मुक्केबाजी पर बनी फिल्मों में होता है विदेशी ट्रेनर और एक्शन डायरेक्टर का बोलबाला, इमोशन और जुनून से भरपूर होती हैं कहानियां
मुक्केबाजी पर बनी फिल्मों में अक्सर ट्रेनिंग के लिए विदेशी ट्रेनर और एक्शन डायरेक्टर का सहारा लिया जाता है। इसकी वजह बताते हुए अनिल शर्मा कहते हैं कि हमारे यहां के एक्शन डायरेक्टर इस खेल की बारीकियों को लेकर अब भी परिपक्व नहीं हैं।
स्मिता श्रीवास्तव-प्रियंका सिंह, मुंबई। क्रिकेट, फुटबाल, हाकी के अलावा बाक्सिंग का खेल भी बालीवुड का पसंदीदा विषय रहा है। 'सुल्तान', 'साला खड़ूस', 'मुक्काबाज', 'मैरी काम', 'ब्रदर्स' जैसी कई फिल्में बाक्सिंग के आसपास बुनी गई हैं। आगामी दिनों में फादर आफ इंडियन बाक्सिंग कहे जाने वाले मुक्केबाज कैप्टन हवा सिंह की बायोपिक,राकेश ओमप्रकाश मेहरा निर्देशित फिल्म 'तूफान', 'अपने 2', साउथ के सुपरस्टार विजय देवरकोंडा अभिनीत 'लाइगर', विकास बहल निर्देशित और टाइगर श्राफ अभिनीत 'गणपत' बाक्सिंग पर आधारित होगी। दो खिलाडिय़ों के बीच सीमित दायरे में खेले जाने वाले इस खेल को पर्दे पर दर्शाने के लिए जरूरी पहलुओं की पड़ताल कर रही हैं स्मिता श्रीवास्तव और प्रियंका सिंह
साल 1984 में रिलीज राज एन सिप्पी के निर्देशन में बनी फिल्म 'बाक्सर' में मिथुन चक्रवर्ती ने बाक्सर की भूमिका निभाई थी, जो जेल जाने के बाद बाक्सिंग सीखता है। छह बार की विश्व चैंपियन और ओलंपियन बाक्सर मैरी काम के सफर को उमंग कुमार ने बखूबी पर्दे पर उतारा। उन्होंने फिल्म में महिला खिलाड़ी के साथ होने वाले भेदभाव को संजीदगी से पेश किया। फिल्म को दर्शकों और समीक्षकों का बेहद प्यार मिला। मैरी काम के किरदार के लिए प्रियंका चोपड़ा ने जीतोड़ मेहनत की थी। प्रियंका का कहना था कि यह एक ऐसे इंसान की कहानी है, जिसने सीमाओं में रहने से इन्कार कर दिया। धान उगाने वाले किसान की बेटी होने के बावजूद बाक्सर बनने का ख्वाब देखा। इस फिल्म से दर्शक जुड़ाव महसूस करेंगे, क्योंकि हम सभी पर बंदिशें लगी रहती हैं। वैसा ही हुआ भी। 'मैरी काम' को पापुलर फिल्म के नेशनल अवार्ड से नवाजा गया।
कहानियां हैं कई:
आगामी दिनों में फादर आफ इंडियन बाक्सिंग कहे जाने वाले मुक्केबाज कैप्टन हवा सिंह की बायोपिक, राकेश ओमप्रकाश मेहरा निर्देशित फिल्म 'तूफान', फिल्म 'अपने' की सीक्वल 'अपने 2', साउथ के सुपरस्टार विजय देवरकोंडा अभिनीत फिल्म 'लाइगर, दो पार्ट में बनने वाली विकास बहल निर्देशित और टाइगर श्राफ अभिनीत फिल्म 'गणपत' बाक्सिंग पर आधारित होगी। शाहिद कपूर भी भारतीय मुक्केबाज डिंग्को सिंह की बायोपिक से अपने प्रोडक्शन हाउस की शुरुआत करने वाले थे, लेकिन वह फिल्म किन्हीं कारणों से शुरू नहीं हो पाई। दो खिलाडिय़ों के बीच रिंग में खेले जाने वाले इस खेल को बायोपिक और फिक्शन दोनों ही जानर में सेट करने की संभावनाएं होती हैं।
बतौर एक्टर बदल जाता है सोचने का तरीका:
अमेजन प्राइम वीडियो पर रिलीज होने वाली फिक्शन फिल्म 'तूफान' में बाक्सर का रोल करने को लेकर फरहान अख्तर कहते हैं कि जब किसी खेल पर फिल्म बनती है, तब हीरो के जेहन में घूमने लगता है कि मेरी एंट्री कैसी होगी, प्रोमो कैसे एडिट होगा, लेकिन जब रिंग में उतरकर बाक्सिंग करनी पड़ती है, तो ये बातें हवा हो जाती हैं। शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक तौर पर मजबूत होना पड़ता है। यह शतरंज के खेल की तरह है, जिसमें दिमाग लगाना है। अंतर यह है कि इसमें तेजी से अपने शरीर का इस्तेमाल भी करना पड़ता है। मेरा मानना है कि अगर किसी भी काम को करने की वजह सही हो तो अपने आप वह शक्ति भीतर आ जाती है। मैंने दिन में तीन-तीन घंटे ट्रेनिंग की लेकिन थकान महसूस नहीं हुई।
इमोशन और जुनून दोनों:
हमारे देश में क्रिकेट से प्रेम करने वाले दर्शकों के बीच बाक्सिंग पर फिल्म लाना किसी रिस्क से कम भी नहीं होता है। फिल्म 'अपने' में बाक्सिंग दिखा चुके निर्देशक अनिल शर्मा 'अपने 2' में करण देओल से बाक्सिंग कराएंगे। वह कहते हैं कि जब मैंने 'अपने में बाक्सिंग को रखने का फैसला किया था, तब लोगों ने मुझे मिथुन चक्रवर्ती की फिल्म 'बाक्सर' का उदाहरण दिया था, जो खास सफल नहीं हुई थी, लेकिन मुझे यह खेल पसंद है। इस खेल में इमोशन और जुनून दोनों होते हैं। हिंदी फिल्में इन्हीं दो भावनाओं पर चलती हैं। लोगों ने हालीवुड की 'राकी' सीरीज, मुहम्मद अली पर बनी व विल स्मिथ अभिनीत फिल्म 'अली' देखी है। बाक्सिंग पर देश में भी फिल्में बननी चाहिए। 'अपने 2' में भी बाक्सिंग का खेल होगा। मैंने खुद फिर से बाक्सिंग सीखनी शुरू कर दी है। 'अपने' के वक्त भी पंचिग बैग लगाकर प्रैक्टिस किया करता था, खेल के नियम सीखे। बाक्सिंग की ट्रेनिंग खुद करने से फायदा यह होता है कि बाक्सर की मानसिकता आपके भीतर आ जाती है। बाक्सर के अंदर पावर और विनम्रता दोनों होती है। बाक्सिंग रिंग ही बाक्सर की दुनिया होती है, हमें भी कैमरा उसी के अंदर घुमाना होता है। उतनी सी जगह में इमोशस, फाइट तब सही से कैमरे पर कैप्चर हो पाएगा, जब मुक्केबाजी करते वक्त आपस में भिडऩे का कोई उद्देश्य होगा। जब ये बातें स्पष्ट होंगी तो इस खेल को शूट करना भी आसान हो जाता है।
खेल की ऊर्जा का एहसास कराना मुश्किल:
पर्दे पर रिंग के अंदर बाक्सिंग करते हुए कलाकारों को देखकर कई बार रोंगटे खड़े हो जाते हैं। हालांकि उन्हें पर्दे पर दिखाना आसान नहीं होता। 'भाग मिल्खा भाग' के बाद 'तूफान' खेल पर आधारित राकेश ओम प्रकाश मेहरा की दूसरी फिल्म है। राकेश कहते हैं, 'बाक्सिंग क्लोज कांटैक्ट वाला खेल है। दो लोगों के बीच की फाइट को फेक नहीं दिखा सकते हैं। बाक्सिंग में लोग एक-दूसरे को मारते हैं। सुरक्षा का ध्यान रखते हुए उसे वैसे ही शूट करना होता है। खेल वाली कहानियां प्रेरणा देती हैं, उस प्रेरणा को कैमरे के जरिए महसूस कराना निर्देशक के लिए सबसे मुश्किल काम होता है।
बाक्सर बनना चुनौती:
पर्दे पर बाक्सर दिखने के लिए कलाकारों को भी कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है। प्रख्यात मुक्केबाज कैप्टन हवा सिंह की बायोपिक में सूरज पंचोली होंगे। किरदार की तैयारी को लेकर सूरज कहते हैं कि बाक्सर की तरह फिट बाडी बनाने के लिए काफी समर्पण और परिश्रम चाहिए। डाइट, वर्कआउट रूटीन, सोने का पैटर्न सब बदल जाता है। मैंने लाकडाउन से पहले हवा सिंह के परिवार के साथ काफी वक्त बिताया था। हरियाणा में उनके घर पर रहा। वह आर्मी में थे। उनके साथियों से जाकर मिला, उनके स्वभाव के बारे में जाना। बाक्सर के किरदार की तैयारियों के बाबत 'मैरी काम' और 'तूफान' फिल्म के अभिनेता दर्शन कुमार कहते हैं कि बाक्सिंग को दूर से देखने और खुद करने में बहुत फर्क होता है। 'मैरी काम' में मैंने प्रियंका चोपड़ा को दूर से दिन में 16 घंटे मेहनत करते देखा था। जब मैंने खुद 'तूफान' में बाक्सिंग की तब समझ में आया कि यह खेल कितना मुश्किल होता है। असली बाक्सर्स के साथ ट्रेनिंग की है। इस खेल को क्लोज शाट्स में फिल्माया जाता है। ऐसे में कलाकार का बाक्सर की तरह लगना बहुत जरूरी है। बाक्सर की जो बाडी लैंग्वेज 10-15 साल में बनती है, वह हमें कुछ माह में हासिल करनी पड़ती है।
विदेशी ट्रेनर्स और एक्शन डायरेक्टर का बोलबाला:
मुक्केबाजी पर बनी फिल्मों में अक्सर ट्रेनिंग के लिए विदेशी ट्रेनर और एक्शन डायरेक्टर का सहारा लिया जाता है। इसकी वजह बताते हुए अनिल शर्मा कहते हैं कि हमारे यहां के एक्शन डायरेक्टर इस खेल की बारीकियों को लेकर अब भी परिपक्व नहीं हैं। विदेश में बचपन से ही बच्चों को बाक्सिंग की ट्रेनिंग दी जाती है। अमेरिका, आस्ट्रेलिया के एक्शन डायरेक्टर बाक्सिंग में माहिर होते हैं। हालांकि अब बाक्सिंग का खेल हमारे देश में भी लोकप्रिय होता जा रहा है, ऐसे में जल्द ही वक्त आएगा, जब विदेश से ट्रेनर्स नहीं लाने पड़ेंगे। साल 2001 में मुक्केबाज मुहम्मद अली की बायोग्राफिकल फिल्म 'अली' में अभिनेता विल स्मिथ को मुक्केबाजी की ट्रेनिंग दे चुके अमेरिकी ट्रेनर डोरेल फास्टर ने फरहान को भी ट्रेनिंग दी है। वह कहते हैं कि किसी एक्टर को एक नवोदित खिलाड़ी की तरह सिखाना पर्दे पर मुक्केबाजी को वास्तविकता में दिखाने का सबसे सरल तरीका है। हालांकि अभिनेता की मानसिकता को एक खिलाड़ी की मानसिकता में बदलना सबसे बड़ी चुनौती होती है। रिंग में विरोधी के सामने स्थिर और सीधा नहीं खड़ा होना चाहिए, इससे विरोधी के लिए हमला करना आसान हो जाता है। रिंग में अपना स्थान बदलते रहने से विरोधी को भी हमला करने के लिए दिशा बदलनी पड़ती है। प्रशिक्षण के बाद अब फरहान अख्तर पेशेवर बाक्सर की तरह रिंग में लड़ सकते हैं।
सीखनी पड़ी मुक्केबाजी
एक अच्छी फिल्म की तलाश में अभिनेता विनीत कुमार सिंह ने 'मुक्काबाज' की स्क्रिप्ट अपनी बहन के साथ मिलकर लिखी थी। अनुराग कश्यप को जब उन्होंने स्क्रिप्ट सुनाई तब वह निर्देशन के लिए राजी हुए, पर उनकी शर्त थी कि विनीत ही मुक्काबाज बनेंगे। विनीत कहते हैं कि फिल्म का बजट कम था। हम विदेश से ट्रेनर नहीं मंगा सकते थे। जितने पैसों में वह ट्रेनिंग देते, उतना तो फिल्म का बजट था, लिहाजा मैंने खुद को ही ट्रेन करना शुरू कर दिया था। मैं पटियाला के कोचिंग सेंटर में पहुंचा। वहां सालभर ट्रेनिंग ली। हड्डी-पसली टूटी, लेकिन मैं डटा रहा।