मन्ना डे का बर्थडे: पहेली सी ज़िंदगी में सुरों का सागर बहा कर बस मोह लिया रे
मन्ना डे का एक गाना एक बार राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने सुना था। यह गीत 'राम राज्य' फिल्म का था। यही एकमात्र फिल्म है, जिसे अपने पूरे जीवनकाल में बापू ने देखा था .
मुंबई। प्रबोधचंद्र डे। यानि मन्ना डे। आज होते तो दुनिया उनके 99 साल का जश्न मनाती। नहीं हैं फिर भी उनकी यादों और बेहतरीन गानों का तोहफ़ा तो हमारे साथ है। बर्थडे ब्वॉय मन्ना दा की वो मधुर आवाज़ ज़िंदगी के हर उन लम्हों को एक बार छू कर चली जाती है, जिससे कभी न कभी कोई गुज़रा जरुर होता है।
साल 1919 में आज ही के दिन (एक मई) महामाया और पूर्णचंद्र डे के घर कोलकाता में एक बच्चे का जन्म हुआ था। नाम रखा गया प्रबोध। वो अबोध प्रबोध आज भारतीय सिने गायकों की लिस्ट में ऊपर की श्रेणी में आता है। उनके चाचा कृष्ण चंद्र डे का तब बड़ा नाम था। वो नेत्रहीन थे और न्यू थियेटर्स में बतौर गायक-अभिनेता काम कर रहे थे। मन्ना डे नाम उन्हीं का दिया हुआ है। वही संगीत में उनके प्रारंभिक गुरु बने। एक बार मन्ना डे के कॉलेज में संगीत प्रतियोगिता आयोजित हुई लेकिन पहले चाचा ने मन्ना डे वहां जाने से मना कर दिया। बाद में मान गए। मन्ना डे ने प्रतियोगिता के दसों वर्गो में भाग लिया और नौ में प्रथम पुरस्कार जीता। मज़े की बात अपनी मातृभाषा बांग्ला में सेकेंड आये। वह कुश्ती और मुक्केबाजी की प्रतियोगिताओं में भी खूब भाग लेते थे। साल 1941 में न्यू थियेटर्स के कई कलाकार जब बंबई आए तो उनके साथ मन्ना डे भी हो लिए । 1942 में उन्होंने 'तमन्ना' फिल्म के लिए 'जागो आई ऊषा, पंछी बोले जागो..' गीत गाकर अपने गायन करियर की शुरुआत की, लेकिन फिल्म 'रामराज्य' में 'बुद्धं शरणं..' गीत गाने के बाद मन्ना डे का नाम जाना गया।
मन्ना डे ने गायन के अलावा स्वतंत्र संगीतकार के रूप में फिल्मों में संगीत भी दिया, जिसकी शुरुआत संगीतकार खेमचंद प्रकाश के सहायक के रूप में हुई। उन दिनों खेमचंद प्रकाश जयंत देसाई के निर्देशन में बनने वाली फिल्म 'गणेश जन्म' का संगीत-निर्देशन कर रहे थे। तभी वो गंभीर रूप से बीमार हो गए। उनकी बीमारी के चलते फिल्म का संगीत अधूरा रह गया, तो देसाई के आग्रह पर मन्ना डे ने उसे पूरा किया। परिणाम यह हुआ कि मन्ना डे को फिल्मों में बतौर संगीतकार काम करने के निमंत्रण मिलने लगे। जिन फिल्मों का संगीत-निर्देशन करने के लिए आमंत्रित किया गया, उनमें 'महापूजा', 'जय महादेव', 'गौरीपूजा' जैसी फिल्में थीं। पौराणिक फिल्मों के इस मायाजाल से दुखी होकर मन्ना डे ने म्यूज़िक डायरेक्शन बंद करने का मन बना लिया और तय किया कि वो सिर्फ गायेंगे। उसी साल उन्हें बॉम्बे टॉकीज की फिल्म 'मशाल' में पार्श्वगायन का ऑफर मिला और उन्होंने सचिन देव बर्मन के संगीत-निर्देशन में एक गीत गाया, 'ऊपर गगन विशाल...'। इस गीत ने मन्ना डे को पार्श्वगायन में स्थापित कर दिया। और उसके बाद मन्ना दा ने अपने गीतों का अलग संसार ही बसा लिया। साल 1961 में आई फिल्म 'काबुली वाला' के गीत 'ऐ मेरे प्यारे वतन' ने मन्ना डे को शोहरत की बुलंदियों पर पहुंचा दिया।
मन्ना डे ने 1942 से 2013 के बीच सौ से अधिक निर्देशकों के लिए 4000 से ज्यादा गाने गाए। इनमें हिंदी में 1500, पंजाबी में 18, बांग्ला में 1200, गुजराती में 85, भोजपुरी में 35, असमिया में छह, मराठी में 70 और इसके अलावा मैथली, कोंकणी, सिंधी, कन्नड, मलयालम और मगध भाषा में भी गाने गाये।
फिल्म चोरी चोरी का ‘आजा सनम...’, आनंद का ‘जिंदगी कैसी है पहेली...’, पड़ोसन का ‘एक चतुर नार...’ सीमा का ‘तू प्यार का सागर है...’, शोले का ‘ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे...’ मेरा नाम जोकर का ‘ऐ भाई जरा देख के चलो...’ ज़ंजीर का ‘यारी है ईमान मेरा...’तीसरी कसम का ‘चलत मुसाफिर मोह लिया रे...’ उपकार का ‘कस्में वादे प्यार वफा...’ वक्त का ‘ऐ मेरी जोहरा जबीन...’ और ऐसे कई गीत जो आज भी मन्ना दा को याद करने का जरिया हैं ।
मन्ना डे के दौर में समकालीन गायक मोहम्मद रफी और महेंद्र कपूर उनके सबसे बड़े प्रशंसक थे।बताते हैं कि एक बार मन्ना दा ने किशोर कुमार को रिकार्डिंग के समय गलत राग में गाने पर टोक दिया था तब महमूद ने मन्ना डे को समझाया कि फिल्म के सीन में कुछ ऐसा ही दिखाया गया है इसलिए किशोर कुमार को इस तरह से गाना पड़ रहा है।
जाने माने कवि गोपाल दास नीरज का गीत 'ऐ भाई जरा देख के चलो' व रविंद्र जैन का 'दूर है किनारा' को मन्ना डे ने अपनी आवाज देकर अमर कर दिया था। साल 1970 में देव आनन्द की फिल्म 'प्रेम पुजारी' के गीत 'ताकत वतन की हमसे है' को मन्ना डे ने मोहम्मद रफी के साथ आवाज दी। इसी वर्ष रिलीज हुई फिल्म 'चंदा और बिजली' में लिखे मेरे गीत 'काल का पहिया घूमे रे भइया' मन्ना डे के हिट गानों में है। मन्ना डे ने डॉ. हरिवंश राय बच्चन की 'मधुशाला' के प्राइवेट अल्बम में अपनी आवाज़ दी थी । पहली रुबाई खुद अमिताभ बच्चन के बाबूजी की थी और बाकी की मन्ना डे ने गाई। तब संगीतकार जयदेव ने कहा था, 'अगर बच्चनजी 'मधुशाला' लिखने के लिए बने थे, तो मन्ना डे इसे गाने के लिए।' साल 1991 में आई फिल्म 'प्रहार' में गाने ‘हमारी ही मुट्ठी में...’ के बाद मन्ना डे ने पार्श्वगायन से संन्यास ले लिया। इस दौरान उन्हें 1971 में पद्मश्री और 2005 में पद्मभूषण से नवाजा गया।
साल 2007 में मन्ना डे को फिल्म इंडस्ट्री में उनके योगदान के लिए दादासाहेब फाल्के पुरस्कार दिया गया। मन्ना दा जब 94 साल के हुए उससे पहले ही उनकी छाती में संक्रमण की शिकायत हुई। गुर्दे भी ख़राब हो गए थे और लंबी बीमारी के बाद 24 अक्टूबर, 2013 को बेंगलुरु में उनका निधन हो गया।
बापू ने भी सुनी थी मन्ना दा की आवाज़
मन्ना डे का एक गाना एक बार राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने सुना था। यह गीत 'राम राज्य' फिल्म का था। यही एकमात्र फिल्म है, जिसे अपने पूरे जीवनकाल में बापू ने देखा था और उन्होंने फिल्म के गीत को बड़े चाव से सुना था। इसमें हालांकि मन्ना डे ने पार्श्वगायक के तौर पर नहीं, बल्कि कोरस के रूप में गीत गाया था। संगीतकार शंकर-जयकिशन ने मन्ना डे को बड़े ही अच्छे तरह से पहचान लिया था। उन्होंने मन्ना डे से 'आजा सनम मधुर चांदनी में हम..' और 'केतकी गुलाब, जूही..' जैसे गीत गवाए। शुरुआत में मन्ना डे ने इन्हें गाने से मना कर दिया था।
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