अपनी खलनायकी से लोगों के दिलों में खौफ पैदा करने वाले अभिनेता प्राण को गानों से था परहेज, पर इस गाने में डाल दी थी जान
अभिनेता प्राण को फिल्मों में गाना कभी पसंद नहीं था। मगर फिल्म ‘उपकार’ में वे स्क्रीन पर गाने की लिपसिंक करते नजर आए। काफी मुश्किलों से तैयार हुआ वह गीत आखिर में यादगार बन गया। प्राण सिकंद की पुण्यतिथि पर उनकी स्मृतियों को ताजा करता स्मिता श्रीवास्तव का आलेख...
स्मिता श्रीवास्तव। अभिनेता प्राण किशन सिकंद उर्फ प्राण ने अभिनय के सफर का आगाज साल 1939 में किया था। करियर के शुरुआती दौर में उन्होंने खुद को खलनायक के तौर पर स्थापित किया था। वह हर बार कुछ अलग किरदार निभाने की इच्छा रखते थे। फिल्म ‘शहीद’ उसकी बानगी थी। मनोज कुमार निर्देशित फिल्म ‘उपकार’ उनके करियर का टर्निंग प्वाइंट साबित हुई थी। जिसको लेकर प्राण ने कहा भी था कि ‘उपकार’ से पहले उन्हें दर फिल्म नकारात्मक छवि वाले किरदारों में कास्ट किया जा रहा था।
मनोज कुमार को प्राण पंडित जी कहकर संबोधित करते थे। प्राण की बहुमुखी प्रतिभा से मनोज कुमार वाकिफ थे। जब वह ‘उपकार’ बना रहे थे तो उन्होंने कुछ ऐसा करने की सोची, जिसे करने में लोग डरते हों। वह प्राण के प्रोफेशनिलज्म से भी बहुत प्रभावित थे। उन्होंने तय किया कि वह फिल्म के सबसे बेहतरीन गाने का फिल्मांकन उन पर करेंगे। यह मशहूर गाना था- ‘कसमे वादे प्यार वफा, सब बातें हैं, बातों का क्या।’
संगीतकार कल्याण जी-आनंद जी को जब इस बात का पता चला तो वे काफी परेशान हुए कि इंदीवर द्वारा लिखे गए सबसे संवेदनशील गाने को प्राण पर फिल्माया जाएगा। उन्होंने मनोज कुमार से इस बारे में सवाल भी किए। दरअसल, फिल्म ‘आन’ में राज कपूर ने प्राण को सकारात्मक रोल दिया था और वह फ्लाप रहे थे। कल्याण जी-आनंद जी प्राण की खलनायक छवि से आशंकित थे। उन्हें जल्द ही एहसास हो गया कि कल्याण जी द्वारा मनोज को फोन करके गाने को बैकग्रांउड में बजाने का आग्रह, प्रतिरोध करने के बावजूद मनोज कुमार मानने वाले नहीं थे।
मनोज को उस समय तगड़ा झटका लगा, जब किशोर कुमार ने इसे गाने तक से इन्कार कर दिया। यहां तक कि जब प्राण ने निजी तौर पर उनसे गाने का अनुरोध किया, तब भी उन्होंने निर्णय नहीं बदला। बल्कि मनोज कुमार ने किसी और गायक को लेने के लिए कह दिया। वह उस खूबसूरत गाने को स्क्रीन पर प्राण को ही देखना चाहते थे। आखिरकार उस गाने को मन्ना डे ने गाया और गाना सुपरहिट रहा। इसे कल्याण जी-आनंद जी के सर्वश्रेष्ठ संगीतबद्ध गानों में से एक माना जाता है। प्राण ने स्क्रीन पर इस गाने को बेहद खूबसरत भावों के साथ पेश किया था। बाद में कल्याण जी-आनंद जी ने माना कि उनके गानों को बहुत सितारों पर फिल्माया गया, लेकिन किसी ने वैसी भावनाओं के साथ नहीं पेश किया, जैसे प्राण ने किया। उन्होंने इसकी भावनाओं को इस तरह बयां किया कि उनके गले की सारी नसें दिख रही थीं।
बहरहाल, पिछली सदी के छठे दशक के दौरान प्राण सकारात्मक किरदारों की ओर सफलतापूर्वक कदम बढ़ा चुके थे। उस समय प्रकाश मेहरा ने ‘जंजीर’ में अंदर से नरम, बाहर से गरम पठान का किरदार निभाने का प्रस्ताव दिया। प्रकाश मेहरा के साथ इससे पहले प्राण ने दो फिल्म ‘आन बान’ और ‘एक कुंवारी एक कुंवारा’ में काम किया था। काम के प्रति उनके समर्पण से प्रकाश मेहरा काफी प्रभावित थे। उन्होंने तय किया था कि वह प्राण को बेहतरीन रोल देंगे। जब वह ‘जंजीर’ की तैयारी कर रहे थे, उसी समय मनोज कुमार फिल्म ‘शोर’ की तैयारी कर रहे थे। जब सलीम-जावेद की जोड़ी ने प्रकाश मेहरा को ‘जंजीर’ की कहानी सुनाई, तभी पठान की भूमिका में प्राण की छवि उनके दिमाग में आई। दरअसल, उन्होंने साल 1960 में रिलीज मनमोहन देसाई निर्देशित फिल्म ‘छलिया’ में प्राण को देखा था। उसमें भी उन्होंने पठान का किरदार निभाया था। उन्होंने किरदार के लिए प्राण से संपर्क किया और उन्होंने स्वीकार कर लिया। इस फिल्म को स्वीकृति देने के कुछ दिनों बाद मनोज कुमार ने अपनी फिल्म ‘शोर’ के लिए प्राण से संपर्क साधा। उसमें भी उन्हें पठान का ही किरदार आफर किया गया था। मनोज कुमार के साथ घनिष्ठ संबंधों को देखते हुए प्राण के लिए इन्कार करना आसान नहीं था। उन्होंने मनोज कुमार से कहा कि वह ‘शोर’ में तभी काम करेंगे अगर प्रकाश मेहरा ‘जंजीर’ न बनाएं। दोनों को ही पता था कि ऐसा कुछ होने वाला नहीं है। बाद में प्राण ने फोन करके मनोज कुमार से कहा था कि, ‘पंडित जी अगर बुरा न मानें तो क्या पठान के किरदार को किसी और में बदला जा सकता है?’ जब उन्होंने इसका कारण जानना चाहा तो उन्होंने कहा कि वह पहले से ही प्रकाश मेहरा के साथ फिल्म करने की स्वीकृति दे चुके हैं। वह उसमें पठान की भूमिका निभा रहे हैं। जिसके बाद ‘शोर’ में प्राण की जगह प्राणनाथ को लिया गया। लोगों को लगा कि दोनों के बीच संबंध बिगड़ गए हैं, हालांकि कुछ दिनों बाद वह उनके घर पर ‘दस नंबरी’ की स्क्रिप्ट सुन रहे थे।
प्राण साहब की खासियत थी कि उन्होंने पूर्व में निभाए किरदारों या उनके गेटअप से बचने की हमेशा कोशिश की। अगर वह ‘शोर’ में पठान का किरदार स्वीकार कर लेते तो आसपास रिलीज होने वाली दोनों ही फिल्मों में वे पठान के किरदार में ही नजर आते।
‘जंजीर’ को स्वीकारने के साथ ही प्राण ने इस फिल्म के हीरो अमिताभ बच्चन, जिन्हें बाद में एंग्री यंगमैन का खिताब मिला, को ढूंढ़ने में भी मदद की थी। दरअसल, प्राण ने ही प्रकाश मेहरा को अमिताभ की फिल्म ‘बांबे टू गोवा’ देखने का सुझाव दिया था। प्रकाश मेहरा ने लेखक जोड़ी सलीम-जावेद के साथ यह फिल्म देखी और उसमें एक्शन सीन देखकर कहा था कि हमें हमारा हीरो मिल गया।
बाद में प्रकाश मेहरा ने एक साक्षात्कार में बताया था कि फिल्म की शूटिंग ‘यारी है ईमान मेरा’ गाने के साथ शुरू होनी थी। जब प्राण को बताया गया कि अगले दिन फिल्म की शूटिंग इस गाने के साथ शुरू होगी तो वह इस बात से नाराज हो गए। दरअसल, ‘उपकार’ के बाद उन्होंने फैसला किया था कि वह तभी गाने करेंगे, जब उसकी तैयारी के लिए गाना और उसके बोल एडवांस में मिलेंगे। प्रकाश मेहरा से एडवांस में गाना न मिलने पर उन्होंने फिल्म को मना कर दिया। प्रकाश असमंजस में थे कि अगर मुहूर्त नहीं हुआ तो डिस्ट्रीब्यूटर उनके हाथ से निकल जाएंगे। तब प्राण को मनाने के लिए प्रकाश मेहरा ने उनसे कहा कि हम गाने को शूट करके पहले उन्हें ही दिखाएंगे। अगर उन्हें पसंद नहीं आया तो उसे नहीं लेंगे। यह सुनने के बाद ही प्राण अगले दिन शूट के लिए राजी हुए थे।