Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Bawaal Movie review: 'वर्ल्ड वॉर 2' के जरिए जीवन का सबक सिखाती है वरुण धवन-जाह्नवी कपूर की फिल्म

    By Manoj VashisthEdited By: Manoj Vashisth
    Updated: Fri, 21 Jul 2023 05:44 PM (IST)

    Bawaal Movie Review In Hindi निर्देशक नितेश तिवारी की फिल्म बवाल प्राइम वीडियो पर रिलीज हो गयी है। वरुण धवन और जाह्नवी कपूर की मुख्य भूमिकाए हैं। दोनों पति-पत्नी के किरदार में हैं मगर रिश्ता ठीक नहीं है। वरुण का किरदार अजय दीक्षित हाई स्कूल में इतिहास का शिक्षक है। फिर उसकी जिंदगी में कुछ ऐसा होता है कि वर्ल्ड वॉर 2 उसे सबसे बड़ा सबक सिखाता है।

    Hero Image
    Bawaal Movie Review Varun Dhawan Janhvi Kapoor Film. Photo- Instagram

    स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। सिनेमा मनोरंजन के साथ अहम संदेश पहुंचाने का भी जरिया है। सिनेमा की ताकत से फिल्‍ममेकर नितेश तिवारी बखूबी वाकिफ है। यही वजह है कि चिल्‍लर पार्टी, दंगल और छिछोरे के बाद वह बवाल में मनोरंजन के साथ सार्थक संदेश देने में कामयाब रहे हैं।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    क्या है बवाल की कहानी?

    कहानी लखनऊ में हाई स्‍कूल में इतिहास के अध्‍यापक अज्‍जू भैया उर्फ अजय दीक्षित (वरूण धवन) और उनकी पत्‍नी निशा दीक्षित (जाह्नवी कपूर ) की है। अज्‍जू दिखावट की जिंदगी में भरोसा रखता है। अपनी छवि को चमकाने के लिए आसपास के लोगों से बहुत सारे झूठ बोल रखे हैं। वह हर किसी सभी को ज्ञान बांटते हैं, लेकिन बच्‍चों को पढ़ाने में मन नहीं लगता।

    उनके आसपास के लोग उनसे प्रभावित हैं, लेकिन असल में अज्‍जू खुद से काफी निराश हैं। अपने दोस्‍त बिपिन (प्रतीक पचौरी) के साथ वह अपनी सच्‍चाई को कई बार स्‍वीकार करता है। निशा और अज्‍जू के बीच पति-पत्‍नी जैसे संबंध नहीं हैं। उसकी भी वजह है। अक्‍सर दोनों के बीच कहासुनी हो जाती है।

    पारिवारिक कलह के बीच एक दिन अज्‍जू स्‍कूल में एक छात्र को थप्‍पड़ मार देता है। यह छात्र स्‍थानीय विधायक (मुकेश तिवारी) का बेटा होता है। उसे नौकरी से निलंबित कर दिया जाता है। अज्‍जू की नौकरी पर तलवार लटकने लगती है। हालांकि, उसी दौरान उसे द्वितीय विश्‍व युद्ध के बारे में बच्‍चों को पढ़ाना होता है। अपनी नौकरी बचाने और परिजनों को खुश करने के लिए अज्‍जू यूरोप भ्रमण की योजना बनता है।

    वह निशा के साथ द्वितीय विश्‍वयुद्ध के घटनास्‍थल पेरिस, नारमैंडी, एम्‍सटर्डम, बर्लिन, आशिवत्‍ज जाता है। इन घटनास्‍थलों पर जाकर वह बच्‍चों को उसके बारे में बताता है। खैर वहां जाने पर क्‍या अज्‍जू और निशा के बीच की दूरियां मिटेगी? इस यात्रा से क्‍या जीवन के कुछ सबक सीख पाएगा? क्‍या वह अपनी नौकरी बचा पाएगा? फिल्‍म इस संबंध में है।

    कैसा है फिल्म की स्क्रीनप्ले?

    यह महज इत्‍तेफाक है कि शुक्रवार को रिलीज फिल्‍म परमाणु बम के जनक जे रॉबर्ट ओपेनहाइनर की जिंदगी पर आधारित है, जिन्‍होंने द्वितीय विश्‍व युद्ध को रोकने के लिए परमाणु बम बनाया था। वहीं, नितेश तिवारी की फिल्‍म द्वितीय विश्‍व युद्ध से उन स्‍थलों पर जाती है, जहां पर युद्ध की कड़वी यादें आज भी ताजा है।

    द्वितीय विश्‍व युद्ध की कहानियां तो सभी ने पढ़ी हैं, लेकिन इतिहास से सबक लेना जरूरी है। कहते हैं कि जो लोग इतिहास को भुला देते हैं, वे उसे दोहराने को अभिशप्‍त रहते हैं, लेकिन अगर मनुष्य अपने बीते कल से सीख प्राप्त कर ले तो आने वाले कल की नींव कायम कर सकता है। यही सबक अश्विनी अय्यर तिवारी लिखित ‘बवाल’ में बहुत मनोरंजक अंदाज में नितेश ने देने की कोशिश की है।

    एक तरफ अजय और निशा की जिंदगी है। दूसरी ओर द्वितीय विश्‍व युद्ध के सबक इन दोनों को स्क्रीनप्‍ले में मिलाकर बिना किसी भाषणबाजी के जीवन का अर्थ समझाने की कोशिश की है। एक जगह अजय कहता है-

    जर्मनी के तानाशाह हिटलर से एक बात यह सीखने को मिलती है कि झूठ और दिखावे के सहारे जो छवि बनती है, वह ज्‍यादा देर टिकती नहीं। तभी तो यह हाल है जहां हिटलर की मौत हुई थी वहां कोई स्‍मारक नहीं है। अंत में लोग आपका सच ही याद रखेंगे।

    निखिल मल्‍होत्रा, श्रेयस जैन, पीयूष गुप्‍ता और नितेश तिवारी द्वारा लिखित संवाद और स्क्रीनप्‍ले में द्वि‍तीय विश्‍व की घटनाओं को आज की युवा पीढ़ी के प्रतिनिधि के तौर पर अज्‍जू और निशा के साथ जिस प्रकार से जोड़ा है, वह वाकई काबिले तारीफ है। संवाद बहुत प्रभावी हैं।

    इन घटनाओं के साथ जीवन का सबक देने का प्रयोग शानदार है। शुरुआत में फिल्‍म कहीं-कहीं थोड़ा धीमी गति से चलती है, लेकिन मध्‍यांतर के बाद कहानी तेजी से रफ्तार पकड़ती है। इस दौरान एक दृश्‍य में द्वितीय विश्‍व युद्ध के पीड़ित अपनी आपबीती सुना रहे होते हैं। निशा अज्‍जू को उसका हिंदी में अनुवाद करके बताती है।

    उसे करते हुए जहां उसकी आंखों में आंसू आ जाते हैं, वहीं दर्शक भी भावुक हो जाते हैं। इसी तरह पोलैंड में बनाया गया आशिवत्‍ज शिविर जहां द्वितीय विश्‍व युद्ध के दौरान युद्धबंदियों को गैस चैंबर में डालकर मौत के घाट उतारा जाता था। वह सीन हृदय विदारक है।

    कैसा है कलाकारों का अभिनय?

    बहरहाल, अपनी छवि के प्रति बेहद सजग रहने से लेकर केयरिंग पति की भूमिका में आने तक, अज्‍जू की भूमिका में वरूण धवन का अभिनय प्रशंसनीय है। उन्‍होंने अज्‍जू के दोहरे जीवन जीने के चरित्र को बहुत सधे अंदाज में दर्शाया है।

    निशा की भूमिका में जाह्नवी कपूर प्रभावित करती हैं। अच्‍छी बात यह है कि उनके किरदार को कहीं बेचारी नहीं दिखाया गया है। वह पढ़ी-लिखी और आत्‍मनिर्भर हैं। अज्‍जू के साथ सामान्‍य संबंध न होने पर भी वह हिम्‍मत नहीं हारती है। निराशा में नहीं डूबती है। जाह्नवी की आवाज उनके किरदार को प्रभावी बनाने में मददगार साबित होती है।

    पिता की भूमिका में मनोज पाहवा बेजोड़ हैं। अज्‍जू के दोस्‍त की भूमिका में प्रतीक पचौरी की भूमिका में उनका अभिनय शानदार है। स्‍क्रीन पर आते ही वह सबके चेहरे पर मुस्‍कान ले आते हैं। उनका यह कहना, 'भैया आपसे बहुत कुछ सीखना बाकी है शानदार है।' यह सुनकर आप मुस्‍कुराए बिना नहीं रह पाते।

    बाकी सहयोगी भूमिकाओं में आए कलाकार मुकेश तिवारी, अंजुम सक्‍सेना, शशि वर्मा, व्‍यास हेमंग का काम उल्‍लेखनीय है। फिल्‍म का गीत संगीत भी कहानी के अनुरूप है। खास तौर पर गरबा का एक दृश्‍य। फिल्‍म में अज्‍जू कहता है कि माहौल ऐसा बनाओ कि लोगों को माहौल याद रहे रिजल्‍ट नहीं। पर यह फिल्‍म अपने परिणाम की वजह से हमेशा याद रहेगी।