय के लिए देखा जा सकता है।

     

     

     

     

     

     

     

     

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    कलाकार- तापसी पन्नू, प्रियांशु पेन्युली, अभिषेक बनर्जी, सुप्रिया पाठक, सुप्रिया पिलगांवकर, मंत्रा, वरुण बडोला, मनोज जोशी, चिराग वोरा आदि।

    निर्देशक- आकर्ष खुराना

    निर्माता- रॉनी स्क्रूवाला, नेहा आनंद, प्रांजल खंघदिया

    अवधि- 2 घंटा 9 मिनट

    स्टार- *** (तीन स्टार)