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बर्थडे नूतन: 5 बार चुनी गईं फ़िल्मफेयर बेस्ट एक्ट्रेस, जानिये नूतन से जुड़ी कुछ रोचक बातें

साल 1990 में नूतन को ब्रेस्ट कैंसर का पता चला। जिसके साल भर बाद 21 फरवरी 1991 को अस्पताल में इलाज के दौरान उनकी मौत हो गयी।

By Hirendra JEdited By: Published: Mon, 04 Jun 2018 08:52 AM (IST)Updated: Tue, 05 Jun 2018 06:09 AM (IST)
बर्थडे नूतन: 5 बार चुनी गईं फ़िल्मफेयर बेस्ट एक्ट्रेस, जानिये नूतन से जुड़ी कुछ रोचक बातें
बर्थडे नूतन: 5 बार चुनी गईं फ़िल्मफेयर बेस्ट एक्ट्रेस, जानिये नूतन से जुड़ी कुछ रोचक बातें

मुंबई। अपने दौर की टॉप की अभिनेत्री नूतन की आज जयंती है। महज 54 साल की उम्र में इस दुनिया से विदा लेने वाली नूतन अगर आज हमारे साथ होतीं तो आज अपना 82 वां बर्थडे मना रही होतीं। रुपहले पर्दे पर अपनी सौम्य और सशक्त अभिनय से गहरी छाप छोड़ने वाली नूतन का दौर ब्लैक एंड व्हाईट फ़िल्मों का दौर था लेकिन, उन्होंने अपने अभिनय से बड़े पर्दे पर जो रंग भरे वो आज भी बेहद गहरे और चटक हैं! 

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आज भी टीवी पर जब नूतन की फ़िल्में आती हैं तो सिनेमा के दीवाने उनकी सहज अभिनय शैली, दिलों को छूती संवाद अदायगी और भाव भंगिमाओं के जादू में बंध से जाते हैं। ऐसी बेमिसाल अदाकारा नूतन का जन्म मुंबई में ही 4 जून 1936 को एक मराठी कला प्रेमी परिवार में हुआ था। उनके पिता कुमारसेन समर्थ एक जाने-माने निर्देशक और कवि थे जबकि उनकी मां शोभना समर्थ एक जानी-मानी अभिनेत्री थीं। ज़ाहिर है परिवार में कला को लेकर उन्हें एक माहौल विरासत में मिला। पंचगनी के एक कॉन्वेंट स्कूल से पढ़ाई पूरी करने के बाद वो साल 1953 में उच्च शिक्षा के लिए स्विटज़रलैंड चली गईं, जहां वो तकरीबन एक साल तक रहने के बाद देश लौट आईं। बाद में एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा भी था कि विदेश में बिताये गए वो एक साल उनके जीवन का सबसे यादगार वर्ष था। हालांकि, विदेश जाने से पहले वो कुछ फ़िल्में कर चुकी थीं जो कामयाब नहीं हो पायी। गौरतलब है कि महज 14 साल की उम्र में उन्होंने अपनी मां के निर्देशन में बनी फ़िल्म ‘हमारी बेटी’ से डेब्यू किया था!

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नूतन साल 1952 में मिस इंडिया पीजेंट भी चुनी गयी थीं। नूतन को पहला बड़ा ब्रेक साल 1955 में आई फ़िल्म ‘सीमा’ में मिला। इस फ़िल्म के लिए उन्होंने पहला फ़िल्मफेयर अवार्ड भी जीता। यहां से उनकी कामयाबी को एक नया आसमान मिला। एक के बाद एक कई फ़िल्में जैसे-‘पेईंग गेस्ट’, ‘अनाड़ी’, ‘सुजाता’ आदि हिट साबित हुईं। वाकई तब तक हिंदी सिनेमा को उसकी अपनी एक समर्थ हीरोइन मिल गयी थी। साल 1963 में आई फ़िल्म ‘बंदिनी’ भारतीय सिनेमा जगत में अपनी संपूर्णता के लिए सदा याद की जाती है। फ़िल्म में नूतन के अभिनय को देखकर ऐसा लगा कि केवल उनका चेहरा ही नहीं बल्कि हाथ-पैर की अंगुलियां भी अभिनय कर सकती हैं।

बिमल रॉय की ‘बंदिनी’ नूतन के कैरियर में एक मील की पत्थर की तरह है। इसके अलावा ‘छलिया’, ‘देवी’, ‘सरस्वतीचंद्र’, ‘मैं तुलसी तेरे आंगन की’, ‘सौदागर’ जैसी 70 से ज्यादा फ़िल्में करने वाली नूतन अपार कामयाबी पाने के बावजूद सादगी की एक मिसाल रही हैं। नूतन ने अपने कैरियर के टॉप पर पहुंचने के बाद साल 1959 में नेवी के लेफ्टिनेंट कमांडर रजनीश बहल से शादी कर ली थी। उनके बेटे मोहनीश बहल भी लंबे समय से एक अभिनेता के रूप में सक्रिय हैं।

बहरहाल, शादी ही नहीं बल्कि बेटे के जन्म साल 1961 के बाद भी वो लगातार अवार्ड विनिंग फ़िल्में करती रहीं। ‘सीमा’, ‘सुजाता’, बंदिनी’, ‘मिलन’ और ‘मैं तुलसी तेरे आंगन की’ के लिए बेस्ट एक्ट्रेस का फ़िल्मफेयर अवार्ड जीत कर नूतन ने साबित कर दिया था कि वो अपनी दौर की टॉप की अभिनेत्री रहीं हैं। साल 1985 ‘मेरी जंग’ के लिए उन्होंने फ़िल्मफेयर से बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस का अवार्ड भी जीता। भारत सरकार से पद्मश्री समेत कई सम्मान पाने वाली नूतन को साधना से लेकर स्मिता पाटिल जैसी अभिनेत्रियां अपना रोल मॉडल मानती रही हैं। आज के समय के एक बड़े निर्देशक संजय लीला भंसाली ने एक इंटरव्यू में कहा कि वो आज नूतन की तरह सहज और करिश्माई अभिनेत्री नहीं बना सकते।

नूतन के फ़िल्मों के अलावा जो गाने उन पर फ़िल्माये गए वह भी यादगार हैं और आज तक गुनगुनाये जाते हैं। 'छोड़ दो आंचल जमाना क्या कहेगा', सावन का महीना', 'चंदन सा बदन', फूल तुम्हें भेजा है खत में' ये सब गीत सदाबहार सुपरहिट्स में गिने जाते हैं। साल 1986 में आई दिलीप कुमार के साथ उनकी फ़िल्म 'कर्मा' भी बॉलीवुड की एक यादगार फ़िल्मों में से मानी जाती है! 

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बहुत कम लोग जानते हैं कि नूतन को शिकार का भी बेहद शौक था! उन्हें जब भी मौका मिलता वो अपने इस शौक को पूरा करतीं। पर्दे पर ज़्यादातर साड़ी में दिखने वाली नूतन स्क्रिप्ट की डीमांड पर छोटे कपड़े पहनने या बोल्ड सीन देने से कभी नहीं झिझकीं। वो एक संपूर्ण अदाकारा थीं! बहरहाल, सब कुछ नूतन के मन मुताबिक ही चल रहा था कि साल 1990 में उनको ब्रेस्ट कैंसर ने आ घेरा। जिसके साल भर बाद 21 फरवरी 1991 को अस्पताल में इलाज के दौरान उनकी मौत हो गयी। इस तरह से सिनेमा के एक अध्याय का दुखद अंत हुआ। लेकिन, आज भी वो अपनी फ़िल्मों और अपने निभाये गए किरदारों से याद की जाती हैं।


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