Janhit Mein Jaari Review: कॉमेडी की आड़ में अहम मुद्दा दर्शाती है फिल्म, बबली गर्ल नुसरुत भरुचा ने कंधों पर उठाया दारोमदार
Nushrratt Bharuccha की फिल्म जनहित में जारी लंबे बज के बाद फाइनली सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है। इस फिल्म में नुसरत भरुचा बिलकुल अलग ही किरदार में नजर आ रही हैं। क्या है फिल्म की कहानी और क्या आपको फिल्म पर खर्चा करना चाहिए पढ़िये यहां पूरा रिव्यू।
स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। हिंदी सिनेमा में पिछले कुछ अर्से से वर्जित विषयों पर फिल्में बन रही हैं। कंडोम और सेक्स पर सार्वजनिक रुप से बात करने में आज भी लोगों में झिझक रहती है। सिनेमाघरों में रिलीज जय बसंतू सिंह निर्देशित फिल्म जनहित में जारी इसी विषय के इर्दगिर्द बुनी गई है।
कहानी के केंद्र में चंदेरी निवासी डबल एमए मनोकामना त्रिपाठी (नुसरत भरुचा) है। माता पिता उसकी शादी कराना चाहते हैं, लेकिन वह अपने पांवों पर खड़े होना चाहती है। उसका दोस्त देवी प्रसाद (पारितोष त्रिपाठी) उससे बहुत प्यार करता है लेकिन उसमें अपने प्यार का इजहार करने का साहस नहीं है। तमाम प्रयासों के बाद मनोकामना की नौकरी नाटकीय क्रम में एक कंडोम निर्माता कंपनी में लग जाती है। इस कंडोम कंपनी का मालिक परेशान है कि उसके उत्पाद की बिक्री नहीं हो रही है। मनोकामना के बतौर सेल्स एग्जीक्यूटिव(sales Executive) जुड़ने से कंपनी की बिक्री बढ़ जाती है। इस दौरान उसकी मुलाकात रामलीला में अभिनय करने वाले रंजन (अनुद रंजन ढ़ाका) से होती है। थोड़ी नोकझोंक के बाद उनका प्रेम परवान चढ़ता है। शादी के बाद रूढि़वादी ससुर केवल प्रजापति (विजय राज) को मनोकामना की नौकरी की असलियत पता चलने पर घर में भूचाल आ जाता है। वह नौकरी छोड़ देती है। हालात कुछ ऐसे मोड़ लेते हैं मनोकामना दोबारा अपनी नौकरी में वापस लेने का निर्णय लेती है। इस निर्णय से क्या उसकी शादी बचेगी? क्या उसके ससुर की सोच बदलेगी? क्या वह अपने मकसद में कामयाब होगी ? इसके इर्दगिर्द ही फिल्म की कहानी गढ़ी गई है।
हिंदी सिनेमा में फिल्म पैडमैन में सैनेटरी पैड, टायलेट एक प्रेमकथा में शौचालय जैसे वर्जित विषयों पर फिल्म बनी हैं। कंडोम, गर्भपात के प्रति जागरूकता को लेकर फिल्म बनाना साहस का काम है। फिल्म की शुरुआत में ही मनोकामना ने बता दिया है कि शादी से पहले बच्चों की प्लानिंग में यकीन रखती है। शुरुआत में फिल्म मनोकामना के कंडोम कंपनी में काम करने पर फोकस लगती है, जिसका विरोध पहले माता-पिता करते हैं बाद में आसानी से मान जाते हैं। फिल्म कंडोम की बिक्री न होने को लेकर कंपनी की चिंता दर्शाती है, लेकिन उसके उपयोग पर बात नहीं करती। फिल्म के सिर्फ एक दृश्य में कंडोम खरीदने को लेकर झिझक दिखाने का प्रयास हुआ है। जबकि एक बुजुर्ग बड़ी आसानी से उसे खरीद रहे हैं। ऐसे में फिल्म का शुरुआती हिस्सा कंडोम कंपनी में काम करने और प्रेम कहानी के साथ हल्की फुल्की कॉमेडी के साथ बढ़ता है। मध्यांतर के बाद भी कहानी थोड़ा शिथिल हो जाती है। गांव में बिन ब्याही लड़की के गर्भवती होने का प्रसंग जल्दबाजी में निपटाया गया है। फिल्म की अवधि भी काफी ज्यादा है। कई अनावश्यक सीन को हटाकर उसे कम किया जा सकता था। कंडोम का इस्तेमाल न करने, गर्भपात और डिलिवरी के समय हर साल हजारों महिलाओं की होने वाली मौत जैसे मुद्दे संवेदनशील हैं। कामेडी के साथ इसे उठाने से लोग उसका लुत्फ लेते हैं लेकिन जहां पर मुद्दे की गंभीरता और जागरूकता का प्रसंग आता है वहां पर यह फिल्म सुस्त हो जाती है और अपना प्रभाव खोने लगती है। फिल्म का क्लाइमेक्स भी काफी लंबा खींच गया है। शुरुआत में देवी प्रसाद का ट्रैक काफी अच्छा चलता है। बाद में उनके किरदार साथ समुचित न्याय नहीं हुआ है। पर हां फिल्म के वनलाइनर बीच-बीच में हंसाते हैं।
फिल्म रिव्यू : जनहित में जारी
प्रमुख कलाकार : नुसरत भरुचा, अनुद सिंह ढ़ाका,विजय राज,पारितोष त्रिपाठी,बृजेंद्र काला
निर्देशक : जय बसंतू सिंह
अवधि : 147 मिनट
स्टार : तीन