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Velle Movie Review: करण देओल के अभिनय में निखार, कमजोर राइटिंग से बिखरी 'वेले' कहानी

फिल्‍म की कहानी 12वीं क्‍लास के तीन छात्रों राहुल (करण देओल) रमेश उर्फ रैंबो (सावंत सिंह प्रेमी) और राजू (विशेष तिवारी) को लेकर बुनी गई है। सभी पढ़ा़ई में फिसड्डी हैं। स्‍कूल के प्रिंसिपल राधे श्‍याम (जाकिर हुसैन) की बेटी रिया (आन्‍या सिंह) उनकी सहपाठी है।

By Priti KushwahaEdited By: Updated: Sun, 12 Dec 2021 07:35 AM (IST)
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Photo Credit : Abhay Deol Instagram Photos Screenshot

स्मिता श्रीवास्‍तव। फिल्‍म वेले वर्ष 2019 में रिलीज तेलुगु फिल्‍म ब्रोचेबरुरा की आधिकारिक रीमेक है, जिसे काफी पसंद किया गया था। सफल फिल्‍म की रीमेक बनाना चुनौतीपूर्ण कार्य होता है। अक्‍सर कई फिल्‍ममेकर मूल फिल्‍म की कसौटी पर खरे नहीं उतर पाते हैं। वेले पर भी यही बात लागू होती है। लेखक और निर्देशक दोस्‍ती, अपराध, कॉमेडी और पारिवारिक टसक के अफसानों को लेकर गढी गई वेले को वेले तरीके से डील करते हुए नजर आते हैं।

फिल्‍म की कहानी 12वीं क्‍लास के तीन छात्रों राहुल (करण देओल), रमेश उर्फ रैंबो (सावंत सिंह प्रेमी) और राजू (विशेष तिवारी) को लेकर बुनी गई है। सभी पढ़ा़ई में फिसड्डी हैं। स्‍कूल के प्रिंसिपल राधे श्‍याम (जाकिर हुसैन) की बेटी रिया (आन्‍या सिंह) उनकी सहपाठी है। उसका भी पढाई में मन नहीं लगता है। उसके पिता सख्‍त मिजाज हैं जबकि मां दुनिया को अलविदा कह चुकी हैं। पिता-पुत्री के बीच संबंध सहज नहीं है। उसकी वजहें कहानी में कहीं भी बताई नहीं गई है। वह राहुल के गैंग से दोस्‍ती कर लेती है। दूसरी ओर ऋषि सिंह (अभय देओल) डायरेक्‍टर बनना चाहता है। कहानी सुनाने को लेकर उसकी मुलाकात लोकप्रिय अभिनेत्री रोहिणी (मौनी राय) से होती है। रिया डांसर बनना चाहती है। राहुल उसे अपने सपनो को पूरा करने के लिए घर छोड़ने के लिए कहता है। सपनों को पूरा करने के लिए पैसे चाहिए। उसके लिए रिया अपने ही अपहरण की साजिश रचने का सुझाव देती है। चारों कामयाब भी होते हैं पर रिया का बाद में सचमुच अपहरण हो जाता है। तीनों दोस्‍त उसकी रिहाई के लिए कैसे प्रयास करते हैं? ऋषि साथ कैसे टकराते है? फिल्‍म इन्हीं प्रसंगों पर आगे बढ़ती है।

देवेन मुंजाल की फिल्‍म का विषय दिलचस्‍प है मगर कहानी में बिखराव है। किरदारों को समुचित तरीके से गढ़ा नहीं गया है। यही वजह है कि स्‍क्रीनप्‍ले दमदार नहीं बन पाया है। अपहरणकर्ता रिया को अपहृत करने के बाद उसके पिता का नंबर एकबार भी नहीं मांगते। पुलिस का पक्ष फिल्‍म में बेहद कमजोर और अपच है। ऋषि और रोहिणी की प्रेम कहानी में प्रेम नजर नहीं आता। कहानी वर्तमान दौर में सेट है, लेकिन लेखकों ने पुराने नुस्‍खों का ही इस्‍तेमाल किया है। बहरहाल, इंटरवल के बाद कहानी गति पकड़ती है। तब कहानी में कई ट्विस्‍ट और टर्न आते हैं। फिल्‍म के डायलाग बीच -बीच में हास्‍य का पुट लाते हैं।

अपनी पहली फिल्‍म पल पल दिल के पास के मुकाबले करण देओल के अभिनय में काफी निखार है। खास तौर पर मध्यांतर के बाद वह अपने किरदार में ज्‍यादा सहज नजर आते हैं। हालांकि उन्‍हें अभी अपनी संवाद अदायगी पर और काम करने की जरूरत है। उनके चाचा अभय देओल के लिए फिल्‍म में करने के लिए कुछ खास नहीं है। हालांकि अपनी दमदार अदायगी से वह अपने किरदार को जानदार बनाते हैं। फिल्‍म कैदी बैंड से अपने अभिनय सफर का आगाज करने वाली आन्‍या सिंह चुलबुली और संजीदा दोनों ही किरदारों में प्रभावित करती हैं। सावंत सिंह रोशन और विशेष तिवारी का अभिनय उल्‍लेखनीय है। मौनी राय ग्‍लैमरस दिखी हैं। लेखन स्‍तर पर मेहनत होती यह बेहतर फिल्‍म बन सकती थी।

फिल्‍म रिव्‍यू : वेले

प्रमुख कलाकार : करण देओल, आन्‍या सिंह, अभय देओल, सावंत सिंह प्रेमी, विशेष तिवारी, मौनी रॉय, जाकिर हुसैन, राजेश कुमार, महेश ठाकुर

निर्देशक : देवेन मुंजाल

अवधि : 124 मिनट

स्‍टार : दो