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    जो युवा भारतीय संगीत नहीं सुनते वह जीवन का बहुत ही सुंदर हिस्सा मिस कर रहे हैं- शिल्पा राव

    सिंगर शिल्पा राव का मानना है कि जीवन में संगीत और योग दोनों का ही अभ्यास जरूरी है। ‘खुदा जाने’ ‘घंघरू’ ‘बुलेया’ जैसे बेहतरीन गानों को आवाज देने वाली गायिका शिल्पा राव से अंतरराष्ट्रीय संगीत दिवस (21 जून) पर स्मिता श्रीवास्तव की बातचीत के अंश...

    By Ruchi VajpayeeEdited By: Updated: Mon, 21 Jun 2021 04:11 PM (IST)
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    Image Source: Shilpa Rao Official Instagram Account

    शिल्पा राव, मुंबई ब्यूरो। सिंगर शिल्पा राव का मानना है कि जीवन में संगीत और योग दोनों का ही अभ्यास जरूरी है। ‘खुदा जाने’, ‘घंघरू’, ‘बुलेया’ जैसे बेहतरीन गानों को आवाज देने वाली गायिका शिल्पा राव से अंतरराष्ट्रीय संगीत दिवस (21 जून) पर स्मिता श्रीवास्तव की बातचीत के अंश...

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    आपके लिए अंतरराष्ट्रीय संगीत दिवस की अहमियत क्या रही है?

    मेरे लिए हर दिन संगीत दिवस है। ऐसा एक दिन भी नहीं है, जिस दिन मैंने अपने संगीत से प्यार न किया हो।

    संगीत की दुनिया में एक साल में क्या बदलाव देखा है?

    इस एक साल में इंडिपेंडेंट म्यूजिक बहुत ज्यादा सामने आया। घर पर बैठकर म्यूजिशियंस अपना गाना लिख और रिकार्ड कर रहे हैं। कलाकार को आप घर पर रख सकते हैं, लेकिन उनका दिमाग चलता रहता है।

    आपके लिए संगीत का अर्थ क्या रहा है?

    संगीत नहीं होता तो शिल्पा राव नहीं होती। संगीत की वजह से ही आज कुछ बनी हूं। बचपन से ही संगीत से जुड़ाव रहा है। मेरे पिता ने क्लासिकल संगीत में एम.ए. किया है। उनके लिए हर चीज संगीत से जुड़ी थी। कैसे राग को जीवन के साथ मिलाया जाता है, वह उन्होंने मुझे बचपन से सिखाया है। बारिश में मेघ मल्हार राग सुनेंगे तो बारिश की खुशबू आएगी। यह संगीत की ताकत है। आज के हालात में संगीत सिर्फ मनोरंजन ही नहीं बल्कि भावनात्मक मजबूती और तनाव दूर करने का अहम साधन साबित हो रहा है।

     

     

     

     

     

     

     

     

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    21 जून का दिन संगीत और योग दोनों के लिए ही खास है। योग से भी जुड़ाव रखती हैं?

    मेरे माता-पिता के लिए योग एक नियमित दिनचर्या का हिस्सा है। सुबह उठकर उनको योग करना ही है। हम रियाज करते हैं तो गाना सांस से ही तो जुड़ा हुआ है। अगर आपके फेफड़ों की क्षमता कम है, तो आप एक पूरी लाइन नहीं गा पाएंगे। हमारे उस्तादों ने जो रियाज सिखाया है, वही हमारे लिए योग व मेडिटेशन है। मेरा रियाज ही मेरा मेडिटेशन है। रियाज करते वक्त जो दिव्य स्पर्श होता है, वह बहुत ही शुद्ध होता है।

     

     

     

     

     

     

     

     

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    आज युवा पीढ़ी अंतरराष्ट्रीय संगीत के पीछे भाग रही है। आपका इस पर क्या विचार है?

    जो युवा भारतीय संगीत नहीं सुनते वह जीवन का बहुत ही सुंदर हिस्सा मिस कर रहे हैं। आप किसी भी देश में चले जाएं, वहां हमारे संगीत की बहुत इज्जत है। हमारे उस्तादों ने बाहर जाकर भारतीय संगीत को लोगों तक पहुंचाया है, ताकि लोगों को उसकी अहमियत पता चले। युवाओं को यही कहना चाहूंगी कि भारतीय संगीत सुनें, गाएं और सीखें। अगर आप यह कर पाए, तो जीवन बहुत समृद्ध होगा। हमारा दिमाग हर तरह का संगीत सुन सकता है। आप बीटीएस भी सुनें, लेकिन उस्ताद आमिर खान, मेंहदी हसन साहब को भी सुनें। मैं खुद हर तरह का संगीत सुनती हूं।