Hindustani 2 Review: ज्यादा नाटकीयता से लड़खड़ाई भ्रष्टाचार के खिलाफ सेनापति की लड़ाई, आउटडेटेड हुआ अंदाज
कमल हासन की फिल्म हिंदुस्तानी 2 सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। शंकर निर्देशित फिल्म के जरिए सेनापति 28 साल बाद पर्दे पर लौटा है जिसने 1996 में आई फिल्म हिंदुस्तानी में भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई शुरू की थी। हालांकि इतना समय गुजरने के बाद सेनापति की सोच अब पहले जैसी नहीं रही है। वहीं समाज भी इतना बदल गया है कि सेनापति के लिए लड़ना मुश्किल हो रहा है।
स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। डेढ़ करोड़ की घूस देकर बेटे को मेडिकल की सीट दिला दी। आज वो यू-ट्यूब देखकर ऑपरेशन कर रहा है। उसके आपरेशन की वजह से मरीज की मौत हो जाती है। क्या आप इसकी लिखी दवा लेंगे? क्या आप इससे ऑपरेशन करवाएंगे?
इसी तरह सरकारी नौकरी पाने को लेकर किस प्रकार रिश्वत देनी पड़ती है और रिश्वतखोर आसानी से रिहा हो जा जाते हैं। ऐसे ही भ्रष्टाचार के मुद्दों के साथ हिंदुस्तानी 2 की कहानी गढ़ी गई है।
करीब 28 साल पहले आई फिल्म हिंदुस्तानी में भ्रष्टाचारियों को सजा देने वाले सेनापति की कहानी दिखाई गई थी, जो अपने बेटे को भी नहीं बख्शता है। फिर पुलिस से बचने के लिए विदेश फरार हो जाता है। 'हिंदुस्तानी 2- जीरो टॉलरेंस' की कहानी यहीं से आरंभ होती है।
क्या है हिंदुस्तानी 2 की कहानी?
चित्रा अरविंदन (सिद्धार्थ) अपने तीन दोस्तों के साथ मिलकर बार्किंग डॉग नाम से यू-ट्यूब चैनल चलाता है। वे समाज में होने वाले भ्रष्टाचार और आम आदमी के दर्द को बयां करते हैं। जब वह भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने में खुद को अक्षम पाते हैं तो उन्हें सेनापति (कमल हासन) यानी इंडियन की याद आती है, जिसके खौफ के चलते लोग रिश्वत लेने से डरने लगे थे।
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वे इंटरनेट मीडिया पर कमबैक इंडियन का अभियान चलाते हैं। उसकी अनुगूंज ताइपे में रह रहे इंडियन तक जाती है। वह भारत में हो रहे भ्रष्टाचार से वाकिफ होते हैं। वह स्वदेश आते हैं। यहां पर पुलिस उनके पीछे पड़ती है।
सेनापति इंटरनेट मीडिया के जरिए लोगों को संदेश देते हैं कि भ्रष्टाचार करने वाला कहीं और नहीं हमारे आसपास या घर में ही होगा। उसे पहचानो। सुबूत इकट्ठा करो और उसे सजा दिलवाओ। घर साफ होगा, तब ही देश होगा। उनका संदेश देश के कोने-कोने में पहुंचता है। यह मुहिम रंग लाती है।
चित्रा और उसके दोस्त घर में अपनों को ही भ्रष्ट पाते हैं। हालांकि, इस सच्चाई से बाद में उनकी ही जिंदगी में भूचाल आ जाता है। वह इंडियन को वापस जाओ कहने लगते हैं। इंडियन के समर्थक ही उनके दुश्मन बन जाते हैं। अब इंडियन उनसे कैसे निपटेगा? उसके लिए एक साल इंतजार करना होगा, क्योंकि हिंदुस्तानी 3 अगले साल आएगी।
ज्यादा हुए नाटकीय घटनाक्रम
पहली फिल्म की तुलना में सीक्वल को काफी भव्य बनाया गया है। भ्रष्टाचार के कई मुद्दों को इसमें समेटने का प्रयास हुआ है। हालांकि, इसमें कोई नयापन नहीं है। कहानी में ट्विस्ट यह है कि जब अपने ही लोग भ्रष्ट हों और उन्हें सजा दिलाई जाए, तब क्या होगा? निर्देशक और लेखक एस शंकर का यह आइडिया दिलचस्प है।
हालांकि, वहां तक पहुंचने में नाटकीय घटनाक्रमों की संख्या ज्यादा हो गई है। इससे फिल्म लड़खड़ा जाती है और उबाऊ हो जाती है। पहली फिल्म की तरह यहां पर दर्शाए मुद्दों से आप भावनात्मक तौर पर कनेक्ट नहीं हो पाते हैं। वैसे अगर गौर करें तो इन दिनों फिल्ममेकर्स के लिए भ्रष्टाचार का ज्वलंत उदाहरण भगौड़ा विजय माल्या है।
बीते दिनों रिलीज फिल्म क्रू में अप्रत्यक्ष तौर पर उसे पकड़ने तीन एयर होस्टेज जाती हैं। यहां पर लड़कियों के शौकीन और कैलेंडर गर्ल शूट करने वाले माल्या सरीखे अमीर (गुलशन ग्रोवर) को मारने सेनापति पहुंच जाते हैं। आखिर के आधे घंटे में जब चित्रा और उसके दोस्त इंडियन के खिलाफ होते हैं, तब कहानी में थोड़ा रोमांच आता है। फिल्म इंटरनेट मीडिया की ताकत भी दर्शाती है।
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कमल हासन पर केंद्रित पूरी फिल्म
फिल्म मूल रूप से कमल हासन के पात्र पर केंद्रित है। उम्र के इस पड़ाव में भी सेनापति में कोई बदलाव नहीं आया है। लोग उन्हें प्यार से दादाजी जी बुलाते हैं, जो वन मैन आर्मी की तरह एक साथ सौ लोगों को पटखनी देने में सक्षम हैं। किरदार की उम्र को देखते हुए यह थोड़ा अधिक लगता है। पहली फिल्म में देख चुके हैं कि सेनापति प्राचीन मार्शल आर्ट वर्मा कलाई में सिद्धहस्त हैं।
इस कला के प्रयोग से इंसान मूर्छित हो सकता है, शरीर का कोई भी हिस्सा सुन्न हो सकता है, वाणी बंद हो सकती है, सांसों को भी रोक सकते हैं। यहां पर उसी कला का प्रचुर मात्रा में प्रयोग है। खैर प्रास्थेटिक मेकअप और विग के साथ कमल हासन अपने किरदार में पूरी तरह रमे नजर आते हैं।
सिद्धार्थ अपनी भूमिका साथ न्याय करते हैं। रकुल प्रीत को चंद दृश्य अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए मिले हैं। उसमें उन्होंने अपनी क्षमता का परिचय दिया है। छोटी भूमिकाओं में आए गुलशन ग्रोवर और जाकिर हुसैन आवश्यक कलेवर देते हैं। पीयूष मिश्रा जैसे मंझे कलाकारों की प्रतिभा का समुचित उपयोग नहीं हुआ है।
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फिल्म में गानों का फिल्मांकन भव्य स्तर पर किया गया है। बड़े-बड़े सेट हैं, जो उसे विजुअली सुंदर बनाते हैं। मूल फिल्म का गीत-संगीत जहां आज भी लोकप्रिय है।
वहीं, हिंदुस्तानी 2 का गीत-संगीत निराश करता है। रवि वर्मन की सिनेमेटोग्राफी नयनाभिरामी है। अगर आपने पहली फिल्म नहीं देखी है तो भी कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा।। सेनापति की भ्रष्टाचार से निपटने का हिंसक तरीका पहली फिल्म में सफल रहा, लेकिन सीक्वल में वह संभावना नजर नहीं आती।
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