Hum Bhi Akele Tum Bhi Akele Review: समलैंगिक किरदारों की 'जब वी मेट' है ज़रीन ख़ान और अंशुमन झा की 'हम भी अकेले तुम भी अकेले'
बाक़ी समलैंगिक किरदारों वाली फ़िल्मों से जो बात हम भी अकेले तुम भी अकेले को अलग करती है वो है एक सवाल जो फ़िल्म अपने कथानक के ज़रिए उठाती है- विपरीत सेक्सुअल ओरिएंटेशन वाले किरदारों के बीच आकर्षण या प्यार के आख़िर क्या मायने हैं और उसकी परिणीति क्या है?
मनोज वशिष्ठ, नई दिल्ली। हिंदी सिनेमा में पिछले कुछ वक़्त से समलैंगिक विषयों को पर्दे पर दिखाने का नज़रिया बदला है। ऐसे किरदारों के ज़रिए महज़ फूहड़ हास्य पैदा करने के बजाए अब उन्हें संजीदगी के साथ दिखाने की परम्परा शुरू हो चुकी है। मुख्यधारा के सिनेमा में इसकी मिसाल आयुष्मान खुराना की 'शुभ मंगल ज़्यादा सावधान' मानी जा सकती है, जो एक हल्की-फुल्की समलैंगिक प्रेम कहानी है और इसका नायक हिंदी सिनेमा की मुख्यधारा का अभिनेता है।
हाल ही में रिलीज़ हुईं एकता कपूर निर्मित वेब सीरीज़ 'द मैरीड वुमन' और 'हिज़ स्टोरी' महिला और पुरुषों में समलैंगिकता के पारिवारिक और सामाजिक पहलुओं को रेखांकित करती हैं। फ़िल्मों और वेब सीरीज़ के कथानकों में भले ही समलैंगिता के विषय को दिखाने के तरीक़ों में परिपक्वता आयी हो, मगर वास्तविक जीवन में समलैंगिकता को बीमारी मानने वाला एक बड़ा वर्ग आज भी मौजूद है।
9 मई को डिज़्नी प्लस हॉटस्टार पर रिलीज़ हुई हरीश व्यास निर्देशित 'हम भी अकेले तुम भी अकेले' इसी सामाजिक सोच को रेखांकित करने वाली रोमांटिक ड्रामा फ़िल्म है, जिसके दोनों मुख्य किरदार LGBT (Lesbian Gay Bisexual and Transgender) समुदाय से आते हैं, यानी दोनों ही पुरुष-स्त्री किरदार समलैंगिक हैं। अंशुमन झा का किरदार वीर रंधावा गे है, जबकि ज़रीन ख़ान का किरदार मानसी लेस्बियन है।
मगर, बाक़ी समलैंगिक किरदारों वाली फ़िल्मों से जो बात 'हम भी अकेले तुम भी अकेले' को अलग करती है, वो है एक सवाल, जो फ़िल्म अपने कथानक के ज़रिए उठाती है- विपरीत सेक्सुअल ओरिएंटेशन वाले किरदारों के बीच आकर्षण या प्यार के आख़िर क्या मायने हैं और उसकी परिणीति क्या है? 'हम भी अकेले तुम भी अकेले' समलैंगिक समुदाय की पारिवारिक स्वीकार्यता के मुद्दे को रेखांकित तो करती है, मगर उसकी गहराई में नहीं उतरती।
'हम भी अकेले तुम भी अकेले' की कहानी ज़रीन ख़ान के किरदार मानसी के नैरेशन के साथ मौजूदा दिन से 369 दिन पीछे से शुरू होती है। मानसी मेरठ की है। लेस्बियन है। माता-पिता इस बीमारी के बारे में जानते हैं, मगर पिता को अफ़सोस है कि वो इसका इलाज नहीं ढूंढ सके। मानसी की शादी के लिए लड़के की तलाश की जा रही है। आख़िर, मानसी घर से भागकर दिल्ली चली जाती है। मानसी बेबाक, बेख़ौफ़ और ज़िंदादिल लड़की है।
उधर, अंशुमन झा का किरदार वीर गे है और अपनी मंगनी के दिन घर से भागकर अपने प्रेमी अक्षय (गुरफ़तेह पीरज़ादा) से मिलने दिल्ली आता है। उसके पिता आर्मी में कर्नल रहे हैं। सख़्त अनुशासन और पिता की मर्ज़ी के मुताबिक़ पला-बढ़ा अंशुमन अपने मन की बात कभी घर वालों से कहने की हिम्मत नहीं जुटा सका। मंगनी के दिन भी भागने से पहले वो ख़ुद कहने के बजाय इसकी सूचना अपने घर वालों तक पहुंचाने का ज़िम्मा मंगेतर पर डालता है।
दिल्ली में मानसी और वीर एक एलजीबीटी क्लब में मिलते हैं और एक-दूसरे के बारे में जानकर दोस्ती की शुरुआत होती है। शादी-शुदा अक्षय, वीर के प्रेम को स्वीकार तो करता है, मगर पारिवारिक, सामाजिक और कारोबारी दबावों के चलते उसके साथ होने से इनकार कर देता है। वीर टूट जाता है। मानसी अपनी प्रेमिका (जाह्नवी रावत) से मिलने मैकलॉयड गंज जा रही होती है।
वीर की मानसिक स्थिति देख वो उसे अपने साथ चलने का प्रस्ताव देती है, जिसे वीर स्वीकार कर लेता है और दोनों एक ऐसी रोड ट्रिप पर निकलते हैं। इस रोड ट्रिप में दोनों के साथ कुछ ऐसी घटनाएं होती हैं, जो उनकी ज़िंदगी का रुख़ बदल देता है। मानसी की प्रेमिका अपने पिता के सामने अपनी मर्ज़ी नहीं कह पाती। मगर, मानसी का साथ वीर को हिम्मत देता है और वो अपने परिवार के सामने खुलकर अपनी सेक्सुअल ओरिएंटेशन के बारे में बात कर पाता है। अपने प्रेमियों से तन्हा हुए मानसी और वीर को एक-दूसरे में पनाह मिलती है।
कुछ वक़्त बाद मानसी की प्रेमिका उसके पास आ जाती है। मगर, फिर एक हादसा होता है और मानसी के सामने अपनी प्रेमिका और वीर में से किसी एक को चुनने की चुनौती आती है। वो किसे चुनती है, इसी में 'हम भी अकेले तुम भी अकेले' का संदेश भी छिपा है।
हरीश व्यास और सुज़न फर्नांडिस ने फ़िल्म का लेखन किया है। अगर फ़िल्म के किरदारों के सेक्सुअल ओरिएंटेशन को छोड़ दें तो कई बार इम्तियाज़ अली की बेहद लोकप्रिय फ़िल्म 'जब वी मेट' की याद दिलाती है। ख़ासकर, मानसी और वीर के किरदारों का चित्रण गीत (करीना कपूर ख़ान) और आदित्य (शाहिद कपूर) की याद दिलाते हैं।
बेशक दोनों फ़िल्मों की घटनाएं अलग हैं, मगर उनके होने की वजह एक जैसी लगती हैं। फ़िल्म की शुरुआत में लगता है कि कहानी आगे चलकर गे और लेस्बियन लोगों के सामाजिक स्वीकार्यता के मुद्दे पर निर्णायक बात करेगी, मगर क्लाइमैक्स की ओर जाते-जाते यह मुद्दा छूटता-सा लगता है और फ़िल्म एक अलग ही ट्रैक पर चली जाती है और भटकी हुई लगती है।
इस फ़िल्म की सबसे बड़ी हाइलाइट ज़रीन ख़ान का अभिनय है। सलमान ख़ान की फ़िल्म वीर से हिंदी सिनेमा में पारम्परिक हीरोइन की तरह डेब्यू करने वाली ज़रीन का फ़िल्मी करियर भले ही बहुत इम्प्रेसिव ना रहा हो, मगर हम भी अकेले तुम भी अकेले ज़रीन के अभिनय का एक अलग आयाम प्रस्तुत करती है। मानसी के उन्मुक्त किरदार में ज़रीन बहुत सहज लगी हैं। उनकी बेबाक़ी और बेतकल्लुफ़ी इस फ़िल्म की जान है, जिसे अंशुमन के बिल्कुल विपरीत किरदार वीर के संकोच और संवेदनशीलता ने पूरा सपोर्ट दिया। फ़िल्म के सहयोगी कलाकारों ने सधा हुआ अभिनय किया है।
संवाद सहज और आम बोल-चाल का ह्यूमर लिये हुए हैं। कहीं-कहीं थोड़ी दार्शनिकता आ जाती है है। फ़िल्म के गीत परिस्थितियों के अनुकूल हैं और दृश्यों के प्रभाव को बढ़ाते हैं। ख़ासकर, बुल्ला की जाणा का विभिन्न भावनात्मक परिस्थितियों में प्रयोग अच्छा लगता है। हरीश व्यास के निर्देशन में ठहराव है। दृश्यों को दिखाने में कोई जल्दबाज़ी नहीं दिखती। इस वजह से कुछ जगहों पर फ़िल्म की रवानगी प्रभावित होती है, मगर इस शिथिलता को कलाकारों का अभिनय साध लेता है।
कलाकार- ज़रीन ख़ान, अंशुमन झा, गुरफतेह पीरज़ादा, जाह्नवी रावत, नितिन शर्मा, डेंज़िल स्मिथ आदि।
निर्देशक- हरीश व्यास
निर्माता- अंशुमन झा, फ़र्स्ट रे फ़िल्म्स।
स्टार- **1/2 (ढाई स्टार)