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Ranneeti: यह जंग हथियारों की नहीं, नैरेटिव की है! बालाकोट स्ट्राइक के पीछे की दिलचस्प कहानी

रणनीति बालाकोट एंड बियॉन्ड आतंकी हमलों और जवाबी कार्रवाई के अलग पहलू को पेश करती है। आम तौर पर कहानियां जवाब हमले में दुश्मनों को खत्म करने पर खत्म हो जाती है मगर सीरीज में दुश्मन को खत्म करने के लिए हथियारों से ज्यादा नैरेटिव वाले पहलू को दिखाया गया है। संतोष सिंह निर्देशित सीरीज में वास्तविकता के साथ कल्पना के रंग घोले गये हैं।

By Manoj Vashisth Edited By: Manoj Vashisth Published: Sat, 27 Apr 2024 09:02 PM (IST)Updated: Sat, 27 Apr 2024 09:02 PM (IST)
रणनीति जिओ सिनेमा पर रिलीज हो गई है। फोटो- इंस्टाग्राम

एंटरटेनमेंट डेस्क, नई दिल्ली। भारतीय सिनेमा में भारत और पाकिस्तान के बीच हुई 1971 की जंग से निकली अनेक घटनाओं पर फिल्में बनती रही हैं। सच्ची घटना में थोड़ी काल्पनिकता और थोड़ी सिनेमैटिक लिबर्टी लेकर बनी वॉर फिल्में अमूमन दर्शकों को भी पसंद आती रहीं हैं। 

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इन फिल्मों में देशप्रेम की भावना और हमारे सेना का पराक्रम कहानियों को रोमांच के अलग ही स्तर पर ले जाता है। यह सिलसिला जारी है और हाल ही में फरहान अख्तर की कम्पनी एक्सेल एंटरटेनमेंट ने 1971 की जंग से निकली भारतीय नौसेना के शौर्य की कहानी ऑपरेशन ट्राइडेंट पर फिल्म बनाने की घोषणा की है। 

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1971 के साथ-साथ पिछले कुछ सालों में हुईं आतंकी घटनाएं भी अब फिल्मकारों का ध्यान खींच रही हैं। 2016 का उरी अटैक, 2019 को पुलवामा अटैक और बालाकोट एयरस्ट्राइक को आधार बनाकर फिल्मकार कहानियां गढ़ रहे हैं। इसी साल रिलीज हुई ऋतिक रोशन की फाइटर और तेलुगु फिल्म ऑपरेशन वैलेंटाइन एयरस्ट्राइक की घटना से प्रेरित फिल्में हैं।

सिनेमा के बड़े पर्दे से होते हुए ये कहानियां अब ओटीटी स्पेस में भी पहुंच रही हैं। इसी क्रम में बालाकोट एयरस्ट्राइक से प्रेरित वेब सीरीज रणनीति- बालाकोट एंड बियॉन्ड जिओ सिनेमा पर रिलीज हुई है। 

आम तौर पर ऐसी घटनाओं पर बनी फिल्म या शोज में दुश्मन को नेस्तनाबूद करके बदला लेने का भाव अंतिम लक्ष्य के तौर पर सामने आता है, मगर 'रणनीति' पुलवामा अटैक के बाद पड़ोसी मुल्क की सीमा में एयरस्ट्राइक करके आतंकी कैम्पों को ध्वस्त करने के साथ इस ऑपरेशन के कई अन्य पहलुओं पर भी टिप्पणी करते हुए चलती है।

क्या है रणनीति की कहानी?

दृष्टिकोण, युक्तिकोण, अनुभूतिकोण, प्रतिशोधीकोण, शक्तिकोण, कथाकोण, झूठकोण, रहस्यकोण, वास्तविकताकोण शीर्षकों से 9 एपिसोड्स में फैली सीरीज की कहानी पुलवामा अटैक के बाद की घटनाओं पर केंद्रित है। सीरीज का कालखंड 2019 है।

कहानी पुलवामा अटैक से शुरू होती है, जिसमें दिखाया जाता है कि आत्मघाती हमलावरों ने कैसे सुरक्षा बलों से भरी बस पर हमला किया था। रॉ का पूर्व एजेंट और प्रोजेक्ट लीड कश्यप सिन्हा (जिमी शेरगिल) इस हमले के बाद पड़ोसी मुल्क में आतंकी कैम्पों पर मिशन प्लान करते हैं।

कश्यप सर्बिया में एक मिशन फेल हो जाने के बाद से पीटीएसडी से पीड़ित है। इस योजना में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मधुसूदन दत्ता (आशीष विद्यार्थी) और पीआर स्पेशलिस्ट मनीषा भारद्वाज (लारा दत्ता) अहम भूमिका निभाते हैं। 

कैसा है स्क्रीनप्ले और अभिनय?

संतोष सिंह निर्देशित सीरीज के स्क्रीनप्ले की खासियत है कि इसमें सच्ची घटनाओं को कल्पना के साथ ऐसे गूंथा गया है कि कथ्य कहीं बाधित नहीं होता और यह दिलचस्प लगता है। भावनात्मक उतार-चढ़ाव और एक्शन दृश्य दर्शक की निगाह बांधकर रखते हैं। विंग कमांडर अभिनंदन वर्धन का प्लॉट कथ्य को रोमांचक बनाता है।

बालाकोट एयरस्ट्राइक सिर्फ जवाब हमले की कहानी नहीं थी। विंग कमांडर अभिनंदन को वापस लाने के लिए सोशल मीडिया और अंतरराष्ट्रीय दबाव ने भी अहम भूमिका निभाई थी, जिसे सीरीज में दिखाया गया है, जैसा कि आशुतोष राणा का किरदार कहता भी है कि हमें वो लड़ाई लड़नी चाहिए, जो हम जीतते रहे हैं- वॉर ऑफ नैरेटिव।

हालांकि, इस मिजाज की सीरीज का सबसे नकारात्मक पहलू ये होता है कि कुछ बातें और किरदारों का चित्रण दोहरावपूर्ण लगता है। संवादों में नयापन ना होना अखरता है। रणनीति भी इससे अछूती नहीं है। इस मोर्चे पर सीरीज मात खाती है। हालांकि, नैरेशन में गति होने के कारण इसे नजरअंदाज किया जा सकता है। 

तकनीकी स्तर पर बात करें तो एयरस्ट्राइक और विस्फोट के दृश्यों का वीएफएक्स बेहतर किया जा सकता था। इसकी वजह से सीरीज का असर कम होता है। 

कश्यप सिन्हा के किरदार में जिमी शेरगिल ने सधी हुई परफॉर्मेंस दी है। उन्हें इस किरदार में देखना अच्छा लगता है। अपने करियर की इस पारी में ओटीटी पर सक्रिय लारा दत्ता मनीषा के किरदार में ताजगी लेकर आती हैं। आशीष विद्यार्थी ने अपने किरदार को विश्वसनीय बनाया है। 

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वहीं, पाकिस्तानी की टीम में आइएसआइ प्रोजेक्ट लीड रकीब असकानी बने आशुतोष राणा जमे हैं। इस किरदार को जिस तरह की नेगेटिविटी चाहिए, उसे उभारने में वो कामयाब रहे हैं।

पाकिस्तानी मीडिया स्पेशलिस्ट शिरीन के रोल में संवेदना सुवालका और जैश के सदस्य याकूब के रोल में उमर शरीफ ने अपनी जिम्मेदारी ठीक से निभाई है। सहयोगी किरदारों में सत्यजीत दुबे और एलनाज नौरोजी असर छोड़ते हैं।


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