Inspector Zende Review: द फैमिली मैन वाले जोन में दिखें मनोज बाजपेयी, बिकिनी किलर के साथ मेकर्स ने किया अन्याय
Inspector Zende Review मनोज बाजपेयी और जिम सरभ स्टारर इंस्पेक्टर झेंडे 5 सितंबर को नेटफ्लिक्स पर रिलीज हो चुकी है। इस फिल्म की कहानी बिकिनी किलर चार्ल शोभराज और इंस्पेक्टर मधुकर बी झेंडे की सच्ची घटना पर बेस्ड है। मूवी में मेकर्स ने कॉमेडी का तड़का लगाने की कोशिश की है। हालांकि कई जगहों पर कमी भी रह गई है।

प्रियंका सिंह, मुंबई। डिजिटल प्लेटफॉर्म नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई फिल्म इंस्पेक्टर झेंडे की शुरुआत में ही वॉइस ओवर में बता दिया जाता है कि यह फिल्म वास्तविक घटना से प्रेरित फिल्म है। मुंबई पुलिस के इंस्पेक्टर मधुकर बी झेंडे, जिन्होंने अपने कार्यकाल में दो बार, पहले मुंबई में साल 1971 और दूसरी बार साल 1986 गोवा में कुख्यात अपराधी चार्ल्स शोभराज को पकड़ा था।
क्या है इंस्पेक्टर झेंडे की कहानी?
कहानी शुरू होती है साल 1986 से, जहां मुंबई पुलिस में काम कर रहे इंस्पेक्टर झेंडे (मनोज बाजपेयी) को पता चलता है कि इंटरपोल का मोस्ट वांटेड क्रिमिनल कार्ल भोजराज (जिम सरभ) दिल्ली के तिहाड़ जेल से भाग गया है। साल 1971 में झेंडे ने ही उसे पहली बार पकड़ा था। इसलिए एक बार फिर उसे जिम्मेदारी दी जाती है, क्योंकि कार्ल दिल्ली से भागकर मुंबई आता है। वहां से शुरू होता है चूहे-बिल्ली और सांप-नेवले का खेल।
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इन 15 वर्षों में कार्ल और भी खतरनाक हो गया है। उस पर 32 हत्याएं और चार देशों की जेल से पुलिस को चकमा देकर फरार होने का इल्जाम भी है। झेंडे मुंबई से लेकर गोवा तक कार्ल को पकड़ने के लिए सीमित बजट और छोटी सी टीम के साथ गोवा भी जाना पड़ता है।
चार्ल शोभराज लगा है फिल्म में मामूली चोर
हिंदी व मराठी फिल्मों के अभिनेता चिन्मय डी मंडलेकर की बतौर निर्देशक यह भले ही पहली फिल्म है, लेकिन कहीं से भी इसका अहसास इसलिए नहीं होता है, क्योंकि तकनीकी तौर पर वह फ्रेम को बांधे रखते हैं। हालांकि उनकी लिखी फिल्म की कहानी बेहद धीमी और लंबी है। कॉमेडी के पंचेस भी जब तक समझ आते हैं, सीन आगे निकल चुका होता है। साल 1986 की मुंबई केवल बोतल में दूध लेकर जाने और लैंडलाइन वाले सीन में ही दिखती है। चार्ल्स शोभराज बेहद की खतरनाक अपराधी था, लेकिन फिल्म में वह अंत तक मामूली चोर ही नजर आता है। झेंडे और कार्ल दोनों ही पात्रों को चिन्मय को मजबूत बनाने की जरुरत थी, फिर भले ही उन्होंने इसके जोनर को कॉमेडी रखा है।
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जब फिल्म के शुरू में बता ही दिया गया था कि फिल्म वास्तविक घटना से प्रेरित है और मधुकर झेंडे का नाम भी असली है, तो ऐसे में बिकिनी किलर के नाम से जाने जाने वाले कुख्यात चार्ल्स शोभराज को स्विमसूट किलर कार्ल भोजराज बनाने का औचित्य समझ नहीं आता है। फिल्म चूहे-बिल्ली और सांप-नेवले के बीच की लड़ाई की तरह शुरू होती है, जो इसे देखने लायक बनाती है। कार्ल को खोजने वाले दृश्य भले ही बहुत रोमांचक न हों, लेकिन गोवा में कार्ल को पकड़ने वाला प्रसंग, जिसमें डांस फ्लोर पर झेंडे उसे डांस करते हुए पकड़ता है, मजेदार है। विशाल सिन्हा की सिनेमैटोग्राफी फिल्म को स्टाइलिश बनाती है। फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर धीमे सीन में गति लाने में मदद करता है। अंत में ओरिजनल मधुकर झेंडे को देखकर अच्छा लगता है।
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मनोज बाजपेयी के कंधों पर है पूरी फिल्म का भार
अभिनेता मनोज बाजपेयी हर फ्रेम में कमजोर स्क्रीनप्ले को अपने अभिनय के अनुभवों से संभाल लेते हैं। द फैमिली मैन वेब सीरीज वाले जोन में वह दिखते हैं। कार्ल की भूमिका में जिम सरभ प्रभावित नहीं करते हैं, उनका फ्रेंच उच्चारण भी प्रभावशाली नहीं है। डीजीपी पुरंदरे की भूमिका में सचिन खेड़ेकर स्क्रिप्ट के दायरे में काम करते हैं। गिरिजा ओक को ज्यादा स्क्रीन स्पेस नहीं मिला है, लेकिन जितना है, उसमें वह जंचती हैं। झेंडे के साथी पाटिल के रोल में भालचंद्र कदम प्रभावित करते हैं।
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