'कई सालों से था इंतजार...', 6 साल बाद 'काफिर' का नया अवतार; Dia Mirza ने बताई फिल्म की दिलचस्प बातें
बॉलीवुड में इन दिनों डायरेक्टर्स की वेब सीरीज को मूवीज में बदलने की दिलचस्पी बढ़ी है। हाल ही में वेब सीरीज काफिर फिल्म के तौर पर जी5 पर रिलीज हुई है। इसमें लीड रोल में दिया मिर्जा हैं। दिया मिर्जा से दैनिक जागरण की पत्रकार स्मिता श्रीवास्तव ने बातचीत की है। चलिए जानते हैं उन्होंने इस दौरान क्या कुछ कहा।

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। इन दिनों वेब सीरीज को फिल्मों में रूपांतरित करने में डायरेक्टर्स की काफी दिलचस्पी बढ़ी है। करीब सात साल पहले आई वेब सीरीज ‘काफिर’ हाल ही में फिल्म के तौर पर जी5 पर रिलीज हुई है।
इसमें लीड रोल में दिया मिर्जा नजर आईं। वेब सीरीज करने के साथ ही एक शॉर्ट फिल्म का निर्माण कर रहीं दिया मिर्जा से स्मिता श्रीवास्तव की बातचीत के अंश...
‘काफिर’ को फिल्म के तौर पर देखने का अनुभव कैसा रहा?
मैं खुश हूं कि यह फिल्म के तौर पर आई है। यह इतनी खूबसूरत और दमदार कहानी है कि लोगों से बहुत स्ट्रांगली कनेक्ट करती है। यह पहले तो फिल्म के तौर पर ही लिखी गई थी। कई वर्षों तक यह बन नहीं पाई, फिर जी5 ने इसे वेब सीरीज के तौर पर बनाया।
तब मुझे लेखक भवानी अय्यर ने कहा था कि शायद इस कहानी को तुम्हारा इंतजार था। (हंसते हुए) मैं तो कहूंगी कि इस कहानी का मुझे इंतजार था। यह कहानी मेरे पास ऐसे समय पर आई, जब मैं इसका हिस्सा बनने के लिए पूरी तरह तैयार थी।
बतौर कलाकार तो आप हर भूमिका के लिए तैयार रहती होंगी...
मुझे लगता है कि कुछ कहानियों और पात्रों के लिए आपके अनुभव, मैच्योरिटी और पर्सनल ग्रोथ जरूरी होती है ताकि इस तरह के पात्र के अनुभव को जी सकें। इसमें बहुत बारीकियां व बहुत सारी खामोशी है जो शब्दों से जाहिर नहीं होती है, वो अगर आपने महसूस न की हो तो फिर उसे बयां कर पाना मुश्किल हो जाता है।
अब तो इंडस्ट्री में इतने साल हो गए हैं। शुरुआत में करियर में सबसे बड़ा डर क्या था?
अगले साल मुझे इंडस्ट्री में 25 साल हो जाएंगे। मैं जब 19 साल की थी, तब मैंने इंडस्ट्री में काम करना शुरू किया था। तो यही डर था कि मुझे काम मिलना बंद हो जाएगा। हमको बार-बार जताया जाता था कि अभिनेत्रियों की शेल्फ लाइफ होती है। 32-33 की उम्र के बाद उन्हें काम मिलना बंद हो जाता है। अगर आप स्थापित हैं तो ही 40 साल की उम्र होने के बाद ही काम मिलना आरंभ होता है।
तो यह काफी डरावना था। पांच-छह सालों से काफी कुछ बदल रहा है। मेरे साथ अच्छी बात यह हुई है कि मुझे करियर के सबसे अच्छे किरदार अब मिले हैं। उससे बहुत हिम्मत मिलती है। यह इस बात का संकेत है कि समय और सोच में बदलाव आ रहा है। हमने बदलाव की दिशा में कदम उठाया है।
‘बॉबी जासूस’ के बाद आपने कोई फिल्म प्रोड्यूस क्यों नहीं की?
मैंने अभी मराठी शार्ट फिल्म ‘पन्ना’ बनाई है। इसका निर्देशन नवोदित निर्देशिका साक्षी मिश्रा ने किया है। बहुत प्यारी कहानी है। फिलहाल उसे कई फेस्टिवल में दिखा रहे हैं। हमें कुछ फेस्टिवल में अवॉर्ड भी मिला है और भी बहुत सारी चीजें पाइपलाइन में हैं।
बतौर निर्माता किन चीजों का हमेशा ध्यान रखा?
बतौर निर्माता जब मैंने ‘लव ब्रेकअप जिंदगी’ बनाई थी, तब मैं सिर्फ 26 साल की थी। मेरी कोशिश थी कि अपनी कास्ट और क्रू को बराबरी का दर्जा दूं। सब मिलकर काम करें। जब हमने उसे सफलतापूर्वक बनाया था तब लगा कि मुझे आस्कर अवार्ड मिल गया है। फिल्म बनाना बहुत मुश्किल होता है। फिर ऐसी फिल्म जिसमें हर कोई प्यार और सम्मान की अपेक्षा करे, वह बड़ी उपलब्धि है।
ऐसा ही अनुभव ‘बॉबी जासूस’ के साथ हुआ था। काम करते-करते बहुत कुछ सीखने को भी मिलता है कि लोग किस तरह की कहानी पसंद करते हैं। वक्त बहुत तेजी से बदलता है। जब हमने विद्या बालन को साइन किया था तो उनकी फिल्में चल रही थीं। जब ‘बॉबी जासूस’ को प्रदर्शित करने का समय आया तो उनकी कुछ फिल्में नहीं चली थीं। तो देखिए कि कैसे ट्रेड और इंडस्ट्री का नजरिया बदल गया था।
तब मुझे सबसे ज्यादा यह समझ आया कि अपनी कहानी पर दृढ़ विश्वास रखो क्योंकि फिर आपके साथ जो लोग आएंगे, वो कहानी को समझेंगे। उसे कोई हिला नहीं सकता। यह बरकरार है। मुझे अभी भी ‘बॉबी जासूस’ पर गर्व है।
फिल्म ‘धक-धक 2’ बनाने की भी तैयारी है?
जोर-शोर से तैयारी चल रही है। उसके अलावा एक वेब सीरीज की शूटिंग अभी पूरी की है। यह सीरीज अगले साल आएगी।
फिल्म ‘नादानियां’ को काफी ट्रोल किया गया। आप भी उस फिल्म का हिस्सा थीं...
आपको किसी फिल्म से दिक्कत हो सकती है। यह आपकी पसंद या नापसंद हो सकती है। आप उसे बयां कर सकते हैं। मुझे दिक्कत तब आती है, जब लोग निजी चीजों को लेकर हमलावर होते हैं। यह ठीक नहीं है।
यह बीमार मानसिकता को दर्शाता है। मुझे तो ऐसा लगता है कि आज की तारीख में जिनके पास विशेषाधिकार है, उनको ज्यादा तनाव, आलोचना के साथ डील करना पड़ता है। आलोचना का अधिकार सबको है, लेकिन उसका कोई उपयोगी उद्देश्य भी होना चाहिए।
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