Indoo Ki Jawani Review: प्यार में धोखा और फिर डेटिंग ऐप पर प्यार तलाश पर बेस्ड है 'इंदू की जवानी'
झंडे गाड़ने वाले डायलॉग का बार-बार जिक्र कानों को चुभने लगता है। गाजियाबाद की लड़की के किरदार में कियारा सुंदर लगी हैं। आदित्य सील को जितने डायलॉग्स मिले थे उसे वह बस बोल जाते हैं। राकेश बेदी जैसी अनुभवी कलाकार को इस फिल्म में व्यर्थ कर दिया गया है।
प्रियंका सिंह, जेएनएन। 50 प्रतिशत क्षमता के साथ दर्शकों के लिए खुले सिनेमाघरों में 'सूरज पे मंगल भारी' फिल्म के बाद हिंदी में दूसरी फिल्म कियारा आडवाणी और आदित्य सील अभिनीत फिल्म 'इंदू की जवानी' रिलीज हुई है। फिल्म की कहानी शुरू होती है गाजियाबाद की रहने वाली इंदिरा गुप्ता उर्फ इंदू (कियारा आडवाणी) से, मोहल्ले के बुजुर्ग और जवान सब इंदू के दीवाने हैं। इंदू का ब्वायफ्रेंड सतीश उसके साथ एक रात बिताना चाहता है। इंदू शादी से पहले इसके लिए तैयार नहीं। वह अपनी दोस्त सोनल (मल्लिका दुआ) से राय मांगती है, जिस पर उसे गूगल से ज्यादा भरोसा है। सोनल लड़कों को लेकर कुछ ज्यादा ही जजमेंटल है। उसे पता है कि लड़के लड़कियों से क्या चाहते हैं।
वह इंदू से कहती है कि शादी से पहले शारीरिक संबंध में कोई बुराई नहीं है। इंदू सतीश को किसी और लड़की के साथ रंगे हाथों पकड़ लेती है। उसका ब्रेकअप हो जाता है। सोनल, इंदू से डेटिंग ऐप पर वन नाइट स्टैंड के लिए लड़के तलाशने की सलाह देती है। वहां इंदू की मुलाकात समर (आदित्य सील) से होती है। समर पाकिस्तानी है। वह समर को अपने घर मिलने के लिए बुला लेती है। कहानी के बीच एक आतंकवादी पुलिस पर गोली चलाकर भागता है। उसका साथी फरार है। यह दोनों कहानियां आपस में टकराती हैं। फिल्म का लेखन और निर्देशन अबीर सेनगुप्ता ने किया है। डेटिंग ऐप के साथ इस कहानी का प्लॉट दिलचस्प हो सकता था, लेकिन भारत-पाकिस्तान के बीच की बहस के बीच असली मुद्दा खो जाता है।
इंदू और समर के बीच अपने-अपने देश को लेकर जो नोक-झोंक होती हैं, वह पहले हिस्से में ठीक लगती है, लेकिन दूसरे हिस्से में बोर कर देती है। कॉमेडी से ज्यादा फिल्म दोनों देशों के बीच तनाव की वजहों को खत्म करने पर आ जाती है। जो रोमांच ब्लैक स्कॉर्पियो में आंतकवादी के गाजियाबाद में घुसने के साथ शुरू होता है, वह बीच बीच कहानी में दम तोड़ देता है। फिल्म में उनकी मौजूदगी बेमानी लगने लगती है। शारीरिक संबंध पर एक ही नजरिए से बात करना अटपटा लगता है। फिल्म के क्लामेक्स में आतंकवादी के सामने इंदू का चाकू लेकर खड़े हो जाना, मौका पाकर बाहर भागने की बजाय घर में छुप जाना बचकाना लगता है।
फिल्म का आतंकवादी न पूरी तरह से कॉमिक जोन में आता न खतरनाक लगता है। भारत-पाकिस्तान के रिश्तों में बंदूक का डायलॉग कि यह बिना नाम मजहब, देश का आदमी हम दो देशों को लड़वा रहा है आपस में। हमें देखो हम लड़ रहे है बेवकूफों की तरह, जरा सोचो अगर गन ही नहीं होती, तो लोग लड़ते कैसे? कहानी को दूसरी दिशा में ले जाता है। इंदू का किरदार कभी तेज-तर्रार है, तो कभी भोली, तो कभी समाज की चिंता करने में लग जाती है। आदित्य का किरदार पाकिस्तान से भारत अपनी मां का इलाज कराने आता है, लेकिन लेखक ने यह बातें बस डायलॉग में ही बताई हैं।
झंडे गाड़ने वाले डायलॉग का बार-बार जिक्र कानों को चुभने लगता है। गाजियाबाद की लड़की के किरदार में कियारा सुंदर लगी हैं। आदित्य सील को जितने डायलॉग्स मिले थे, उसे वह बस बोल जाते हैं। राकेश बेदी जैसी अनुभवी कलाकार को इस फिल्म में व्यर्थ कर दिया गया है। मल्लिका दुआ की कॉमेडी में नयापन नहीं है। सावन में लग गई आग गाना कर्णप्रिय है।
फिल्म – इंदू की जवानी
मुख्य कलाकार – कियारा आडवाणी, आदित्य सील, इकबाल खान, राकेश बेदी
निर्देशक और लेखक – अबीर सेनगुप्ता
अवधि – 118 मिनट
रेटिंग – 1.5