Helmet Movie Review: वयस्कों की 'सामाजिक समस्या' पर बचकानी फ़िल्म, टुकड़ों में असर छोड़ती है कॉन्डोम की कॉमेडी
Helmet Movie Review कहानी अनाथ लकी (अपारशक्ति खुराना) और रूपाली (प्रनूतन बहल) की है। उत्तर प्रदेश के किसी छोटे शहर में लकी एक शादी बैंड का स्टार सिंगर है। रूपाली एक अमीर और रसूख़दार शख़्स (आशीष विद्यार्थी) की बेटी है। रूपाली शादियों में डेकोरेशन का काम भी करती है।
मनोज वशिष्ठ, नई दिल्ली। उत्तर भारत का हिंदी भाषी छोटा शहर या कस्बा। मध्यमवर्गीय परिवार। कोई ऐसी सामाजिक समस्या, जिस पर व्यंग्य कसा जा सके और आयुष्मान खुराना। विक्की डोनर, शुभ मंगल सावधान, बधाई हो... इन फ़िल्मों की कामयाबी ने आयुष्मान खुराना को स्टार बना दिया।
इस फॉर्मूले के विभिन्न मसालों का इस्तेमाल करते हुए निर्देशक सतराम रमानी ने छोटे शहरों में मेडिकल स्टोर से कॉन्डोम ख़रीदने की झिझक और इसे सीधा आबादी की बेकाबू रफ़्तार से जोड़ते हेलमेट बना डाली। लीड रोल में लिया आयुष्मान के छोटे भाई अपारशक्ति खुराना को, मगर कमज़ोर स्क्रिप्ट और संवादों ने हेलमेट को ढेर कर दिया।
कहानी अनाथ लकी (अपारशक्ति खुराना) और रूपाली (प्रनूतन बहल) की है। उत्तर प्रदेश के किसी छोटे शहर में लकी एक शादी बैंड का स्टार सिंगर है। रूपाली एक अमीर और रसूख़दार शख़्स (आशीष विद्यार्थी) की बेटी है। रूपाली शादियों में डेकोरेशन का काम भी करती है। लकी और रूपाली प्यार करते हैं और शादी करना चाहते हैं।
रोड़ा बनता है दोनों के सामाजिक और आर्थिक स्तर का फ़र्क। लकी रूपाली का हाथ मांगने उसके घर जाता है, मगर रुपाली का पिता उसे बेइज़्ज़त करके निकाल देता है। लकी, रूपाली के मामा के बैंड में काम करता है।रूपाली से प्यार की बात पता चलने पर उसे बैंड से भी निकाल दिया जाता है। अब रूपाली से शादी करने के लिए लकी के सामने एक ही रास्ता है कि वो कहीं से पैसे का जुगाड़ करे और अपना बैंड खोल ले।
इसके लिए उसके पास सिर्फ़ 4 महीनों का समय है, क्योंकि पिता ने रूपाली की शादी एक विदेशी लड़के से तय कर दी है। रुपाली संग शादी की ख़ातिर पैसे जुटाने के लिए लकी अपने दोस्तों सुल्तान और माइनस के साथ मिलकर एक ऑनलाइन शॉपिंग कंपनी का ट्रक लूटता है।
जिस ट्रक को वो लूटते हैं, उसके बक्सों में मोबाइल फोन मिलने की उम्मीद होती है, मगर मिलते हैं कॉन्डोम भरे बॉक्स। इतने कॉन्डोम का क्या करे? इन्हें नष्ट नहीं किया जा सकता। इसलिए तीनों कॉन्डोम बेचने की योजना बनाते हैं, मगर जिस शहर में एक दुकान पर जाकर निरोध का नाम लेना भी शर्मसार कर देता हो, वहां हज़ारों की तादाद में कॉन्डोम कैसे बेचे जाएं? तीनों इसका समाधान निकालते हैं।
रूपाली भी कॉन्डोम बेचने में मदद करती है। हालांकि, उसे नहीं पता कि यह चोरी का माल है। सारे कॉन्डोम बिकने के बाद लकी अपना बैंड खोल लेता है। मगर, पुलिस उन तक पहुंच जाती है। तीनों जेल पहुंच जाते हैं। सरकार की ओर से सर्वे करने वाली कंपनी उनके इतनी बड़ी तादाद में कॉन्डोम बेचने से प्रभावित हो जाती है। 6 महीने की सज़ा काटने के बाद जब वो बाहर आते हैं तो उनका किसी हीरो की तरह स्वागत किया जाता है। रूपाली के पिता कहते हैं कि यह चोरी स्वर्णाक्षरों में लिखी जाएगी।
फ़िल्म के निर्देशक रमानी ने गोपाल मुढाने और रोहन शंकर के साथ फ़िल्म की पटकथा भी लिखी है, जो इस मनोरंजक और अलग दिखने वाली फ़िल्म की सबसे कमज़ोर कड़ी साबित हुई है। लकी, रूपाली से शादी करने के लिए ट्रक लूटने का प्लान बनाता है तो उसके मन में इसको लेकर को द्वंद्व या ऐसा भाव नहीं दिखता कि वो मजबूरी में अनैतिक काम करने जा रहा है और आगे चलकर उसे इसका ख़ामियाज़ा भुगतना पड़ सकता है। मगर पकड़े जाने पर जब जेल हो जाती है तो वही लकी मिलने आयी प्रेमिका को ज्ञान दे रहा होता है कि हमने चोरी की थी तो सज़ा तो मिलनी ही थी।
लकी को फ़िल्म में अनाथ दिखाया गया है और उसे लगता है कि बच्चों के अनाथ हो जाने में कॉन्डोम ख़रीदने के लिए झिझक होना एक बहुत बड़ी वजह है। यह सोच ही अपने आप में एक मज़ाक लगती है। लकी की तरह फ़िल्म के लेखक-निर्देशक भी काफ़ी 'मासूम' लगते हैं। फ़िल्म के संवाद हल्के हैं। क्लाइमैक्स में अपनी प्रेमिका के सामने सफ़ाई देते हुए लकी की स्पीच बहुच बचकानी लगती है। शादी से बचने के लिए विदेशी लड़के से रूपाली का संवाद बिल्कुल ह्यूमरस नहीं लगता।
हालांकि, कुछ दृश्य गुदगुदाते हैं। लकी का कॉन्डोम ख़रीदने स्टोर पर जाने का दृश्य दिलचस्प है, जिसकी झलक दर्शकों ने ट्रेलर में भी देख ली है। ऊंचा सुनने वाला माइनस पूरी गंभीरता के साथ अर्थ का अनर्थ करता है तो हंसी आती है। मगर, ऐसे दृश्य कम हैं। फ़िल्म टुकड़ों में प्रभावित करती है। अभिनय की बात करें तो अपारशक्ति खुराना ने लकी के किरदार में ठीक लगे हैं, मगर उनकी अदाकारी में एकरूपता है। हर परिस्थिति में अपारशक्ति के हाव-भाव तक़रीबन एक जैसे रहते हैं।
रूपाली के किरदार में प्रनूतन बहल शुरुआत में अच्छी लगती हैं, मगर आगे के दृश्यों में पकड़ खो देती हैं। तेज़तर्रार लड़की के किरदार में प्रनूतन की संवाद अदायगी चिड़चिड़ाहट भरी और एक जैसी रहती है। सपोर्टिंग कास्ट में अभिषेक बनर्जी और आशीष वर्मा ने अच्छा साथ दिया है। इन दोनों ने फ़िल्म के कुछ दृश्यों को अपनी अदाकारी से संभाला है।
स्थानीय डॉन के किरदार में शारिब हाशमी कुछ दृश्यों में नज़र आये हैं, मगर द फैमिली मैन 2 के बाद ऐसे दृश्य अब उनके कद के अनुरूप नहीं लगते। इसलिए शारिब मिसफिट लगते हैं। हेलमेट की सामाजिक समस्या प्रधान छवि बनाये रखने के लिए पीएम मोदी के भाषण का छोटा-सा अंश दिखाया गया है, जिसमें वो आबादी नियंत्रण की ज़रूरत पर ज़ोर दे रहे हैं।
कॉन्डोम बेचने को लेकर लोगों की झिझक को फ़िल्म में राष्ट्रीय समस्या के तौर पर पेश किया गया है और आबादी बढ़ने की रफ़्तार के पीछे इसे प्रमुख कारण माना गया है। निरोध या कॉन्डोम का इस्तेमाल ना करने की वजह से यौन रोगों का ग्राफ भी बढ़ रहा है, जिसे महिला यौनकर्मियों के ज़रिए प्रतीक स्वरूप दिखाया गया है, जो कॉन्डोम की सेल बढ़ाने में लकी एंड टीम की मदद करती हैं। हेलमेट उन फ़िल्मों में शामिल है, जो कॉन्सेप्ट के स्तर पर तो प्रभावशाली और मनोरंजक लगती हैं, मगर जब बारी पर्दे पर उतारने की आती है तो निराश करती हैं। पौने दो घंटे की अवधि होने के बावजूद हेलमेट पकड़कर नहीं रख पाती।
कलाकार- अपारशक्ति खुराना, प्रनूतन बहल, अभिषेक बनर्जी, आशीष वर्मा, शारिब हाशमी, आशीश विद्यार्थी आदि।
निर्देशक- सतराम रमानी
निर्माता- डीनो मोरिया, सोनी पिक्चर्स
रेटिंग- ** (दो स्टार)