8 A.M. Metro Review: सुलगते मुद्दों के बीच ठंडी फुहार की तरह गुलशन और संयमी की फिल्म, देखकर मिलेगा सुकून
8 A.M. Metro Movie Review गुलशन देवैया और संयमी खेर फिल्म में मुख्य भूमिकाओं में हैं। गुलशन को दर्शकों ने हाल ही में रिलीज हुई वेब सीरीज दहाड़ में देखा होगा जिसमें उन्होंने पुलिस अफसर का किरदार निभाया था।
स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। राज आर निर्देशित फिल्म 8 ए.एम. मेट्रो की कहानी मल्लाडी वेंकट कृष्णमूर्ति द्वारा लिखित 1989 में आए तेलुगु उपन्यास 'अंदामैना जीविथम' (अंग्रेजी में It's A Beautiful Life) से प्रेरित है। कहानी शीर्षक के अनुरूप सुबह आठ बजे मेट्रो में दो अजनबी के परिस्थितिवश मिलने पर आधारित है।
बालीवुड की घिसीपिटी लीग से इतर उनकी दोस्ती एक-दूसरे को उनकी दबी आकांक्षाओं को पूरा करने और उनके अंदर के डर को दूर करने में मदद करती है।
क्या है 8 ए.एम. मेट्रो की कहानी?
महाराष्ट्र के नांदेड में अपने दो बच्चों और पति के साथ रहने वाली इरावती (संयमी खेर) कविताएं लिखती है, पर घर की मुर्गी दाल बराबर तो उसकी प्रतिभा की घर में कोई कद्र नहीं है। बचपन में हुई एक घटना की वजह से उसे ट्रेन में अकेले सफर करने से डर लगता है।
फोटो- गुलशन देवैया ट्विटर
बहन की डिलीवरी की वजह से उसे अकेले हैदराबाद जाना पड़ता है। वह डरते-डराते ट्रेन से वहां पहुंचती है। बहन के कहने पर मध्यमवर्गीय परिवार की इरावती अस्पताल से घर मेट्रो से आना-जाना आरंभ करती है। हालांकि, उसके लिए यह सफर आसान नहीं होता।
वह सुबह आठ बजे मेट्रो पकड़ती है, लेकिन डर की वजह से उसके पसीने छूटने लगते हैं। यह देखकर स्टेशन पर मौजूद प्रीतम (गुलशन देवैया) उसकी मदद करता है। अगले दिन फिर दोनों उसी समय मिलते हैं। वह इरावती का डर निकालने की कोशिश करता है। धीरे-धीरे दोनों में दोस्ती हो जाती है।
वह इरा के लेखन की तारीफ करता है। उसे लिखने के लिए प्रोत्साहित करता है। हालांकि, बैंक में कार्यरत प्रीतम ने अपनी जिंदगी का राज उससे छुपा कर रखा होता है। क्या उन दोनों की दोस्ती कायम रह पाएगी? प्रीतम की जिंदगी का दर्द क्या है? क्या इरा किताब लिख पाएगी? इन पहलुओं पर कहानी आगे बढ़ती है।
कैसा है 8 ए.एम. मेट्रो का स्क्रीनप्ले?
मेंटल हेल्थ यानी मानसिक स्वास्थ्य पर बात करने से लोग कतराते हैं। अमूमन लोग इसे हल्के में लेते हैं, लेकिन इस समस्या से पीडि़त व्यक्ति का दर्द क्या होता है उसे फिल्म में दर्शाया गया है। फिल्म में इरावती एक जगह कहती है कि इतना आसान नहीं होता यह मानसिक रोग सबके साथ शेयर करना। उसके बाद कुछ देर के लिए प्रीतम जहां इरावती बन जाता है, वही इरावती समाज।
फोटो- गुलशन देवैया ट्विटर
दोनों के बीच संवाद होता है, जिसमें मानसिक समस्या होने पर मजबूत बनने की सलाह दी जाती है। वह कहीं न कहीं आपको झकझोरती है और उसे गंभीरता से लेने का संदेश भी दे जाती है। मेट्रो में दोनों के बीच का संवाद भी काफी दिलचस्प होता है। अच्छी बात यह है कि वह अपनी शादीशुदा जिंदगी पर खुलकर बात करते हैं।
निर्देशक और सह-पटकथा लेखक राज आर ने गंभीर मुद्दे के साथ ह्यूमर का संतुलन रखा है। वह किताबों के साथ मानवता की अहमियत भी समझा जाते हैं। फिल्म हैदराबाद की नामचीन जगहों का दीदार कराती है।
दहाड़ में गुलशन देवैया। फोटो- ट्विटर/गुलशन देवैया
फिल्म में गुलजार की लिखी कविताएं हैं। साथ ही साहित्य और जनजाति की कई जानकारियां है, जो मानवता, जीवन का अर्थ बताती है और सामाजिक मुद्दों पर विमर्श करती है। फिल्म में परिवार में बच्चों की प्रतिभा की अनेदखी, रिश्तों में समझौते और आपसी संवाद की जरूरत को भी उठाया है।
कैसा है कलाकारों का अभिनय?
कलाकारों में गुलशन देवैया बेहतरीन अभिनेता हैं। उन्होंने प्रीतम के दर्द, भावनाओं और संवेदनाओं को बहुत शिद्दत से पर्दे पर जिया है। वहीं, ईरावती की मनोदशा और द्वंद्व को संयमी ने बहुत संजीदगी से व्यक्त किया है। दोनों की केमिस्ट्री पर्दे पर अच्छी लगती है।
कविताओं को सुनते हुए कहीं कहीं आवाज में लय की कमी जरूर अखरती है। बहरहाल, यह फिल्म बहुत सधे अंदाज में अपनों की कीमत, प्यार की अहमियत और जीवन के डर को दूर करने के तरीकों पर आपको बहुत सिखा जाती है।
कलाकार: गुलशन देवैया, संयमी खेर, उमेश कामत आदि।
निर्देशक: राज आर
अवधि: एक घंटा 56 मिनट
स्टार: तीन