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नीरज से पहले गीतों में सब-कुछ था पर प्यार नहीं था, 92 के हुए गीतकार गोपाल दास ‘नीरज’

क्या आप जानते हैं नीरज को फ़िल्म जगत में सर्वश्रेष्ठ गीत लेखन के लिये 70 के दशक में लगातार तीन बार फ़िल्मफेयर पुरस्कार दिया गया है?

By Hirendra JEdited By: Published: Thu, 04 Jan 2018 10:07 AM (IST)Updated: Fri, 05 Jan 2018 06:03 AM (IST)
नीरज से पहले गीतों में सब-कुछ था पर प्यार नहीं था, 92 के हुए गीतकार गोपाल दास ‘नीरज’
नीरज से पहले गीतों में सब-कुछ था पर प्यार नहीं था, 92 के हुए गीतकार गोपाल दास ‘नीरज’

मुंबई। ‘कारवां गुज़र गया गुबार देखते रहे’, ‘ए भाई जरा देख कर चलो’, ‘कहता है जोकर सारा ज़माना’ जैसे यादगार गीत रचने वाले प्रख्यात कवि और गीतकार गोपाल दास ‘नीरज’ 4 जनवरी को नीरज 92 साल के हो गए। आज की पीढ़ी शायद उनके नाम से परिचित न हो लेकिन, नीरज को हिंदी फ़िल्मी गीतों को नया तेवर, कोमलता और स्पर्श देने के लिए जाना जाता है।

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नीरज मूलतः एक कवि हैं जिन्होंने फ़िल्मों के लिए भी कई यादगार गीत लिखे हैं! कवि सम्मेलनों में अपार लोकप्रियता के बाद नीरज को मुंबई से फ़िल्म ‘नई उमर की नई फसल’ के गीत लिखने का बुलावा आया, जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया। पहली ही फ़िल्म में संगीतकार रोशन के साथ उनके लिखे कुछ गाने जैसे ‘कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे’, और ‘देखती ही रहो आज दर्पण न तुम’, ‘प्यार का यह मुहूर्त निकल जायेगा’ बेहद लोकप्रिय हुए। उसके बाद नीरज का फ़िल्मों में गीत लिखने का सिलसिला शुरू हो गया जो ‘मेरा नाम जोकर’, ‘शर्मीली’ और ‘प्रेम पुजारी’ जैसी अनेक चर्चित फ़िल्मों तक जारी रहा।

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नीरज ने एक बातचीत में बताया था कि जब राज कपूर उनसे ‘मेरा नाम जोकर’ के लिए एक ऐसा गीत चाहते थे जिससे फ़िल्म की कहानी आगे बढ़े तो उन्होंने ‘ए भाई ज़रा देख के चलो’ लिखा। लेकिन, नीरज के मुताबिक संगीतकार को इसके बोल पर धुन बनाने में थोड़ी मुश्किल हो रही थी तब राज कपूर ने उनसे पूछा कि कैसे गाया जाए इस गीत को! तो नीरज ने अपने चिरपरिचित अंदाज़ में यह गीत गा कर सुना दिया। बाद में उनके ही धुन पर इस गाने को संगीतबद्ध किया गया जिसे मन्ना डे ने उतनी ही खूबसूरती से गाया है।

क्या आप जानते हैं नीरज को फ़िल्म जगत में सर्वश्रेष्ठ गीत लेखन के लिये 70 के दशक में लगातार तीन बार फ़िल्मफेयर पुरस्कार मिल चुका है। जिन गीतों पर उन्हें यह पुरस्कार मिला वो हैं- ‘काल का पहिया घूमे रे भइया! (फ़िल्म: चन्दा और बिजली-1970), ‘ बस यही अपराध मैं हर बार करता हूं (फ़िल्म: पहचान-1971) और ‘ए भाई! ज़रा देख के चलो’ (फ़िल्म: मेरा नाम जोकर-1972)। 'प्रेम पुजारी' में देवानंद पर फ़िल्माया उनका गीत 'शोखियों में घोला जाए ..' भी उनके एक लोकप्रिय गीतों में शामिल है जो आज भी सुनी जाती है! 

नीरज के मुताबिक मुंबई की ज़िंदगी से जल्द ही उनका मन भर गया और वे बॉलीवुड को अलविदा कह कर अपने घर अलीगढ़ वापस लौट आये। लेकिन, उसके बाद मंचों पर वो लगातार सक्रिय रहे हैं और अपनी रचनाओं से हर जगह छाए रहे! गौरतलब है कि भारत सरकार ने उन्हें साल 1991 में ‘पद्म श्री’ और 2007 में ‘पद्म भूषण’ से सम्मानित किया है।

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नीरज की इन चार पंक्तियों में उनके होने का मतलब कुछ हद समझा जा सकता है- “इसीलिए तो नगर-नगर बदनाम हो गये मेरे आंसू, मैं उनका हो गया कि जिनका कोई पहरेदार नहीं था। आज भले कुछ भी कह लो तुम, पर कल विश्व कहेगा सारा, नीरज से पहले गीतों में सब कुछ था पर प्यार नहीं था।”


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