नई दिल्ली, जेएनएन। संगीत प्रेमियों के लिए किसी तौहफे की तरह है 'कला'। फिल्म का हर फ्रेम किसी यादगार पेंटिंग की तरह दिल में उतर जाता है। डायरेक्टर अन्विता दत्ता ने 'कला' को पूरे मन से कैनवास पर उकेरा है। एक कलाकार के अंदर खुद को साबित करने का जुनून और इसके आवेग में किसी भी हद से गुजर जाना। मंजिल तक पहुंचने के लिए जिन अच्छे-बुरे रास्तों पर हम चलते हैं वो ही हमारे सफर को और मुश्किल बना देते हैं।
बाबिल ने जीता दिल
फिल्म में तृप्ति डिमरी, बाबिल खान और स्वातिका मुखर्जी लीड रोल में हैं। इरफान के बेटे बाबिल खान ने 'कला' से अभिनय की दुनिया में कदम रखा है। उनका रोल छोटा जरूर है पर इसमें उन्होंने खुद को साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। पूरी फिल्म तृप्ति डिमरी यानी 'कला' के इर्द-गिर्द घूमती है। 'बुलबुल' के बाद तृप्ति डिमरी को एक बार फिर काफी स्ट्रॉन्ग किरदार मिला और उन्होंने इसके साथ पूरा न्याय किया।
कहानी
फिल्म की शुरुआत होती है 1930-40 के दशक की एक मशहूर सिंगर 'कला' के साथ, लोग इन्हें प्यार से दीदी भी कहते हैं। कला अपने दर्दनाक अतीत से जूझ रही है। कला की मां एक गायिका है और वो कला को उसके पिता की विरासत संभालते देखना चाहती है। पर कला में वो अपना भविष्य नहीं देख पाती और एक बेहतरीन लोक गायक जगन बटवाल (बाबिल खान) को अपना बेटा बनाकर घर लाती है। कला से ये सब बर्दाश्त नहीं होता, शुरू होता है नफरत और बदले का खेल। फिल्म की कहानी में दिखाया है कि कैसे एक बेटी जो किसी भी सही गलत रास्ते पर चलकर अपनी मां से तारीफ पाना चाहती है।
अभिनय
अभिनय की कसौटी पर फिल्म में हर कोई खरा उतरा। लीड रोल में तृप्ति डिमरी उम्दा एक्टर बनकर उभरी हैं। 'कला' के हर सीन में उन्होंने रोम-रोम से अभिनय किया है। लोगों की नजर दिवंगत दिग्गज कलाकार इरफान खान के बेटे बाबिल खान पर टिकी रही। बाबिल ने अपनी पहली ही फिल्म में अच्छा प्रदर्शन किया। एक गायक के रोल में वो काफी स्वाभाविक लगे।
तृप्ति डिमरी ने किया इम्प्रेस
जहां तक बात स्वास्तिका मुखर्जी की है तो इस बार उन्होंने दिल जीत लिया। उन्होंने संगीत की पारखी एक ऐसी मां का किरदार निभाया है जो बेटी के प्यार में अंधी नहीं बल्कि टैलेंट को आगे बढ़ाने का फैसला करती है। अमित सियाल के पास भी छोटा मगर अच्छा मौका था और वो खरे उतरे। वरुण ग्रोवर भी अपने किरदार में सहज नजर आए।
सिनेमैटोग्राफी
फिल्म फ्रेम दर फ्रेम किसी चित्रकार की कल्पना लगती है। पीरियड फिल्म होने के नाते कश्मीर की वादियों से लेकर कलकत्ता तक सब कुछ काफी मेहनत और ध्यान से फिल्माया गया। नाव पर राग दरबारी हो या महफिल में ठुमरी, फिल्म का संगीत इसकी कहानी को आगे बढ़ाने में मदद करती है। फीमेल किरदारों की साड़ी, ज्वेलरी , मेकअप आपका ध्यान खींच लेंगे। बस कला का भरी महफिल में स्ट्रैपलेस ड्रेस पहनकर तानपुरे पर जगन का साथ देना थोड़ा अजीब लेगा। लेकिन बर्फ के सीन, प्रेस कॉन्फ्रेंस, उस जमाने में प्रेस के फोटोग्राफर्स का तस्वीर लेना, और वो ऑर्गेंजा की साड़िया आपको काफी इंप्रेस करेंगी।
संगीत
इस फिल्म की पूरी कहानी ही म्यूजिक से शुरू होकर म्यूजिक पर खत्म होती है। जगन का स्टेज पर निर्गुण गाना आपके दिल में उतर जाएगा। फिल्म के म्यूजिक डायरेक्ट अमित त्रिवेदी ने भी अपना पूरा दम लगा दिया जिसका असर देखने को भी मिला। संगीत को 30-40 के दशक का रखने की कोशिश की गई है लेकिन फिर भी आपको इसमें नएपन की झलक देखने को मिल ही जाएगी।
क्यों देखें
अगर घर पर आराम से बैठकर एक म्यूजिकल, सस्पेंस ड्रामा फिल्म देखना चाहते हैं, तो 'कहा' आपके लिए उपहार है। कला का कामयाबी पाने लिए कुछ भी कर गुजरना इस इंडस्ट्री की एक स्याह सच्चाई उजागर करता है। हालांकि इसके डायलॉग्स में अनचाही अंग्रेजी डाली गई है जो स्वादिष्ट भोजन में निकले किसी कंकड़ की तरह लगती है, इसे इग्नोर करके आप वीकेंड पर फिल्म का आनंद ले सकते हैं।
फिल्म : कला
कलाकार : तृप्ति डिमरी, बाबिल खान, स्वस्तिका मुखर्जी, समीर कोचर, वरुण ग्रोवर
निर्देशक : अन्विता दत्त
रेटिंग *** 3/5
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