Crakk Review: जब कहानी में ही हों इतने क्रैक्स तो कैसे बनेगी बात! विद्युत के एक्शन की डोर पर टिकी पूरी फिल्म
विद्युत जाम्वाल की फिल्म क्रैक एक्सट्रीम स्पोर्ट्स पर आधारित है। यह ऐसे खेल होते हैं जिनमें जान का जोखिम होता है। विदेशों में ऐसे स्पोर्ट्स पर फिल्में बनती रही हैं मगर देश में ज्यादा फिल्में इस विषय पर नहीं बनी हैं। इसीलिए विद्युत ने जब इस फिल्म की घोषणा की थी तो भारतीय सिनेमा में कुछ नया देखने की आस जगी थी।

प्रियंका सिंह, मुंबई। Crakk Movie Review: जब अभिनेता विद्युत जामवाल ने एक्स्ट्रीम स्पोर्ट्स पर एक्शन फिल्म क्रैक-जीतेगा... तो जीएगा बनाने की घोषणा की थी तो एक उत्सुकता जगी थी। एक्स्ट्रीम स्पोर्ट्स बेहद खतरनाक होता है, जिसमें जान जाने का भी खतरा होता है।
ऐसे में फिल्म में इसे विद्युत कैसे दिखाने वाले हैं, उसको लेकर रोमांच पैदा हुआ था। अफसोस वह रोमांच निराशा में तब बदल गया, जब उस खेल से भटकर फिल्म कहीं से कहीं चली गई। विद्युत के बैनर तले बनी यह उनकी दूसरी फिल्म है। इससे पहले वह आईबी 71 फिल्म का निर्माण कर चुके हैं।
क्या है क्रैक की कहानी?
क्रैक की कहानी शुरू होती है मुंबई की चॉल में रहने वाले सिद्धार्थ दीक्षित उर्फ सिद्धू (विद्युत जामवाल) से, जो एक्स्ट्रीम स्पोर्ट्स का खिलाड़ी है। वह ट्रेन में स्टंट करता है। ट्रेन के ऊपर चढ़कर दौड़ता है। कई बार इस चक्कर में जेल जा चुका है।
उसके पूर्व खिलाड़ी पिता चाहते हैं कि वो देश के लिए खेले, लेकिन सिद्धू को एक्स्ट्रीम स्पोर्ट्स मैदान में जाकर खेलना है। इसमें पैसे हैं, लेकिन जान भी जा सकती है। उसका भाई निहाल (अंकित मोहन) अपनी जान मैदान में गंवा चुका है।
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पोलैंड में स्थित मैदान का कर्ताधर्ता देव (अर्जुन रामपाल) कई खिलाड़ियों के बीच सिद्धू को भी मैदान के लिए चुन लेता है। वहां सिद्धू को निहाल की मौत का सच पता चलता है। अब सिद्धू खेल खेलेगा या बदला लेगा, कहानी इस पर आगे बढ़ती है।
कैसा है फिल्म का निर्देशन?
आदित्य दत्त ने इस कहानी का सहलेखन भी किया है। वह ना निर्देशन संभाल पाए हैं, ना लेखन। फिल्म की कहानी ही भटकी हुए है तो स्क्रीनप्ले को दिशा कैसे मिलेगी। फिल्म खत्म होने पर अंदाजा लगाना कठिन है कि कहानी खेल की है, एक्शन की है, भाई और परिवार से प्यार की है या फिर बदले की है। इस बीच सिद्धू और आलिया (नोरा फतेही) के बीच फट से रोमांस हो जाने का एंगल अजीब है।
कहानी जब शुरू होती है तो लगता है कि विद्युत अच्छी कहानी पेश करने वाले हैं, लेकिन जब भटकना शुरू होती है तो अपना पता दोबारा नहीं ढूंढ पाती है। पोलैंड में मैदान के एक्स्ट्रीम स्पोर्ट्स पर पुलिस की नजर होती है, ऐसे में देव अपना एक देश बनाना चाहता है, जहां उसे उनका डर ना हो।
इस सोच को कहानी में डालना वास्तविकता से कोसों दूर लगता है। विद्युत का ट्रेन में स्टंट करने वाला सीन बिना किसी चेतावनी के आता है, जो खटकता है। क्रैक की कहानी का प्लॉट कोरियन वेब सीरीज स्क्विड गेम की याद दिलाता है। उसमें खेल में हार जाने वाले खिलाड़ी मारे जाते हैं।
इसमें भी वे दृश्य हैं, लेकिन यह फिल्म स्क्विड गेम के स्तर तक बिल्कुल नहीं पहुंच पाती है। फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर अच्छा है, जिसकी वजह से एक्शन दृश्यों में रोमांच पैदा होता है। वहीं, सिनेमैटोग्राफर मार्क हैमिल्टन ने मैदान के भीतर और शहर में चल रहे जोखिम से भरे हुए खेल को फिल्माने में कोई कमी नहीं रखी है।
कैसा है विद्युत का एक्शन?
विद्युत एक्शन में माहिर हैं। हालांकि, इसमें एक्शऩ से ज्यादा उन्होंने कलाबाजियां दिखाई हैं, जिसे दिल थाम के देखना पड़ता है। भावुक दृश्यों में वह बेहद कमजोर लगते हैं। अर्जुन रामपाल की फिटनेस और अभिनय में उनका अनुभव दोनों देव की भूमिका में दिखाई देता है।
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बतौर हीरोइन पहली फिल्म कर रहीं नोरा फतेही को एक गाना, कुछ सीन और थोड़ी-बहुत कलाबाजियां दिखाने का मौका मिला है, लेकिन उसमें वह प्रभावशाली नहीं लगी हैं। एमी जैक्सन का पात्र प्रभावी बन सकता था, लेकिन उसे भी लेखकों ने ठीक से विकसित नहीं किया। अंकित मोहन बड़े भाई निहाल की भूमिका में जंचे हैं। जैमी लीवर के वन लाइनर मजेदार हैं।
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