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    Interview: 'मुझे अपनी गलतियां बार-बार देखने की जरूरत नहीं', Jimmy Shergill ने शेयर की सिनेमा और दिल की बातें

    By Priyanka singhEdited By: Mohammad Sameer
    Updated: Mon, 30 Oct 2023 06:45 AM (IST)

    जिमी शेरगिल कहते हैं- मुझे अपनी गलतियां बार-बार देखने की जरुरत नहीं है। एक बार देख कर अपनी गलतियां समझ में आ जाती है कि कुछ अलग कर सकता था। एक विचार यह भी होता है कि आपने उस फिल्म में वह किया जो निर्देशक आपसे करवाना चाहते थे।

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    जिमी शेरगिल ने शेयर की सिनेमा और दिल की बातें (फाइल फोटो)

    अभिनेता जिमी शेरगिल का बड़े पर्दे के लिए आकर्षण है, लेकिन इसके साथ ही वह डिजिटल प्लेटफार्म और अब आडियो सीरीज का भी हिस्सा बन गए हैं। हाल ही में जिमी ने आडिबल के लिए सियाह नामक आडियो सीरीज में अपनी आवाज दी है। आगामी दिनों में जिमी अभिनीत वेब सीरीज रणनीति : बालाकोट एंड बियान्ड और फिल्में औरों में कहां दम था और फिर आई हसीन दिलरुबा भी रिलीज होंगी। उनसे हुई बातचीत के प्रमुख अंश :

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    1. आप डिजिटल प्लेटफार्म से लेकर आडियो सीरीज तक हर उन माध्यमों पर काम कर रहे हैं, जिनसे युवा जुड़े हैं। युवाओं के साथ जुड़ना आपके लिए कितना अहम है?

    मेरा बेटा 18 साल का है। मैं अपनी जिंदगी में जो करता हूं उनके हिसाब से करता हूं। अपने बेटे और उनके दोस्तों से सीखता हूं। आज के नौजवानों के साथ कदम से कदम मिलाकर चलना चाहिए। मैं अपनी सोच को उनके ऊपर थोपता नहीं हूं। मैं उनकी समझ और सोच को देखकर काम करता हूं।

    उसमें मुझे मजा भी बहुत आता है, क्योंकि हमारी अलग सोच थी, अब युवाओं के हिसाब से सोच विकसित हो गई है। ऐसे में दोनों में तुलना करना पड़े, तो मैं अपने बजाय, युवाओं की विचारधारा के साथ चलना पसंद करता हूं। आप चाहे कितने भी पुराने विचारों के क्यों न हों, युवाओं के साथ चलने में मजा है।

    2. आडियो सीरीज में केवल अपनी आवाज से दर्शकों को जोड़ना कठिन होता होगा?

    हां, इसमें सारा खेल आवाज का ही है, तो इसे ध्यान में रखना पड़ता है और उसके अनुसार परफार्म करना पड़ता है। सियाह में मैं एक लेखक की भूमिका में हूं। जिन किरदारों के बारे में उस लेखक ने लिखा है, वह कैसे उसके दिमाग से खेलना शुरू कर देते हैं, यह कहानी है। इस स्क्रिप्ट को पढ़ने के बाद मैंने यही कहा था कि इसे वेब सीरीज फार्मेट में भी बनाया जा सकता है।

    3. इसमें आपका नाता किताबों से हैं। वास्तविक जिंदगी में किताबों के कितने करीब हैं?

    मुझे किताबें पढ़ने का शौक है। मेरी एक आदत है कि मैं रोज रात को सोने से पहले कुछ न कुछ पढ़ता हूं। अच्छी बात है कि हम कलाकारों को स्क्रिप्ट के जरिए कई कहानियां पढ़ने को मिल जाती है। कुछ कलाकार कहानियों का नरेशन लेते हैं। मैं प्रयास करता हूं कि मेरे पास पूरी स्क्रिप्ट आ जाए और मैं उसे पढ़ सकूं। मुझे पढ़ने की प्रक्रिया पसंद है।

    4. क्या आप अपने अनुभवों और जानकारियों को दूसरों के साथ साझा करते हैं?

    ज्ञान तो बांटना चाहिए। अगर आपको कोई अच्छी चीज पता है, जो किसी और के काम आ सकती है, तो उसमें कोई बुराई नहीं है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आप सड़क पर खड़े होकर ज्ञान बांटे। जब किसी को वाकई किसी सलाह या जानकारी की जरुरत है और आपके पास वह सही जानकारी है, तो देना अच्छी बात है।

    5. इतना काम करने बाद क्या अब भी बड़े पर्दे का आकर्षण है या माध्यम कोई भी हो, अपने काम को दर्शकों तक पहुंचना ज्यादा मायने रखता है?

    दोनों ही बातें सही हैं। हमने अपनी शुरुआत फीचर फिल्म के जरिए बड़े पर्दे से की थी। आज भी बड़े पर्दे के लिए फिल्म कर रहे हैं। मेरी दो फिल्में औरों में कहां दम था और फिर आई एक हसीन दिलरूबा आएंगी। वह जुनून जिंदा है। मुझे विकल्प दिया जाएगा, तो बड़ा पर्दा की चुनूंगा।

    वही सच्चाई है, बाकी चीजें तो अब आई हैं। साथ ही अगर कोई अच्छी कहानी है, जो डिजिटल प्लेटफार्म पर ही कही जा सकती है, तो उस कहानी से भी जुड़ना चाहिए। मेरी रणनीति नामक एक वेब सीरीज भी जल्द रिलीज होगी।

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    6. लेकिन कई बार ऐसा भी होता होगा कि स्क्रिप्ट से कहानी जब सेट पर पहुंचती होगी, तो वैसे नहीं बन पाती होगी। उस परिस्थिति में आप क्या करते हैं?

    हां, ऐसा कई बार होता है, जब आपको एक स्क्रिप्ट दी जाती है, जिसे पढ़कर लगता है कि ऐसी चीज मैंने नहीं की है, तो करनी चाहिए। फिर भले ही नए लोगों के साथ ही काम करना क्यों न हो। आगे बढ़कर हम कोशिश करते हैं। कई चीजों का वादा भी किया जाता है कि फिल्म को ऐसे शूट करेंगे। फिर दिखाई देता है कि समझौते हो रहे हैं, वादे के मुताबिक चीजें नहीं हो रही है। कलाकार के पास एक ही चारा होता है कि आप अपना काम अच्छे से करके दे दें।

    7. आप क्या कभी अपना काम पीछे मुड़ कर देखते हैं कि और क्या सही किया जा सकता था?

    नहीं, मुझे अपनी गलतियां बार-बार देखने की जरुरत नहीं है। एक बार देख कर अपनी गलतियां समझ में आ जाती है कि कुछ अलग कर सकता था। एक विचार यह भी होता है कि आपने उस फिल्म में वह किया, जो निर्देशक आपसे करवाना चाहते थे। जिस दिन आप कोई फिल्म डायरेक्ट करेंगे, उस दिन आप अपने हिसाब से काम करेंगे। जिस दिन मैं निर्देशक बनूंगा, अपने हिसाब से वो करूंगा, जो करना चाहता हूं।