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Laxmii Movie Review: 'लक्ष्मी' बनकर ख़ूब बरसे अक्षय कुमार, मगर मनोरंजन का 'बम' बेदम है!

Laxmii Movie Review कोरोना ना होता तो दर्शक लक्ष्मी (पहले लक्ष्मी बम) को मई में ईद पर ही देख चुके होते। मगर आसिफ़ की ईद निकल गयी तो लक्ष्मी दिवाली पर बरस गयी है। और यही इस लक्ष्मी के क्लाइमैक्स का गुप्त संदेश भी है।

By Manoj VashisthEdited By: Published: Mon, 09 Nov 2020 11:39 PM (IST)Updated: Tue, 10 Nov 2020 08:44 PM (IST)
Laxmii Movie Review: 'लक्ष्मी' बनकर ख़ूब बरसे अक्षय कुमार, मगर मनोरंजन का 'बम' बेदम है!
लक्ष्मी डिज़्नी प्लस हॉटस्टार पर रिलीज़ हो गयी। (फोटो- ट्विटर)

मनोज वशिष्ठ, नई दिल्ली। कोरोना वायरस पैनडेमिक के दौरान सिनेमाघरों की तालाबंदी और भविष्य की अनिश्चितताओं ने साल 2020 में कई बड़ी स्टार कास्ट वाली फ़िल्मों को भी सीधे स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म्स पर आने के लिए मजबूर कर दिया। इसी क्रम में अक्षय कुमार और कियारा आडवाणी की 'लक्ष्मी' सोमवार (9 नवम्बर) को दिवाली वीक में डिज़्नी प्लस हॉटस्टार पर रिलीज़ हो गयी। 

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कोरोना ना होता तो दर्शक 'लक्ष्मी' (पहले लक्ष्मी बम) को मई में ईद पर ही देख चुके होते। मगर, 'आसिफ़' की ईद निकल गयी तो 'लक्ष्मी' दिवाली पर बरसने आ गयी। हॉरर-कॉमेडी फ़िल्म 'लक्ष्मी' ट्रांसजेंडरों को लेकर सोच की संकीर्णता और समाज में उनकी सहज स्वीकार्यता जैसे संवेदनशील मुद्दे को रेखांकित ज़रूर करती है, मगर इन मुद्दों और संदेशों के बीच फ़िल्म की कहानी पूरी तरह डगमगा जाती है। कई जगह कहानी अपनी मूल-भावना का विरोधाभास करती नज़र आती है। 

लक्ष्मी, हरियाणा के रेवाड़ी में रहने वाले आसिफ़ (अक्षय कुमार) और रश्मि (कियारा आडवाणी) की कहानी है, जिन्होंने प्रेम-विवाह किया है। आसिफ़ के साथ रश्मि ख़ुश है। उनके साथ आसिफ़ का भतीजा शान भी रहता है, जिसके माता-पिता कुछ वक़्त पहले एक हादसे में मारे गये थे। आसिफ़ टाइल्स और मारबल का बिज़नेस करता है। तर्कसंगत सोच रखने वाले आसिफ़ को भूत-प्रेतों में यक़ीन नहीं है और अंधविश्वास भगाने के लिए एक संस्था भी चलाता है। 

रश्मि के परिवार वाले ख़ासकर पिता सचिन (राजेश शर्मा) बेटी के दूसरे मजहब में शादी करने से नाराज़ हैं। शादी को तीन साल हो गये, लेकिन रश्मि अपने घर नहीं गयी। आख़िरकार, अपनी शादी की 25वीं सालगिरह के सेलिब्रेशन के लिए रश्मि की मां रत्ना (आएशा रज़ा मिश्रा) उसे अपने घर बुलाती हैं।

रश्मि यह सोचकर ख़ुश हो जाती है कि इस बहाने परिवार वाले आसिफ़ से मिल लेंगे और शायद उनकी नाराज़गी दूर हो जाए। आसिफ़, रश्मि और शान दमन पहुंचते हैं। जैसा कि अपेक्षित था, रश्मि के पिता आसिफ़ से ख़फ़ा रहते हैं। हालांकि, रश्मि के भाई दीपक (मनु ऋषि) और उसकी पत्नी अश्विनी (अश्विनी कालसेकर) को आसिफ़ को स्वीकार करने में कोई दिक्कत नज़र नहीं आती। दीपक जगराता में गाने का काम करता है।

रश्मि के मायके वाले घर के पड़ोस में एक बड़ा-सा खाली प्लॉट है, जिस पर किसी भूत-प्रेत का साया माना जाता है। कोई वहां नहीं जाता। एक दिन आसिफ़ बच्चों पड़ोस के बच्चों को यह कहकर कि भूत-प्रेत कुछ नहीं होता, प्लॉट में खेलने ले जाता है। स्टंप ज़मीन में गाड़ते समय कुछ परलौकिक शक्ति का एहसास होता है और अचानक मौसम बिगड़ जाता है। सारे बच्चे डरकर भाग जाते हैं। आसिफ़ घर आ जाता है।

इसके बाद घर में कुछ सुपरनेचुरल पॉवर का खेल शुरू हो जाता है। रश्मि की मां घर में पूजा करवाती है तो एक आत्मा के होने की पुष्टि होती है। इधर, आसिफ़ की हरकतें बदलने लगती हैं। जब वो रूह के प्रभाव में होता है तो उसे लाल चूड़ियां पहनना अच्छा लगने लगता है। साड़ियों की दुकान में वो लाल साड़ी पर मोहित हो जाता है। नहाते वक़्त हल्दी का लेप लगाता है। हालांकि, होश में आने पर कुछ याद ना होने का स्वांग करता है। कुछ घटनाक्रम के बाद आसिफ़ के अंदर प्रवेश कर गयी रूह बताती है कि वो लक्ष्मी किन्नर है और अपना बदला लिये बिना वापस नहीं जाएगी। 

आसिफ़ से भूत-प्रेत का साया हटवाने के लिए एक पीर बाबा की मदद ली जाती है तो लक्ष्मी की बैकस्टोरी पता चलती है। एक भूमाफ़िया ने लक्ष्मी की ज़मीन पर अवैध क़ब्ज़ा करने के बाद अपने परिवार के साथ मिलकर लक्ष्मी और उसे बचपन में शरण देने वाले अब्दुल चाचा और उनके मंदबुद्धि बेटे का क़त्ल कर दिया था, जिनसे बदला लेने के लिए लक्ष्मी आसिफ़ के शरीर पर क़ब्ज़ा करती है।

इसके साथ फ़िल्म की कहानी लक्ष्मी के बदले पर फोकस हो जाती है। पीर बाबा की मदद से आसिफ़ लक्ष्मी की आत्मा से छुटकारा पा लेता है, लेकिन लक्ष्मी की कहानी सुनकर इतना भाव-विह्वल हो चुका होता है कि क्लाइमैक्स में उसका बदला पूरा करने के लिए एक अप्रत्याशित क़दम उठाता है। लचर और लापरवाह लेखन पर टिकी लक्ष्मी की तमाम कमियों को अक्षय कुमार ने अपनी ईमानदार परफॉर्मेंस और उर्जा से ढकने की पूरी कोशिश की है और कुछ हिस्सों को देखने लायक बनाया है। कियारा आडवाणी फ़िल्म में ख़ूबसूरत दिखी हैं और भाव-प्रदर्शन में संतुलित रही हैं।

फ़िल्म के सहयोगी कलाकारों में राजेश शर्मा और मनु ऋषि जैसे दमदार एक्टर्स हैं, जिनकी क्षमता का भरपूर इस्तेमाल नहीं किया जा सका। हालांकि, इन कलाकारों ने स्टोरी और स्क्रीनप्ले की सीमाओं में अपनी-अपनी ज़िम्मेदारी निभायी है। भूमाफ़िया वाले ट्रैक को कामचलाऊ अंदाज़ में ही इस्तेमाल किया गया है। उस पर लेखकों ने भी ज़्यादा तवज्जो नहीं दी। असली लक्ष्मी के किरदार में शरद केलकर ने ठीकठाक काम किया है। उनका रोल छोटा, मगर अहम है।

लक्ष्मी की कहानी का सबसे बड़ा विरोधाभास तो यही है कि अंधविश्वास से लड़ने के लिए वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने के संदेश से शुरू हुई फ़िल्म अंतत: भूत-प्रेतों में यक़ीन के दकियानूसी विचार पर आकर ख़त्म होती है।  आसिफ़ के किरदार की एंट्री बेहतरीन सीन के ज़रिए फ़िल्म में होती है, जब वो भूत-प्रेत भगाने वाले एक बाबा के पाखंड की रसायन विज्ञान के ज़रिए धज्जियां उड़ाता है। इस सीन के बाद एक बेहतरीन सुपरनेचुरल थ्रिलर देखने की उम्मीद बंधती है, जो उम्मीद ही बनी रहती है। 

कहानी में यह तर्क भी समझ से परे है कि पुजारी घर में भूत होने की पुष्टि तो कर सकता है, मगर भगा नहीं सकता। वो ताक़त सिर्फ़ पीर बाबा के पास है। फ़िल्म के भावुक दृश्य भी हास्यास्पद बनकर रहे गये हैं। बेटी के दूसरे मजहब में शादी करने से तीन साल तक नाराज़ रहे पिता अचानक आसिफ़ के सिर्फ़ एक संवाद से पिघल जाते हैं और दामाद उन्हें पसंद आने लगता है। घर में आत्मा की तलाश के लिए पूजा करवाने के दृश्यों में सास रत्ना और बहू अश्विनी के बीच संवाद ओछे और हाव-भाव ओवर लगते हैं।

आम तौर पर दिखाया जाता है कि जब किसी किरदार में भूत प्रवेश करता है तो उसके हाव-भाव और आवाज़ बदलती है, मगर यहां तो आसिफ़ की आवाज़ और हाव-भाव के साथ पूरा गेटअप ही बदल जाता है। फ़िल्म में आसिफ़ का संवाद 'अगर मैं भूत देखूंगा तो चूड़ियां पहन लूंगा...' समझ नहीं आता क्यों रखा गया है। शायद किन्नर लक्ष्मी के किरदार से जोड़ने के लिए, मगर यह पंक्ति अपने-आप में एक दकियानूसी सोच का मुज़ाहिरा करती है। 

लक्ष्मी हॉरर कॉमेडी फ़िल्म है, लेकिन डरा नहीं पाती। हां, कुछ दृश्य चौंकाते ज़रूर हैं। संवादों के ज़रिए जबरन हास्य पैदा करने की कोशिश की गयी है। कुछ दृश्यों को छोड़ दें तो फरहाद सामजी, स्पर्श खेत्रपाल और ताशा भाम्ब्रा के संवाद बहुत हल्के हैं। बीच-बीच में अंग्रेज़ी के शब्द ठूसने का प्रयोग और घटिया तुकबंदी हास्य से अधिक विरक्ति का भाव पैदा करता है।  

लक्ष्मी, तमिल फ़िल्म 'मुनि 2- कंचना' का रीमेक है, जिसे राघव लॉरेंस ने निर्देशित किया है। राघव ने तमिल फ़िल्म को भी निर्देशित किया था। कलाकारों के एक्सप्रेशंस से लेकर दृश्यों के संयोजन तक, राघव के निर्देशन में दक्षिण भारतीय शैली की छाप साफ़ नज़र आती है। वेट्री पलानीसैमी की सिनेमैटोग्राफी हॉरर को सपोर्ट करती है, वहीं राजेश जी पांडेय की एडिटिंग शार्प है।

लक्ष्मी का संगीत साधारण है। उल्लूमनाती के संगीत में वायरस की आवाज़ में बम भोले गाना क्लाइमैक्स में एक अहम स्थिति में आता है और प्रभावित करता है। बुर्ज ख़लीफ़ा और बाक़ी गाने खाना-पूर्ति के लिए हैं और कहानी में उनका कोई योगदान नहीं है। साल 2020 की सबसे बहुप्रतीक्षित फ़िल्मों में शामिल 'लक्ष्मी', अक्षय कुमार की सबसे कमज़ोर फ़िल्मों में गिनी जाएगी। 

कलाकार- अक्षय कुमार, कियारा आडवाणी, शरद केलकर, राजेश शर्मा, मनु ऋषि, अश्विनी कालसेकर, आएशा रज़ा मिश्रा, तरुण अरोड़ा, मीर सरवर आदि।

निर्देशक- राघव लॉरेंस

निर्माता- अक्षय कुमार, तुषार कपूर, शबीना ख़ान आदि। 

वर्डिक्ट- **1/2 (ढाई स्टार)

अवधि- 2 घंटा 21 मिनट 


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