Azam Review: खराब निर्देशन ने किया अंडरवर्ल्ड की बेहतरीन कहानी का कबाड़ा, जिमी शेरगिल ने डगमगाती फिल्म सम्भाली
Azam Movie Review जिमी शेरगिल अभिनीत आजम अंडरवर्ल्ड के अंदर की राजनीति दिखाती है। जिमी शेरगिल इस कहानी के केंद्र में हैं। फिल्म में रजा मुराद अभिमन्यु सिंह और इंद्रनील सेनगुप्ता ने भी अहम भूमिकाएं निभायी हैं। यह दूसरी गैंगस्टर फिल्मों से अलग है।
प्रियंका सिंह, मुंबई। अंडरवर्ल्ड माफिया और गैंगवार पर बनी फिल्मों में 'कंपनी', 'वन्स अपॉन ए टाइम इन मुंबई', 'सत्या', 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' जैसी फिल्मों का नाम खासा प्रसिद्ध है। पिछले साल आलिया भट्ट अभिनीत 'गंगूबाई काठियावाड़ी' भी रिलीज हुई थी, लेकिन उसने अंडरवर्ल्ड की अंदरूनी दुनिया को उजागर नहीं किया था। 'आजम' फिल्म की कहानी माफिया की दुनिया की अंदरुनी राजनीति को दिखाती है।
क्या है आजम की कहानी?
मुंबई पर राज करने वाले माफिया डॉन नवाब खान (रजा मुराद) को कैंसर है। वह चंद दिनों का मेहमान है। गिरोह में उसके चार भागीदार हैं, जिनकी मदद से वह कभी डॉन की कुर्सी पर बैठा था। गृह मंत्री से लेकर पुलिस तक इस गिरोह के करीब है।
Photo- screenshot/YouTube trailer
नवाब की मौत के बाद उसका उत्तराधिकारी कौन होगा, इसको लेकर बाकी के चार सदस्यों की एक मीटिंग होती है, जिसमें नवाब के बेटे कादर (अभिमन्यु सिंह) की बजाय वह गिरोह के सदस्य प्रताप शेट्टी (गोविंद नामदेव) के बेटे अन्या शेट्टी (विवेक घमंडे) को कुर्सी पर बिठाने की योजना बनते हैं।
इस बातचीत का वीडियो कादर और नवाब के करीबी जावेद (जिमी शेरगिल) के पास होता है। वह कादर के साथ मिलकर गिरोह के चारों सदस्य और अन्या को रास्ते से हटाने की योजना बनाता है। कादर को यह नहीं पता कि वह जावेद के ही जाल में फंस रहा है। जावेद, नवाब की जगह लेना चाहता है। वह ऐसा क्यों कर रहा है? उसका नवाब से क्या रिश्ता है? इस पर कहानी आगे बढ़ती है।
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आजम का अर्थ होता है, सबसे बड़ा और शक्तिशाली। श्रवण तिवारी की लिखी यह कहानी इस शीर्षक के साथ न्याय करती है। फिल्म का असली हीरो कहानी ही है। एक रात की इस कहानी में गिरोह के सदस्य की हत्या के बाद जैसे-जैसे उसके पीछे का रहस्य खुलता है, वह रोमांचक है।
कैसा है आजम का स्क्रीनप्ले, अभिनय और निर्देशन?
मामला बिगड़ता है खराब विजुअल इफेक्ट्स, बेमतलब के गाने, तेज आवाज वाले बैकग्राउंड स्कोर, लचर संपादन की वजह से, जो स्वादिष्ट खाने में उस कंकड़ की तरह लगता है, जो पूरे खाने का मजा किरकिरा कर देता है। यह गलतियां शायद इसलिए भी हुईं, क्योंकि श्रवण ने निर्देशन से लेकर कहानी, पटकथा, संवाद, एटिडिंग की जिम्मेदारी ले रखी थी।
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इस चक्कर में न ही वह निर्देशन पर पकड़ बना पाए, न ही एडिटिंग संभाल पाए। एक बेहतरीन कहानी कई गलतियों का शिकार बन गई। फिल्म के जितने हिस्सों को क्रोमा (हरे रंग के पर्दे के आगे सीन शूट करना, ताकि बाद सीन में उसके अनुसार विजुअल बैकग्राउंड में लगाया जा सके) में शूट किया गया है, वह बेहद खराब है।
फिल्म की कहानी कई जगहों पर जब अपनी पकड़ मजबूत करती है, वहां अचानक से गाना आ जाता है, जो सीन के प्रभाव को ही खत्म कर देता है। फिल्म के आखिरी में समंदर के एक वाइड शॉट में नीचे रखा हुआ मॉनिटर तक दिखाई देता है।
अभिनय की बात करें, तो जिमी शेरगिल एक बार फिर साबित करते हैं कि गंभीर भूमिकाओं में वह बेहतरीन काम करते हैं। अपने सधे हुए अभिनय से वह पात्र का शातिर और मासूम दोनों चेहरा आसानी से दिखाते हैं। डीसीपी अजय जोशी के रोल में इंद्रनील सेनगुप्ता जंचते हैं।
रजा मुराद नवाब के रुतबे के साथ न्याय करते हैं। फिल्म के बाकी कलाकारों ने भी कहानी के दायरे में रहते हुए अपना भरपूर योगदान दिया है। अगर तकनीकी पक्ष कमजोर न होता, तो यह एक बेहतरीन फिल्म बन सकती थी।
कलाकार: जिमी शेरगिल, रजा मुराद, अभिमन्यु सिंह, इंद्रनील सेनगुप्ता, विवेक घमंडे, गोविंद नामदेव, सयाजी राव शिंदे आदि।
निर्देशक: श्रवण तिवारी
अवधि: दो घंटा आठ मिनट
रेटिंग: ढाई
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