Move to Jagran APP

पश्चिमी देश हमेशा हमारे देश की गरीबी दिखाते हैं, हमें उनकी कमियों को दिखाना चाहिए- तनिष्ठा चैटर्जी

जल’ और ‘गुलाब गैंग’ जैसी फिल्मों की अभिनेत्री तनिष्ठा चैटर्जी की बतौर निर्देशक पहली फिल्म है ‘रोम रोम में’। डिजिटल प्लेटफार्म पर रिलीज होने वाली इस फिल्म में नवाजुद्दीन सिद्दीकी हैं। कोरोना काल में बदलते कंटेंट जैसे कई मुद्दों पर बातचीत के कुछ अंश...

By Ruchi VajpayeeEdited By: Published: Sun, 13 Jun 2021 03:27 PM (IST)Updated: Sun, 13 Jun 2021 03:27 PM (IST)
पश्चिमी देश हमेशा हमारे देश की गरीबी दिखाते हैं, हमें उनकी कमियों को दिखाना चाहिए- तनिष्ठा चैटर्जी
Image Source: Tannishtha Chatterjee Instagram Account Photo

प्रियंका सिंह, मुंबई ब्यूरो।'जल’ और ‘गुलाब गैंग’ जैसी फिल्मों की अभिनेत्री तनिष्ठा चैटर्जी की बतौर निर्देशक पहली फिल्म है ‘रोम रोम में’। डिजिटल प्लेटफार्म पर रिलीज होने वाली इस फिल्म में नवाजुद्दीन सिद्दीकी हैं। हिंदी समेत अंतरराष्ट्रीय सिनेमा में काम कर चुकीं तनिष्ठा से फिल्म, कोरोना काल में बदलते कंटेंट जैसे कई मुद्दों पर बातचीत के कुछ अंश...

loksabha election banner

 कोरोना के माहौल में क्या वीकेंड और वीकडेज के बीच फर्क पता चलता है या हर दिन एक जैसा लगता है?

(हंसते हुए) सही बात है, अब रविवार और सोमवार में फर्क पता ही नहीं चलता। वैसे भी हमारे क्रिएटिव फील्ड में हर दिन एक जैसे ही लगते हैं। कोरोना की वजह से तो अब वीकेंड का कोई मतलब नहीं रहा। हमारे पेशे पर इस महामारी ने बहुत असर डाला है। हालांकि हम घर बैठकर लेखन कर सकते हैं, लेकिन क्या फायदा? उसे शूट तो नहीं कर सकते। शूटिंग एक सामुदायिक एक्टिविटी है। पहले आर्टिस्ट होने की परिभाषा यही थी कि हम सब कुछ भूलकर अपनी कला दिखाते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं रहा है।

इन दिनों घर बैठे क्या लिख रही हैं?

(सोचकर) आस-पास की कुछ चीजें जो सीधे हमारे दिमाग को प्रभावित कर रही हैं, अतीत की कुछ बातें, जो कई बार सोचा था कि लिखूंगी, वह सब लिख रही हूं। दूसरे लेखकों के साथ मिलकर भी काफी कुछ लिख रही हूं। इस वक्त कहानी को विकसित करने का समय मिल रहा है। पहले कहानी लिखने की जो एक सीमा थी, वह टूट गई है। मुंबई, गोवा या विदेश, हर किसी से वीडियो काल पर ही बात हो रही है। लोग अंतरराष्ट्रीय कंटेंट और डाक्यूमेंट्री देख रहे हैं। हम लोग सांस्कृतिक तौर पर अन्य देश के लोगों से कनेक्ट हो रहे हैं। जब मैंने ‘अनपाज्ड’ फिल्म बनाई थी, तब अमेरिका से मुझे फोन आया था कि वह भी लाकडाउन में कुछ ऐसा ही महसूस कर रहे थे, जैसा फिल्म में दिखाया गया है। हालांकि रचनात्मक व्यक्ति का काम तब और बेहतर होता है, जब वह बाहर निकलकर चीजें करीब से देखता है। घर बैठे डिजिटल प्लेटफार्म देखकर और किताबें पढ़कर हम प्रेरित नहीं होते हैं। खैर, जिंदगी फिलहाल ऐसे ही जीनी है, जब तक सब सामान्य नहीं हो जाता।

बतौर निर्देशक क्या लगता है सब कुछ सामान्य होने पर दर्शकों का मूड किस तरह की फिल्में देखने का होगा?

मैं अगर एक दर्शक की तरह कहूं, तो फिलहाल मुझे ऐसे कंटेंट देखने का मन है, जिसे देखकर मैं इस माहौल से बाहर निकल पाऊं। मुझे कामेडी फिल्में देखनी हैं। ट्रैवल नहीं कर सकती तो इमोशनली और विजुअली एक अच्छी जगह पर पहुंचने वाली कहानियां देखना चाहती हूं। मैं जो लिख रही हूं वह खुशी देने वाली कहानियां हैं, जिसमें अच्छाई और दुनियादारी वाली चीजों में यकीन रखने वाली बातें हैं।

‘रोम रोम में’ को निर्देशित करने का खयाल कहां से आया?

दरअसल, मेरी यह फिल्म क्रास कल्चर वाली है। फिल्म में मेरे, नवाजुद्दीन सिद्दीकी और ईशा तलवार के अलावा कई इटैलियन कलाकार भी हैं। ग्लोबलाइजेशन की वजह से कहानियां सीमाओं के दायरे में नहीं बंधी हैं। मैं भारतीय आर्टिस्ट हूं, लेकिन जो कहानी मैंने इस फिल्म में लिखी वह 16वीं शताब्दी की एक इटैलियन चित्रकार से प्रेरित है, जो शुरुआती दौर की चंद फेमिनिस्ट में से एक थीं। जो नींव उस दौर की महिलाओं ने देश-विदेश में रखी, उन्हीं की वजह से आज हम महिलाओं का अस्तित्व है। मैं रोम जैसे देश में जाकर फिल्म बना पा रही हूं। हमने हमेशा देखा है कि लोग विदेश से यहां आकर ‘स्लमडाग मिलेनियर’ जैसी फिल्में बनाते हैं। हम विदेश में शूट करते हैं और वहां की लोकेशन को बैकग्राउंड की तरह इस्तेमाल करते हैं, लेकिन क्रास कल्चर वाली कहानियां नहीं कहते। अगर ग्लोबलाइजेशन हुआ है, तो हमें भी दूसरे देश की कहानियां दिखानी चाहिए। मैं आधुनिक भारतीय आर्टिस्ट हूं। पश्चिमी देश हमेशा हमारे देश की गरीबी और कमियों को ही दिखाते हैं। वह पश्चिमी नजरिए से हमारे देश को देखते हैं। हमें भी तो दिखाना चाहिए कि दूसरे देश में क्या होता है। रोम के आर्टिस्ट और फेमिनिस्ट को लेकर मैं प्रेरित थी, इसलिए मैंने अपनी कहानी में वहां की चीजें दिखाईं।

‘रोम रोम में’ में आपने अभिनय भी किया है। खुद को निर्देशित करने का अनुभव कितना अलग था?

प्रोडक्शन के स्तर पर तनाव तो होता ही है, लेकिन उसमें भी मजा है। ऐसा कभी नहीं लगा कि शूटिंग कब खत्म होगी। समय पर काम खत्म करने का तनाव शूटिंग पर हमेशा ही होता है। कई बार आप अपनी फिल्म के लिए जो चाहते हैं, वह नहीं मिल पाता है। कई बार कुछ जगहों पर शूटिंग की इजाजत नहीं मिलती। वह जिम्मेदारियां संभालते हुए अभिनय करना मुश्किल है, लेकिन बतौर आर्टिस्ट खुद को व्यक्त करने की आजादी मिली, जो अक्सर पहली फिल्म के साथ नहीं मिलती है। हो सकता है कि कुछ लोगों को फिल्म पसंद आए, कुछ आलोचना करेंगे। आलोचनाएं भी कला का हिस्सा हैं। मैं फिलहाल अब हर चीज को लेकर नान जजमेंटल हो गई हूं।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.