Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    रूई बेचकर 100 रुपए कमाते थे Panchayat 4 के बिनोद, 12वीं में आए थे 40%, कैसे बिहार का लड़का बना फुलेरा की जान?

    पंचायत 4 सीरीज कुछ दिनों पहले ही अमेजन प्राइम वीडियो (Prime Video) पर रिलीज हुई थी। सभी एपिसोड में चुनाव पर फोकस करने के कारण इस सीजन को मिले-जुले रिव्यू मिले। हालांकि पूरी सीरीज में बिनोद ने अपनी परफॉर्मेंस से सभी को इम्प्रेस कर दिया। कौन हैं फुलेरा के बिनोद चलिए जानते हैं उनके बारे में दिलचस्प बातें

    By Tanya Arora Edited By: Tanya Arora Updated: Thu, 03 Jul 2025 02:18 PM (IST)
    Hero Image
    कौन हैं पंचायत 4 के बिनोद उर्फ अशोक पाठक/ फोटो- Jagran Graphics

    एंटरटेनमेंट डेस्क, नई दिल्ली। 'गरीब हैं गद्दार नहीं', पंचायत 4 के एपिसोड का ये वायरल डायलॉग सोशल मीडिया पर छा गया है। 24 जून को सचिव जी उर्फ अभिषेक त्रिपाठी अपनी 'फुलेरा' गांव की पलटन के साथ एक बार फिर से लौटे थे। एक तरफ जहां चुनाव को लेकर मंजू देवी और प्रधान की हालत खराब थी, तो वहीं चौथे सीजन में रिंकी और सचिव जी का प्यार परवान चढ़ते हुए दिखाई दिया। 

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    इस बार नीना गुप्ता, जितेंद्र कुमार और रघुवेंद्र यादव का किरदार दर्शकों को इम्प्रेस करने में नाकामयाब रहा, वहीं दूसरी तरफ फुलेरा के 'बिनोद' ने तो ऐसा सरप्राइज किया कि हर कोई हैरान रह गया। सिर्फ एक्सप्रेशन नहीं, बल्कि डायलॉग से भी उन्होंने सबका दिल जीता। क्या है बिनोद का असली नाम और कहां के हैं वह रहने वाले, पढ़ें हर एक डिटेल: 

    क्या है फुलेरा के बिनोद का असली नाम? 

    फुलेरा गांव के बिनोद का असली नाम अशोक पाठक है, जो वैसे तो बिहार से ताल्लुक रखते हैं, लेकिन उनका जन्म हरियाणा, फरीदाबाद में हुआ था, उसके बाद वह हिसार आ गए थे, जहां उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की। अशोक ने बताया कि उनके पिता बिहार से हरियाणा इसलिए आए थे, क्योंकि उन दिनों में वहां पर रोजगार के अवसर नहीं थे। 

    Photo Credit- Instagram

    बिहार के हर व्यक्ति के पास उन दिनों बस यही ऑप्शन होता था कि वह दिल्ली और हरियाणा में आकर कमाए। अशोक ने अनकट इंटरव्यू में बातचीत करते हुए बताया था कि उन पर बिहार और हरियाणा दोनों के कल्चर का असर है। हालांकि, उनकी जन्मभूमि और कर्मभूमि दोनों ही हरियाणा हैं। 

    यह भी पढ़ें: फुलेरा के पास ही है Panchayat 4 की 'रिंकी' का असली घर, इंजीनियरिंग से लेकर एक्टिंग तक कैसा रहा है सफर?

    12वीं में 40 परसेंट नंबर से हुए थे पास 

    अशोक पाठक ने अपनी पुरानी लाइफ को याद करते हुए ये भी बताया कि जब वह छोटे थे तो उनका पढ़ाई में बिल्कुल भी मन नहीं लगता था। जब उनके 12वीं में 40 परसेंट आए थे, तो उन्हें लगा था कि उन्हें कहीं भी एडमिशन नहीं मिलेगा, लेकिन उनका लखनऊ के एक कॉलेज में एडमिशन हो गया, जहां उन्हें पहली बार ये पता चला कि थिएटर नाम की भी चीज होती है। 

    12 तक एक्टिंग क्या होती है, इसके बारे में अशोक को पता भी नहीं था, लेकिन लखनऊ आने के बाद उन्होंने कई प्ले और कल्चरल प्रोग्राम्स में हिस्सा लिया, जिसमें उन्हें कई एक्टिंग अवॉर्ड मिले। अशोक ने बताया कि उन्होंने कभी भी अपने पिता से 10वीं के बाद फीस नहीं ली थी, ऐसे में जब उस कॉलेज में एक्टिंग की वजह से उनकी फीस माफ हुई तो वह बहुत ही खुश हुए और उसके बाद तीन साल तक वह बेस्ट एक्टर बने। वहीं से अभिनेता का दिमाग क्लियर हुआ और उन्होंने एक्टिंग में ही करियर बनाना है। 

    Photo Credit- Instagram

    कॉटन बेचने से लेकर लाख रुपए कमाने तक का सफर 

    अशोक ने इस बातचीत में ये भी बताया कि जब वह 9वीं में पढ़ते थे, तो उनका पढ़ाई में बिल्कुल भी मन नहीं लगता था। उन्होंने अपना खर्चा चलाने के लिए कॉटन बेची, जिसके लिए उन्हें 100 रुपए मिलते थे। हालांकि, वह लखनऊ में थिएटर करके इतने लकी रहे कि उन्हें ग्रेजुएशन करते ही पहला शो 'शूद्र द राइजिंग' मिल गया था। 

    अपने पहले पे चेक की मेमोरी ताजा करते हुए बताया कि एक प्रोमो शूट के लिए उन्हें 2500 रुपए मिले थे, लेकिन दूसरे ही एड के लिए उन्हें 1 लाख 40 हजार का पे चेक मिला था। ये उनके करियर की सबसे बड़ी उपलब्धि थी। 

    कैसे बिहार के अशोक पहुंचे कांस फिल्म फेस्टिवल?

    अशोक ने इस बातचीत में ये भी बताया था कि उन्हें उनके करियर में ज्यादा दिक्कतें नहीं आई। वह भले ही आउटसाइडर थे, लेकिन उनके लिए इंडस्ट्री के एक के बाद एक रास्ते खुलते गए। हालांकि, उनके लिए सबसे प्राउड मोमेंट वह था, जब उनकी फिल्म 'सिस्टर मिडनाइट' का कांस फिल्म फेस्टिवल में प्रीमियर हुआ। उन्होंने कहा,

    "जब मैं कांस पहुंचा था, तो मुझे ऐसा लगा था मैं नींद में हूं और लग रहा था कि ये भ्रम है। जब मैंने कांस में सिस्टर मिडनाइट के लिए पहुंचा तब भी यकीन नहीं हो रहा था। मैं हमारे कास्टिंग डायरेक्टर का शुक्रगुजार हूं कि उन्होंने मुझे लीड भूमिका के लिए चुना। डायरेक्टर करण कांधारी ने मुझपर भरोसा रखा, मुझे ये आइडिया भी नहीं था कि फिल्म में मेरे अपोजिट राधिका आप्टे हैं, ये फिल्म बहुत अच्छी है। इस फिल्म में टिपिकल एक्टिंग स्टाइल नहीं है। जब मैं फिल्म का हिस्सा बना तो मुझे ये नहीं पता था कि मूवी इस लेवल पर जाएगी, बस ये पता था कि ब्रिटिश फिल्म एकडेमी उसकी प्रोड्यूसर है। ये पूरी फिल्म स्टॉक रोल पर शूट हुई है, जो आज कोई इस्तेमाल करता नहीं है। फिल्म को 10 मिनट से ज्यादा का स्टेंडिंग ओवेशन मिला, मेरे आज भी रोंगटे खड़े हो रहे हैं। लोग किसी सिनेमा को इतना एप्रीशिएट करते हैं। वह बहुत ही गर्व का पल था। 13-14 साल का मुंबई का सफर उन तालियों ने पूरा कर दिया था"।

    इस फिल्म से रखा था हिंदी सिनेमा में कदम

    बिनोद उर्फ अशोक पाठक ने अपने करियर की शुरुआत साल 2012 में फिल्म बिट्टू बिनोद से की थी। उसके बाद वह शंघाई, अ डेथ इन द गंज, सात उच्चके जैसी सीरीज और फिल्मों में नजर आए।