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    Collar Bomb Review: कॉलर बॉम्ब की 'टिक-टिक' में रहस्य और रोमांच के कई धमाके, पढ़िए पूरा रिव्यू

    By Manoj VashisthEdited By:
    Updated: Sat, 10 Jul 2021 09:48 AM (IST)

    सानी जज़्बात के इस खेल को न्यानेश ज़ोटिंग ने एक घंटा 26 मिनट की दिलचस्प थ्रिलर फ़िल्म के रूप में पेश किया है और लेखक निखिल नायर के साथ मिलकर ऐसी घटनाओं का जाल बुना है जो धीरे-धीरे दर्शक को अपनी गिरफ़्त में ले लेता है।

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    Collar Bomb released on Disney Plus Hotstar. Photo- Instagram

    मनोज वशिष्ठ, जेएनएन। अंग्रेज़ी में एक कहावत है- Appearance Can Be Deceptive... यानी इंसान या हालात कई बार जैसे दिखते हैं, वैसे होते नहीं या जो सामने दिख रहा है, ज़रूरी नहीं वही सच हो। दिक्कत तब आती है, जब हम वही देखते हैं, जो देखना चाहते हैं, भले ही सच्चाई कुछ भी हो। यह नज़रिया ही है, जो नज़रों में चढ़ा सकता है और नज़रों से गिरा भी सकता है।

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    ड़िज्नी प्लस हॉटस्टार पर शुक्रवार को रिलीज़ हुई थ्रिलर फ़िल्म कॉलर बॉम्ब की कहानी का सार यही मानवीय सोच है, जिसकी वजह से कामयाबी को कालिख बनते देर नहीं लगती। इंसानी जज़्बात के इस खेल को न्यानेश ज़ोटिंग ने एक घंटा 26 मिनट की दिलचस्प थ्रिलर फ़िल्म के रूप में पेश किया है और लेखक निखिल नायर के साथ मिलकर ऐसी घटनाओं का जाल बुना है, जो धीरे-धीरे दर्शक को अपनी गिरफ़्त में ले लेता है। 

    कॉलर बॉम्ब की कथाभूमि हिमाचल प्रदेश का सनावर इलाक़ा है, जहां एसएचओ मनोज हेसी एक केस सॉल्व करने की वजह से हीरो बन गया है। अपने बेटे अक्षय के साथ मनोज इलाक़े के प्रतिष्ठित स्कूल में आयोजित शांति सभा में पहुंचता है, जो स्कूल की छात्रा नेहा की याद में रखा गया है। नेहा कुछ दिन पहले स्कूल से लौटते समय ग़ायब हो गयी थी और कुछ दिन बाद उसकी डेड बॉडी एक कुएं से मिली थी।

     

     

     

     

     

     

     

     

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    मनोज ने एएसआई रतन नेगी के साथ मिलकर यह केस सॉल्व किया था और नेहा के संदिग्ध किडनैपर को मार गिराया था। फंक्शन चल ही रहा होता है कि शोएब अली नाम का एक किशोर पहुंचता है, जिसके गले में कॉलर बॉम्ब है। वह वहां मौजूद सभी बच्चों, टीचरों, कुछ पैरेंट्स, मनोज हेसी और उसके बेटे को बंधक बना लेता है।

    शोएब अजीबो-ग़रीब मांग रखता है कि अगर पैरेंट अपने बच्चे को बचाना चाहते हैं तो माता या पिता में से किसी को मरना होगा। जो यह शर्त मान लेगा, उसका बच्चा छोड़ दिया जाएगा। शोएब यह सब अपनी मर्ज़ा से नहीं कर रहा होता है, उससे रीटा नाम की कोई महिला करवा रही है। रीटा बच्चों की जान बचाने के बदले मनोज हेसी के कुछ और क्राइम करवाती है। इस बीच स्कूल पर स्थानीय पुलिस के साथ स्पेशल फोर्स के जवान भी पहुंच जाते हैं, जो हॉस्टेजज को छुड़ाने के लिए प्लान बनाते हैं।

     

     

     

     

     

     

     

     

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    इसका पता चलने पर शोएब एक बच्ची को मार देता है। इधर, इलाक़े में राजनीति गर्म होने लगती है और शोएब जिस ढाबे में काम करता था, भीड़ उसे आतंकी को पनाह देने वाला मानकर जला देती है। एएसआई सुमित्रा ढाब चलाने वाले बुजुर्ग को बचाती है और भीड़ को उकसाने वाले नेता को एक्सपोज़ करती है। मनोज हेसी बच्चों की जान बचाने के लिए वो सब करता है, जो रीटा करवाती है।

    मनोज, सुमित्रा से मदद मांगता है। सुमित्रा मदद के लिए तैयार हो जाती है। इसी क्रम में उसे मनोज के अतीत का वो सच पता चलता है, जिसकी वजह से यह सारा बवाल चल रहा होता है। अब तक यह बात साफ़ हो चुकी होती है कि यह आतंकी घटना नहीं, बल्कि मनोज के भूतकाल की भयंकर भूल है, जिसका बदला लेने के लिए कॉलर बॉम्ब का तामझाम रचा गया है।

    मनोज हेसी का वो क्या राज़ है? रीटा से उसका क्या कनेक्शन है, जो वो बदला ले रही है? स्कूल में बंधक बनाये गये बच्चों का इससे क्या लेना-देना है? मनोज हेसी से रीटा क्राइम क्यों करवा रही है? ऐसे तमाम सवालों के जवाब कॉलर बॉम्ब की कथा पटकथा को आगे बढ़ाते हैं और चौंकाते हैं।

    थ्रिलर फ़िल्मों में पटकथा की भूमिका सबसे अहम होती है। हालात को किस तरह पेश किया गया है और उनमें कलाकार कैसे रिएक्ट कर रहे हैं, यह बहुत मायने रखता है। कॉलर बॉम्ब की पटकथा को इस तरह लिखा गया है कि दर्शक को धैर्य के साथ देखना पड़ता है, क्योंकि कुछ बातें साफ़ होने में समय लगता है।

     

     

     

     

     

     

     

     

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    घटनाओं के सिरे जोड़कर समझने के लिए थोड़ा ध्यान भी रखना पड़ता है, लेकिन एक ख़ास जगह पहुंचने के बाद सब साफ़ हो जाता है और आगे-पीछे की घटनाओं के सिरे जोड़कर कहानी पकड़ में आ जाती है। इस पकड़ा-धकड़ी की वजह से फ़िल्म कुछ थकाती है, मगर टिके रहेंगे तो परतें खुलने पर मज़ा आएगा। निसर्ग मेगता और गौरव शर्मा के संवाद असरदार हैं।

    फ़िल्म में जिम्मी शेरगिल ने एसएचओ मनोज हेसी के किरदार में एक बार फिर अपनी अभिनय क्षमता का सबूत दिया है। मगर, आशा नेगी का अभिनय चौंकाता है। किरदार का ग्राफ जैसे-जैसे बदलता है, आशा का अंदाज़ और तेवर बदलते हैं। आशा ने जागरण डॉटकॉम के साथ बातचीत में निर्देशक न्यानेश के बारे में कहा भी था कि वो ऑर्गेनिक रिएक्शंस लेना पसंद करते हैं, जो कलाकारों के भाव प्रदर्शन में दिखता भी है। 

    राजश्री देशपांडे बेहरीन अभिनेत्री हैं। उनका किरदार कहानी में चौंकाने वाला ट्विस्ट लेकर आता है। बाक़ी कलाकारों में शोएब अली के किरदार में स्पर्श श्रीवास्तव ने ठीक काम किया है। अक्षय हेसी के किरदार में नमन जैन को जितने दृश्य मिले, उन्होंने ठीक से निभाये हैं। 

    कलाकार- जिम्मी शेरगिल, आशा नेगी, राजश्री देशपांडे स्पर्श श्रीवास्तव, अजीत सिंह पालावत, नमन जैन आदि।

    निर्देशक- न्यानेश ज़ोटिंग

    निर्माता- विक्रम मेहरा, सिद्धार्थ आनंद कुमार।

    रेटिंग- *** (तीन स्टार)