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    Auron Mein Kahan Dum Tha Review: अजय-तब्बू की लव स्टोरी निकली बेदम, प्रेम कहानी में चूके नीरज पांडेय

    अजय देवगन और तब्बू ने कई फिल्मों में साथ काम किया है। दोनों एक बार फिर औरों में कहां दम था में साथ आये हैं। इस फिल्म का निर्देशन नीरज पांडेय ने किया है जो मुख्य रूप से थ्रिलर फिल्में बनाने के लिए जाने जाते हैं। औरों में कहां दम था रोमांटिक थ्रिलर है। इस फिल्म में प्यार में कुर्बान होने के भाव को उठाया गया है।

    By Jagran News Edited By: Manoj Vashisth Updated: Fri, 02 Aug 2024 12:06 PM (IST)
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    औरों में कहां दम था रिलीज हो गई। फोटो- इंस्टाग्राम

    स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। पिछले कुछ अर्से से हिंदी सिनेमा में प्रेम कहानियां तो बन रही है, लेकिन उनमें हिंसा, सेक्‍स और मारधाड़ की भरमार होती है। ऐसे में ए वेडनेस डे, स्‍पेशल 26, बेबी, एमएस धोनी: द अनटोल्‍ड स्‍टेारी जैसी फिल्‍में देने वाले नीरज पांडेय ने जब प्रेम कहानी बनाने की घोषणा की तो उम्‍मीद जगी कि वह इन मसालों से इतर दिल को छूने वाली प्रेम कहानी से लुभाएंगे।

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    हालांकि, औरों में कहां दम था कमजोर लेखन की वजह से मात खाती है। बता दें कि नीरज ने ही इसकी कहानी और पटकथा लिखने के साथ निर्देशन किया है।

    क्या है 'औरों में कहां दम था' की कहानी?

    कहानी मुंबई की पृष्‍ठभूमि में है। शुरुआत में वसुधा अपने प्रेमी कृष्‍णा से पूछती है कि हमें कोई अलग तो नहीं करेगा। वहीं से आभास हो जाता है कि इनका अलग होना तय है। वहां से कहानी वर्तमान में आती है। कृष्‍णा (अजय देवगन) पिछले 22 साल से जेल में सजा काट रहा है। अच्‍छे चाल चलन की वजह से उसकी बची सजा माफ हो जाती है।

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    हालांकि, वह जेल से बाहर नहीं आना चाहता। आखिर में जेल से बा‍हर आने पर वह अपने दोस्‍त जिग्‍नेश (जय उपाध्‍याय) के साथ यादों को ताजा करने पुरानी जगहों पर जाता है। उसकी रिहाई का पता चलने पर वसुधा (तब्‍बू) भी उससे मिलने आती है। वसुधा अब कामयाब और शादीशुदा महिला है।

    आलीशान बंगले में रहने वाली वसुधा उसे अपने घर पति अभिजीत (जिमी शेरगिल) से मिलवाने लाती है। पुरानी यादों के साथ एक दबा राज भी सामने आता है, जो वसुधा और कृष्‍णा के अलावा कोई नहीं जानता था।

    कहां चूके नीरज पांडेय?

    नीरज जासूसी या थ्रिलर कंटेंट बनाने के महारथी हैं। पहली बार उन्‍होंने लव स्‍टोरी बनाई है। हालांकि, लव स्‍टोरी की पिच पर वह पूरी तरह मिसिंग नजर आते हैं। मुंबई की चॉल की कहानी होने के बावजूद पात्र और परिवेश सीमित दायरे में बंधे दिखते हैं, जबकि चॉल वाली कई फिल्‍मों में वहां के माहौल को बेहतरीन तरीके से दर्शाया गया है।

    यह कहानी दो काल खंड़ों में हैं। उसमें 23 साल का अंतराल है। लिहाजा नीरज ने युवावस्‍था के लिए उस उम्र के कलाकारों को कास्‍ट किया है। कृष्‍णा के युवा वर्जन को शांतनु महेशवरी ने निभाया है। वहीं, वसुधा की युवावस्‍था की भूमिका को सई मांजरेकर जीवंत करती हैं।

    अतीत से वर्तमान में कई बार आती-जाती इस फिल्‍म में कुछ दृश्‍यों को लेकर दोहराव बहुत है। यह दोहराव खटकता है। इसी तरह फिल्‍म कृष्‍णा के जेल में संघर्ष को दिखाती है, लेकिन वसुधा के अतीत की झलक नहीं देती। चॉल से निकली वसुधा और अभिजीत कैसे मिलते हैं? वह उससे शादी करने को क्‍यों राजी होती है?

    अभिजीत आखिर में वसुधा से सच्‍चाई बताने को कहता है। यह समझ नहीं आता कि उसे इसका अंदाजा कैसे हुआ? वसुधा 22 साल से कृष्‍णा का इंतजार क्‍यों कर रही है? कई सवालों के जवाब अनुत्‍तरित रहते हैं।

    जेल में 22 साल में सिर्फ एक गैंगस्‍टर महेश देसाई (सयाजीराव शिंदे) आता है। वह भी अपनी सुरक्षा को लेकर डरा होता है। उसे सुरक्षा मिलती है कृष्‍णा से। यह पहलू बेहद बचकाना है।

    कृष्‍णा के चॉल में रहले वाले पकिया का किरदार भी अधूरा है। प्रेम कहानी में मिलन हो या बिछड़ना, यह दर्शकों को कई एहसास करा जाता है। उस स्‍तर पर यह फिल्‍म पूरी तरह नाकाम साबित होती है। कृष्‍णा और वसुधा के बिछड़ने पर कोई दर्द नहीं होता।

    अजय-तब्बू से ज्यादा शांतनु-सई की फिल्म

    बहरहाल, नीरज को फिल्‍म के लिए बेहतरीन कलाकारों का साथ मिला है। युवा कृष्‍णा की भूमिका में शांतनु पूरी तरह अजय का प्रतिरूप नहीं दिखते। 22 साल के अंतराल में अजय में काफी ठहराव दिखता है, लेकिन युवावस्‍था के पात्र में वह कहीं नहीं झलकता।

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    अजय देवगन इससे पहले हम दिल दे चुके सनम में इश्‍क में हारे पति की भूमिका निभा चुके हैं। यहां पर उनके लिए कुछ खास नया नहीं था। सई मांजरेकर पात्र के अनुरुप मासूम लगी हैं। तब्‍बू की आंखों से उनका दर्द झलकाने का प्रयास हुआ है, लेकिन कमजोर संवाद उसमें आड़े आते हैं।

    वैसे यह फिल्‍म अजय और तब्‍बू से ज्‍यादा शांतनु और सई की लगती है। तनु वेड्स मनु, हैप्‍पी भाग जाएगी जैसी कई फिल्‍मों में जिमी शेरगिल के पात्र को अंत में नायिका नहीं मिलती। नायक ही उसे पाने में कामयाब हो जाता है। यहां पर इस मामले में जिमी कामयाब होते हैं।

    फिल्‍म का कमजोर पक्ष उसका संगीत भी रहा। गीतकार मनोज मुंतशिर और संगीतकार एम एम किरवाणी का संगीत प्रेम की अगन का एहसास करा पाने में नाकाम रहता है। चुस्‍त एडिटिंग से फिल्‍म की समय सीमा को 15 मिनट कम किया जा सकता था।