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फिल्म रिव्यू : तंग गलियों की मोहब्‍बत 'डोंगरी का राजा' (2 स्‍टार)

फिल्म की कहानी थोड़ी अलग है। लेखक ने उसके लिए सुविधाओं के साथ दुविधाएं भी जुटा ली हैं। सुविधा और दुविधा के घालमेल से कहानी विश्वसनीय नहीं लगती और बांध नहीं पाती।

By Pratibha Kumari Edited By: Published: Fri, 11 Nov 2016 08:39 AM (IST)Updated: Fri, 11 Nov 2016 09:14 AM (IST)
फिल्म रिव्यू : तंग गलियों की मोहब्‍बत 'डोंगरी का राजा' (2 स्‍टार)

अजय ब्रह्मात्मज

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प्रमुख कलाकार- रोनित रॉय, अश्मित पटेल, गशमीर महाजन, रिचा सिन्हा
निर्देशक- हादी अली अबरार
स्टार- 2

डोंंगरी मुंबई की एक बस्ती है। अंडरवर्ल्ड के सरगनाओं के लिए कुख्यात यह बस्ती सदियों पुरानी है। अंग्रेजों के समय बसाई गई इस बस्ती का इतिहास 400 साल से अधिक का है। आजादी के बाद के दिनों में हाजी मस्तान, करीम लाला, दाउद इब्राहिम, छोटा शकील, अरूण गवली और रामा नाईक की वजह से यह बस्ती अंडरवर्ल्ड गतिविधियों का प्रमुख केंद्र मानी जाती है। हादी अली अबरार की फिल्म ‘डोंगरी का राजा’ टायटल की वजह से जिज्ञासा बढ़ाती है। पहला अनुमान यही होता है कि यह निश्चित ही अंडरवर्ल्ड की कहानी होगी। ‘डोंगरी का राजा’ अंडरवर्ल्ड की पृष्ठभूमि में एक प्रेमकहानी है। इस प्रेमकहानी के प्रमुख किरदारों को दो नए कलाकारों ने निभाया है। गशमीर महाजन और रिचा सिन्हा ने राजा और रितू की भूमिकाओं में हैं।

राजा इस फिल्म का नायक है। वह डोंगरी के अंडरवर्ल्ड सरगना मंसूर अली का शार्प शूटर है। मंसूर अली की बीवी उसे अपने बेटे की तरह मानती है और मंसूर अली भी उसे पसंद करता है। युवा और ईमानदार पुलिस अधिकारी सिद्धांत उसे गिरफ्तार करने में असफल रहता है, क्योंकि मंसूर और राजा के खिलाफ सबूत नहीं हैं। सिद्धांत को आखिरकार एक करीबी से मदद मिलती है। इस मदद के पहले और बाद में भी राजा और सिद्धांत के बीच चूहे-बिल्ली का खेल चलता रहता है। बीच-बीच में मंसूर अली की रोबीली आवाज और मौजूदगी अहसास दिलाती रहती है कि फिल्मोंं का बैकड्राप अंडरवर्ल्ड है। निर्देशक का मूल उद्देश प्रेमकहानी दिखाना है। खास परिस्थिति में दो भिन्न पृष्ठाभूमि के किरदार प्रेम की अनुभूति से विवश होकर पैंतरे बदलते हैं और एक-दूसरे के लिए कुर्बान होने के लिए तैयार रहते हैं।

फिल्म की कहानी थोड़ी अलग है। लेखक ने उसके लिए सुविधाओं के साथ दुविधाएं भी जुटा ली हैं। सुविधा और दुविधा के घालमेल से कहानी विश्वसनीय नहीं लगती और बांध नहीं पाती। थोड़ी देर के लिए मां, पिता और बेटे का रिश्ते का इमोश आता है। अंडरवर्ल्ड सरगना की बीवी की उदारता और दयालुता के लिए दो-चार पंक्तियों कहने के बावजूद बात नहीं बनती। उम्मीद थी कि मुंबई और मुंबई की बदनाम बस्तीे डोंगरी की गलियों में रची गई यह कहानी वहां का फील देगी। गलियों में दो-तीन चेज हैं, लेकिन वे डोंगरी को स्थापित नहीं करते। फोर्ट, सी लिंक और कोर्ट की सीढि़यां मुंबई की देखी हुई झलकियां ही पेश करती हैं। साथ ही किरदारों की भाषा पर खास ध्यान नहीं दिया गया है। हालांकि कुछ संवाद प्रभावशाली हैं। उनमें भाव और अर्थ को अच्छी तरह पिरोए गए हैं।
कलाकारों में मंसूर अली का किरदार निभा रहे रोनित राय ने एक भाव और दो एक्सप्रेशन ओढ़ लिए हैं। वे उन्हीं में चहलकदमी करते रहते हैं। उनकी बीवी बनी अश्विनी कलसेकर अपने दृश्यों को निभा ले जाती हैं। एक अंतराल के बाद आए अस्मित पटेल प्रभावित नहीं कर पाते। नए कलाकारों गशमीर महाजन और रिचा सिन्हा ने स्क्रिप्ट की सीमाओं में मेहनत की है। उनके किरदारों को सही परिप्रेक्ष्य नहीं मिला है। उनके चरित्रों के निर्वाह में ढीलापन है। फिर भी वे अपनी ताजगी से अच्छे लगते हैं। उन्होंने जरूरी दृश्यों में कसर नहीं रहने दी है। डोंगरी में राजा के दोस्त बने किरदारों का पुरबिया लहजा खटकता है। किरदारों के अनुरूप भाषा पर ध्यान नहीं देने से ऐसी चूक हुई है।

अवधि- 140 मिनट

abrahmatmaj@mbi.jagran.com


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