Pushtaini Review: धन दौलत पाने नहीं, डर से उबरने की कहानी... Hrithik Roshan के 'गुरु' का एक्टिंग डेब्यू
सिनेमा की दुनिया ऐसी है जहां तरह-तरह की कहानियां दिखाने का मौका मिलता है। बड़े चेहरे और बजट के बीच कई बार ऐसी कहानी आ जाती है दिलों को छू लेती है। अभिनेता निर्देशक विनोद रावत की फिल्म पुश्तैनी ऐसी ही एक कहानी है। फिल्म में राजकुमार राव ने कैमियो किया है। विनोद ने मुख्य अभिनेता और निर्देशन की जिम्मेदारी खुद सम्भाली हैं।

स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। फिल्म इंडस्ट्री में बहुत सारे लोग ऐसे हैं, जिन्होंने खुद को सिर्फ एक क्षेत्र तक सीमित नहीं रखा। सुपर 30, काबिल, वार, फाइटर जैसी फिल्मों में अभिनेता रितिक रोशन के एक्टिंग कोच रहे विनोद रावत ने फिल्म पुश्तैनी से निर्देशन में कदम रखा है।
रितिक ने इस फिल्म को प्रेजेंट भी किया है। विनोद ने अभिनय करने के साथ इसके सहलेखन की जिम्मेदारी भी संभाली है। उत्तराखंड से ताल्लुक रखने वाले विनोद ने अपनी कहानी भी उसी पृष्ठभूमि में रखी है। खास बात यह है कि उनकी रियल बुआ, बहन और जीजा ने परदे पर इन्हीं भूमिकाओं को जीवंत किया है।
घर लौटे 'हीरो' की कहानी
कहानी यूं है कि तमाम युवाओं की तरह कलाकार बनने का सपना संजोए भुप्पी (विनोद रावत) मायानगरी मुंबई में संघर्षरत है। उसे फिल्म में भूमिका भी मिल जाती है, लेकिन उसका लाइन प्रोड्यूसर सुमित (नितिन गोयल) उसका अंतरंग वीडियो बनाकर उसे ब्लैकमेल करता है।
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उससे एक सप्ताह में 11 लाख रुपये देने की मांग करता है। भुप्पी नैनीताल में अपनी बहन के घर जाता है। वहां से उसके जीवन की परतें खुलना आरंभ होती है। छह साल बाद वह अपने घर लौटा है। भुप्पी अपने पिता से नफरत करता है। उसे पता चलता है कि एक साल पहले ही पिता का निधन हो चुका है।
वह उसके नाम पर 11 लाख रुपये छोड़ गए हैं। हालांकि, रुपयों को पाने के लिए पिता ने शर्त रखी है कि यह पैसे उसे तब मिलेंगे, जब कागजों पर उसकी बुआ का अंगूठा लगेगा। वह बुआ से मिलने बागेश्वर निकलता है। इस सफर में उसे उसका टैक्सी ड्राइवर दोस्त हेमंत (हेमंत पांडेय) मिलता है।
वह एनआरआई डिंपल (रीता हीर) को नैनीताल घुमा रहा होता है। तीनों साथ में बागेश्वर निकलते हैं। इस सफर के दौरान डिंपल उसे अपना सच बताती है। दोनों एक ही व्यक्ति के उत्पीड़न का शिकार होते हैं।
धीरे-धीरे मुद्दे पर आती है फिल्म
निर्देशक और सह-लेखक विनोद रावत की ‘पुश्तैनी’ भुप्पी के अतीत, वर्तमान संघर्ष और भविष्य की आकांक्षाओं जैसे विषयों के इर्दगिर्द बुनी गई है। बालीवुड में संघर्ष से लेकर वर्तमान जिंदगी में अतीत की वजह से चल रहे द्वंद्व और क्रोध को बारीकी से दिखाती है।
अपने करीबी रिश्तेदारों को कास्ट करके विनोद ने उसे विश्वसनीय बनाने का प्रयास किया है। उसमें वह सफल रहे हैं। फिल्म धीमी गति से आगे बढ़ती है, फिर यह धीरे-धीरे मुद्दे पर आती है। भुप्पी की आपबीती से एक तरफ सहानुभूति होती है, वहीं सच सामने आने पर पिता की लाचारी समझ आती है।
फिल्म में कुछ सवाल अनुत्तरित हैं। अगर उन्हें थोड़ा नजरअंदाज किया जाए तो 90 मिनट की फिल्म घिसी-पिटी लीक से अलग नजर आती है। यहां पर अन्याय के खिलाफ आक्रोश है, लेकिन शोरगुल या चिल्लम चिल्ली नहीं है। विनोद ने उसे वास्तविकता के करीब रखा है।
गीत-संगीत में स्थानीयता का स्वाद कहानी से जुड़ाव बनाए रखता है। उत्तराखंड में शूट हुई इस फिल्म की कई लोकेशन मनमोहक हैं। उसका श्रेय फिल्म की सिनेमैटोग्राफर ध्वालिका सिंह को जाता है। अभिनय की बात करें तो भुप्पी के अंदरुनी द्वंद्व, संघर्ष और मन:स्थिति को विनोद खूबसूरती से उभारते हैं।
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उनका पहला प्रयास सराहनीय है। कम बजट में बनी इस फिल्म में अभिनेता राजकुमार राव अतिथि भूमिका में हैं। अपनी संक्षिप्त भूमिका में वह याद रह जाते हैं।
भुप्पी के दोस्त और टैक्सी ड्राइवर की भूमिका में हेमंत पांडेय प्रभावित करते हैं। डिंपल की भूमिका में रीता हीर जंची हैं। हालांकि, उनके किरदार को थोड़ा और विकसित करने की जरूरत थी। फिल्म के क्लाइमेक्स को रूपक के तौर पर दर्शाया गया है। यह दिलचस्प है।
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