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    कच्चा लिंबू- किशोरावस्था की उलझनें

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    Updated: Fri, 18 Feb 2011 02:30 PM (IST)

    किशोरावस्था में प्रवेश करते समय एक लड़के के जीवन में कई बदलाव होते हैं। खास तौर से स्वतंत्र सोच का निर्माण, लड़कियों की ओर आकर्षण, दूसरों का ध्यान अपनी ओर खींचने की ललक।

    कच्चा लिंबू  फिल्म का केंद्रीय पात्र तेरह वर्षीय शंभू व्यक्तित्व निर्माण के इसी रचनात्मक दौर से गुजर रहा है। वह स्कूल में ढेर सारे दोस्त बनाना चाहता है, अपनी नृत्य प्रतिभा का प्रदर्शन करना चाहता है, लंच ब्रेक में दूसरे स्कूल में जाकर एक लड़की को छुपकर निहारता है, लेकिन शंभू का दोस्त कोई नहीं बनना चाहता। सब उससे दूर भागते हैं। उससे नफरत करते हैं। उसकी हीरो बनने की कोशिश हर बार फेल हो जाती है। शंभू घर में भी अकेला है। उसकी मम्मी ने दूसरी शादी की है। वह न तो मम्मी और न ही पापा से मन की बात कहता है। अंत में शंभू घर छोड़कर भाग जाता है। कोलीवाड़ा  में उसकी मुलाकात विट्ठल से होती है। विट्ठल अनपढ़ है, लेकिन बिंदास  है। वह किसी से दबता और डरता नहीं। विट्ठल और शंभू गहरे दोस्त बन जाते हैं। नन्हा विट्ठल अपने घर के झगड़ों  से परेशान होकर शंभू के साथ घर छोड़कर भाग जाता है। शंभू और विट्ठल अभिभावकों के मित्रतापूर्ण व्यवहार और उचित मार्गदर्शन से वंचित हैं।

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    शंभू और विट्ठल के किरदार को ताहिर सुतरवाला और चिन्मय कांबली  ने सुंदरता से निभाया है। मोटे शंभू के रूप में सागर बल्लारी  ऐसे पात्र को केंद्र में लाए हैं, जो अमूमन फिल्मों में गौण रहा है। सागर का यह साहस सराहनीय है। किशोरावस्था की उलझनों और रोचक बदलावों  को सहज और संवेदनशील तरीके से वे पेश करने में सफल हैं। वे इंगित  करते हैं कि किशोर बच्चों  को अभिभावकों के स्नेह के साथ मित्रवत व्यवहार की बहुत जरूरत होती है। शंभू का चरित्र स्थापित होने के बाद भी सागर का चरित्र निर्माण के लिए बार-बार साधारण घटनाओं का जोड़ फिल्म को लंबा एवं उबाऊ बना देता है। लंबे-लंबे संवाद मराठी भाषा में रखने से लेखक-निर्देशक को बचना चाहिए था।

    -ढाई स्टार

    -रघुवेन्द्र सिंह

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