Chhatriwali Review: प्रासंगिक मुद्दे की कमजोर कहानी, रकुल प्रीत के कंधों पर टिकी फिल्म
Rakul Preet Singh Film Chhatriwali Review तेजस विजय देओस्कर के निर्देशन में बनी और रकुल प्रीत सिंह स्टारर फिल्म छतरीवाली आज यानी 20 जनवरी को रिलीज कर दी गई है। फिल्म की कहानी कुछ कमजोर है लेकिन मुद्दा प्रासंगिक है।
जेएनएन, प्रियंका सिंह। Rakul Preet Singh Film Chhatriwali Review: कॉमेडी का सहारा लेकर जनसंख्या नियंत्रण, महिलाओं की सेहत, गर्भपात, गर्भनिरोधक जैसे अहम मुद्दों पर पैडमैन, हेलमेट, जनहित में जारी आदि फिल्में बनी हैं। रकुल प्रीत सिंह अभिनीत फिल्म छतरीवाली भी इन्हीं मुद्दों के आसपास घूमती है।
छतरीवाली की कहानी
कहानी शुरू होती है करनाल से, जहां रसायन विज्ञान में स्नातक सान्या ढिंगरा (रकुल प्रीत सिंह) घर पर बच्चों को ट्यूशन देती है। घर में बहन-भाई और मां हैं, जिनकी जिम्मेदारी सान्या पर है। अकेले उसकी कमाई से घर चलता है। वह एक नौकरी की तलाश में है। केमेस्ट्री को लेकर सान्या की जानकारी से प्रभावित होकर उसे कंडोम कंपनी का मालिक रतन लांबा (सतीश कौशिक) कंडोम क्वालिटी कंट्रोल हेड के पद का भार संभालने के लिए नौकरी का ऑफर देता है। पहले तो सान्या नाराज होती है, लेकिन फिर पैसों के लिए झिझकते हुए नौकरी के लिए हां कर देती है।
रकुल का झूठ पड़ेगा भारी ?
घर पर वह कहती है कि उसे एक छाते की कंपनी में काम मिला है। एक शादी में सान्या को पूजा के सामानों की दुकान चलाने वाले ऋषि कालरा (सुमीत व्यास) से प्यार हो जाता है। फिर चट मंगनी पट ब्याह हो जाता है। ऋषि और उसके घरवालों को भी नहीं पता है कि सान्या कंडोम कंपनी में काम करती है। सान्या जब ससुराल पहुंचती है, तो उसे पता चलता है कि ऋषि के बड़े भाई जी (राजेश तैलंग) स्कूल में जीवविज्ञान पढ़ाते हैं, उसकी पत्नी निशा (प्राची शाह) के कई गर्भपात हो चुके हैं। निशा का पति कंडोम का प्रयोग नहीं करता है। क्या होगा, जब सान्या का सच बाहर आएगा, कहानी इस पर आगे बढ़ती है।
फिल्म को मिला नया ट्रीटमेंट
पिछले दिनों हेलमेट और जनहित में जारी फिल्म में इस मुद्दे पर बात की गई है। ऐसे में इस फिल्म का विषय नया नहीं है। हाल ही में वर्ल्ड पॉपुलेशन रिव्यू ने कुछ आंकड़े पेश किए हैं। उसके मुताबिक, भारत जनसंख्या के मामले में चीन से आगे निकल गया है। ऐसे में यह फिल्म प्रासंगिक जरूर हो जाती है। निर्देशक तेजस प्रभा विजय देओस्कर ने इस फिल्म को नया ट्रीटमेंट देने के लिए इसमें कुछ चीजें जोड़ी हैं। यौन शिक्षा कई देशों के स्कूलों में अनिवार्य है। लेकिन देश में इसे स्कूलों में पढ़ाने को लेकर अब भी एक झिझक है। तेजस इस झिझक को एक दृश्य में दिखाने का प्रयास करते है, जिसमें लड़के और लड़की को प्रजनन प्रणाली के पाठ को पढ़ाने से पहले अलग-अलग क्लास में कर दिया जाता है। जीव विज्ञान का शिक्षक इस पाठ को ऊपरी तौर पर पढ़ाकर पल्ला झाड़ लेता है। हालांकि मनोरंजन के दायरे से निकलकर फिल्म कहीं-कहीं कुछ ज्यादा ही उपदेशात्मक हो जाती है।
अहम जानकारी को छोड़ा अधूरा
एक संवाद में सान्या, ऋषि से कहती है कि अगर वह कंडोम का प्रयोग नहीं करेगा, तो वह कर लेगी। महिलाओं के कंडोम को लेकर इस जानकारी को एक लाइन में खत्म कर दिया जाता है, जो अधूरा लगता है। सिनेमाई लिबर्टी लेते हुए घर में स्कूल के बच्चों की क्लास लगाकर उन्हें प्रजनन प्रणाली के बारे में पढ़ाने वाला सीन बचकाना है। निर्देशक को कोई रचनात्मक रास्ता निकालना चाहिए था, खासकर तब जब हम इंटरनेट और मोबाइल से घिरी हुई दुनिया में रहते हैं।
कई जगहों पर कहानी पड़ी कमजोर
संचित गुप्ता और प्रियदर्शी श्रीवास्तव ने फिल्म की कहानी, पटकथा और संवाद लिखे हैं। कहानी कई जगहों पर कमजोर पड़ती है। बिना वजह के कई दृश्य भी ठूंसे गए हैं, जैसे मेडिकल स्टोर वाले का कंडोम को घटिया, अश्लील चीज कहकर करनाल के पुरुषों को उनकी पत्नियों के विरुद्ध भड़काने वाला प्रसंग, सान्या का स्कूल के बाहर बैठकर यौन शिक्षा देने और जेल जाने वाला दृश्य, उसकी मां का जुआ खेलना यह केवल फिल्म को भटकाते हैं।
गड़बड़ाया कहानी का एंगल
जिस घर में बुजुर्ग इतने समझदार और आधुनिक हैं, उस घर के युवाओं का छोटी सोच रखने का एंगल गड़बड़ लगता है। हालांकि, संचित और प्रियदर्शी के लिखे संवाद जैसे – पत्नियां बेडरूम के पंखे की स्पीड भी पतियों के हिसाब से सेट करती है, कैसे इक्वालिटी (बराबरी) लेकर आएंगी, उन घरों की झलक दिखाते हैं, जहां पुरुषों का वर्चस्व है। ऐसे में महिलाओं की सेहत के बारे में सोचने का वक्त कहां।
रकुल प्रीत सिंह के कंधों पर टिकी फिल्म
रकुल प्रीत सिंह के कंधों पर फिल्म का दारोमदार है। कॉमेडी सीन को वह आसानी से संभाल लेती हैं, लेकिन गंभीर दृश्यों में कई बार वह प्रभाव नहीं छोड़ पाती हैं। सतीश कौशिक और राजेश तैलंग अपनी भूमिकाओं में जंचे हैं। सुमीत व्यास, प्राची शाह ने सीमित दायरों में रहकर अच्छा काम किया है। वरिष्ठ कलाकार डॉली अहलूवालिया की प्रतिभा का समुचित प्रयोग नहीं किया गया है। फिल्म का कोई गाना ऐसा नहीं, जो फिल्म खत्म होने पर याद रहे।
फिल्म – छतरीवाली
मुख्य कलाकार – रकुल प्रीत सिंह, सुमीत व्यास, राजेश तैलंग, सतीश कौशिक, डॉली अहलूवालिया, प्राची शाह, राकेश बेदी
निर्देशक – तेजस प्रभा विजय देओस्कर
अवधि – एक घंटा 56 मिनट
प्रसारण प्लेटफार्म – जी5
रेटिंग – ढाई